प्रतियोगिता की आठवीं कविता के रचनाकार केतन कनौजिया के पिता इलाहाबाद बैंक में कर्मचारी हैं तथा माता गृहणी हैं। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे लखीमपुर-खीरी का रहने वाले हैं. इन्होंने जी. एल. ए. मथुरा से इंजीनियरिंग की पढ़ाई उत्तीर्ण की है एवं अभी स्नातकोत्तर हेतु अलायंस, बंगलोर से एम. बी. ए. प्रथम वर्ष के छात्र हुए हैं। शांत एवं सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं और इन्हें प्रकृति का आनंद लेने में मजा आता है, कभी भी, कहीं भी कविता लिखने के लिए बैठ जाते हैं। गुलज़ार साहब से बेहद प्रभावित हैं। संगीत सुनने में रुचि है, विशेषकर जगजीत साहब की गजलें. क्रिकेट खेलना पसंद है, कॉलेज की क्रिकेट टीम के सदस्य हैं। नाटिका एवं मंचन में भी भाग लेते रहते हैं। सबसे ज़्यादा पसंद है चाय की चुस्कियों के साथ बैठे-बैठे माहौल को देखना... और कुछ न कुछ लिखते रहना. इनके लिए एक ग़ज़ल का मतला है... जो शायद हर तरफ़ से इनके लिए सही साबित होता है...
लिखा रहे हैं रोज़ जाने कौन सा कलाम है,*
*तसव्वुरों पे लग रहा बचा न कोई काम है
पुरस्कृत कविता- सर्दी बहुत है
जाड़े की उस रात
जब एक रास्ते से जो गुज़रा मैं
देखा
...पकती आग में एक साया
सर्द मौसम से लड़ाई कर रहा था
उम्र की दराज़ पर खड़ा वो बाबा
बुझती आग को जिंदा रखने की कोशिश कर रहा था
मानो उससे कह रहा हो
...
तू तो इन्सां नहीं
पीर बीच राह में छोड के जाने की फितरत
तुझमे कहाँ से आ गई
फिर कुछ देर बाद हार के
बरसों पुराना
... सैकड़ों पैबंद किया
एक पुराना सा कम्बल निकाला उसने
ओढ़कर चाँद की ओर देखा
मानो उससे कह रहा हो
कुछ ओढ़ ले ऐ नादाँ
... सर्दी बहुत है
कुछ रोज़ बाद
... वैसे ही जाड़े की एक और रात
जब मैं फिर उस रास्ते से रूबरू हुआ
... देखा
इस बार आग अपने शबाब पे थी
मन ही मन मैं खुश हुआ और सोचा
चलो आज तो बाबा चैन की नींद सोएगा
कुछ पास गया
... देखा
उस आग के बिस्तर पर
सच मे वो बाबा चैन की नींद सो रहा था
और पास ही पड़ा उसका वो बरसों पुराना दोस्त
वो कम्बल
... मानो रोके दुहाई दे रहा था
इस बार माफ़ करना ऐ दोस्त
इस बार शायद
... सर्दी बहुत है
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ५, ६॰२५, ६॰७, ६॰५
औसत अंक- ५॰८९
स्थान- पाँचवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰९, ४, ५॰८९ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰२६३३
स्थान- आठवाँ
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'समर्पण' भेंट करेंगे।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
केतन जी--
अच्छी कविता के लिए बधाई स्वीकार करें। आपकी कविता पढ़कर सहसा यकीं हो जाता है कि आप जैसे मेधावी युवकों के हाथों -- अंग्रेजी हलात में हिन्दी और जाडे की रात में गरीब का भला होगा।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
Mujhe free-verse kavitaaon ke saath chalna hamesha kathin lagta tha .... magar aapki kavita dil ko chhoo gayi. Khaaskar ye lines
चाँद की ओर देखा
मानो उससे कह रहा हो
कुछ ओढ़ ले ऐ नादाँ
... सर्दी बहुत है
My reaction on this ........
खयाले-कारे-ज़माना* मेरे दिल में आया तो बहुत
यही सोच कर रह गए के खुदा में बेदर्दी बहुत है
:-)
(*खयाले-कारे-ज़माना - ज़माने को सुधारने का ख़याल )
केतन जी,
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी. ऐसे ही लिखते रहिये. बहुत-बहुत बधाई!
उस आग के बिस्तर पर
सच मे वो बाबा चैन की नींद सो रहा था
और पास ही पड़ा उसका वो बरसों पुराना दोस्त
वो कम्बल
... मानो रोके दुहाई दे रहा था
इस बार माफ़ करना ऐ दोस्त
इस बार शायद
... सर्दी बहुत है??????????
कविता का अंत समझ नही पाया
एक बार तो ऐसा लग रहा है जैसे कवि ने इंसान की फितरत को उजागर किया है
कयोकि जब आग नही जल रही थी तब उस बाबा को कंबल की आवश्यकता थी परन्तु आज जब आग जल रही है तो उस ने कंबल को छोड दिया।
और दूसरी तरफ ये लग रहा है कि वह बाबा अब दुनिया मे नही है
पर जहाँ तक मै जानता हूँ, रात्रि मे चिता को अग्नि('उस आग के बिस्तर पर') नही दी जाती
सुमित भारद्वाज
इस बार आग अपने शबाब पे थी
मन ही मन मैं खुश हुआ और सोचा
चलो आज तो बाबा चैन की नींद सोएगा
केतन जी आपकी कविता बहुत ही मार्मिक है और मेरे मन में इसे पढ़कर यही ख्याल आता है की हर तरह की बेचैनी तभी तक है जब तक सांसें चलती है. उसके बाद तो कभी न ख़तम होने वाली चैन की नींद है.
केतन जी,
आपमें कविता लिखने की समझ है। आप आगे और बेहतर लिखेंगे।
ketan ji...
wakaai me sardi bahut hai ne dil ko choo liya...
केतन जी
बहुत सुंदर कविता
सादर
धन्यवाद
रचना
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