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Thursday, October 02, 2008

नेह औच्छब


जग हरख्यो नभ सों उठ्यो आनंद ज्वार
विकस्यो मृदुल चारू मुख अरविंद आयो है
कर फैला लपक रह्ये अपने पराये सगे
नेह को उमड्यो सागर सबै गले लगायो है
मसजिद सो आय रह्यी अजान स्वर लहरी
नभ के चहुँ छोर कैसो नाद पावस छायो है
इत्र फुलेल, बाँकी चितवन, धवल अचकन
ईद को औच्छब आज जन जन मन भायो है
.
विनय के जोशी

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Nikhil Anand Giri का कहना है कि -

लय अच्छी है...इसे आवाज़ पर स्वरबद्ध कर डालें तो और रस मिले...ईद मुबारक...

Harihar का कहना है कि -

इत्र फुलेल, बाँकी चितवन, धवल अचकन
ईद को औच्छब आज जन जन मन भायो है
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर विनय जी!
भाषा भी सरल है

Anonymous का कहना है कि -

निखिल भाई ने सही कहा जोशी जी,पढ़कर लगा की ले है पर समस्या इतनी ही रही की पूरा नही समझ पाया,भाषाई समस्या.
ईद मुबारक.
आलोक सिंह "साहिल"

neelam का कहना है कि -

amir khusroo ko yaad dilaaya aapne

दीपाली का कहना है कि -

ईद मुबारक कहने का आपका यह अंदाज़ बहुत पसंद आया.
मनभावन चित्रण प्रस्तुत किया है.

Unknown का कहना है कि -

ईद मुबारक

भाषा समझने मे कठिनाई हुई
सुमित भारद्वाज

Anonymous का कहना है कि -

सुंदर चित्रण ,अच्छी कविता
मन भाई आप की कविता
सादर
रचना

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