जग हरख्यो नभ सों उठ्यो आनंद ज्वार
विकस्यो मृदुल चारू मुख अरविंद आयो है
कर फैला लपक रह्ये अपने पराये सगे
नेह को उमड्यो सागर सबै गले लगायो है
मसजिद सो आय रह्यी अजान स्वर लहरी
नभ के चहुँ छोर कैसो नाद पावस छायो है
इत्र फुलेल, बाँकी चितवन, धवल अचकन
ईद को औच्छब आज जन जन मन भायो है
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विनय के जोशी
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
लय अच्छी है...इसे आवाज़ पर स्वरबद्ध कर डालें तो और रस मिले...ईद मुबारक...
इत्र फुलेल, बाँकी चितवन, धवल अचकन
ईद को औच्छब आज जन जन मन भायो है
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर विनय जी!
भाषा भी सरल है
निखिल भाई ने सही कहा जोशी जी,पढ़कर लगा की ले है पर समस्या इतनी ही रही की पूरा नही समझ पाया,भाषाई समस्या.
ईद मुबारक.
आलोक सिंह "साहिल"
amir khusroo ko yaad dilaaya aapne
ईद मुबारक कहने का आपका यह अंदाज़ बहुत पसंद आया.
मनभावन चित्रण प्रस्तुत किया है.
ईद मुबारक
भाषा समझने मे कठिनाई हुई
सुमित भारद्वाज
सुंदर चित्रण ,अच्छी कविता
मन भाई आप की कविता
सादर
रचना
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