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Saturday, September 13, 2008

इक पहेली से नहीं कम …


गुरूदेव पंकज सुबीर जी के सान्निध्य में उनके सहयोग/सुझाव से इस गजल को पूरी कर पाया हूँ

रूठना फ़िर मान जाना हंसके वो शरमाना फ़िर

इक पहेली से नहीं कम चुप तिरा रह जाना फ़िर


कैद खूश्बू पर न कोई भौंरे भी आजाद थे

यार वो गुजरा जमाना आज बस अफ़साना फ़िर


चाँदनी सौगात देकर भी उसे धोखा मिला

बच न पाया चाँद जग का दोष ये दिखलाना फ़िर


तोड़कर कब्रों की साजिश नींद मुरदों की खुली

चल पड़े अब साथ मिलकर बन सके समझाना फ़िर


बात निकली थी तुम्ही से तुम पे ही होगी खतम

प्रश्न हैं केवल ज़रा से इनसे ना घबराना फ़िर


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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

प्रिय भाई छ्न्द ठीक है कहन का प्र्यास भी अच्छा है ।पर कई कमियां हैं देखे शायद आपको और गुरु जी को ठीक लगे

कैद खुशबू पर न कोई भौंरे भी आजाद हैं
अस्पष्ट भाव ग्रस्त है-इसे यूं देखे--
कैद खुशबू पर न थी तब,भौंर भी आजाद थे।
इसी तरह
यार वो गुजरा जमाना यहां वो आप जमाने के लिये कह रहे है
अतः `यार गुजरा वो जमाना `कहिये ना
आपका सबसे अच्छा शे‘र मुर्द वाला है मगर उसका मिसरा दोयम फ़िर अस्प्ष्ट हो गया
इसे यूं देखें गुरुजी को भी दिखला ले अगर ठीक लगे तो अपन लें ,वर्नाछोड़ परे करें।
चल पड़े सब साथ मिलकर,कह रहे समझाना फिर
श्यामसखा श्याम

Anonymous का कहना है कि -

bhore bhi aazad haimn,vaise bhi present, tense hai jab ki aglaa mishraa past tense ka hai shyaam

Unknown का कहना है कि -

गुरू जी(पंकज सुबीर जी) द्वारा मैने भी गजल लिखनी सीखी, पर मुझे बहर की जानकारी नही है

इस गजल का काफिया और रदीफ तो ठीक है, पर गजल वाली पकड इस मे नही दिखाई दे रही......

Unknown का कहना है कि -

आशा करता हूँ, गुरू जी जल्द ही हिन्दयुग्म पर बहर की जानकारी भी प्रदान करेंगें

सुमित भारद्वाज

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कविता की कोई भी विधा हो उसमें भावों का प्रवाह होना चाहिए, बहाव होना चाहिए। के तुकान्त लिखने से या विधा-व्याकरण का ख्याल करने से पाठक कविता के साथ नहीं बह पाता। यही धारामयी प्रवाह हो तो पाठक-श्रोता अतुकान्त, गद्य जैसी दिखने वाली कविताओं के साथ भी देर और दूर तह बहता रहता है। इसलिए प्रवाह पहली शर्त है। आपकी ग़ज़ल में इसी का अभाव है।

शोभा का कहना है कि -

बात निकली थी तुम्ही से तुम पे ही होगी खतम

प्रश्न हैं केवल ज़रा से इनसे ना घबराना फ़िर
रवि जी
बहुत सुंदर लिखा है. बधाई.

Anonymous का कहना है कि -

बहार लिखने के लिए आप ज्यादा ध्यान न दे आप अपनी ग़ज़ल जो लिखने जारहे हैं का पहला शेर लिखते ही मुझे भेजें एक दिन प्राप्त पहली का वजन आपको बहर सहित भेजने का प्रयत्न रहेगा ,उसके बाद उसी वजन पर अगले शे`र लिखें
my i d is yashdeep@ymail.com

Smart Indian का कहना है कि -

बहुत खूब लिखा है भाई रविकांत.
हर कविता में सुधार की गुंजाइश होती है सो इसमें भी होगी, मगर इससे इसका मूल्य कम नहीं होता है. सबकी सुनें मगर आत्मविश्वास बनाए रखें और याद रखें शायर का यह कथन :-
"जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है"

RAVI KANT का कहना है कि -

सुमित जी, गजल पर पकड़ से आपका क्या तात्पर्य है? गजल बहर में है।
शैलेश जी, कविता और गजल काव्य की इन दो विधाओं मे अंतर है। गजल को बिल्कुल कविता की तरह नहीं पढ़ा जा सकता। और न ही इसमें कविता की तरह एक ही भाव के विस्तार की प्रतिबद्धता होती है।

वजन- २१२२-२१२२-२१२२-२१२
पढ़ने के क्रम में "शरमाना" को "शरमान", "जाना" को "जान" पढ़ा जाएगा अर्थात दीर्घ गिर कर लघु हुआ है। ऐसा ही बाकी शेरों में भी है।

Anonymous का कहना है कि -

आप की ग़ज़ल बहुत अच्छी है
सादर
रचना

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