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Friday, September 26, 2008

लक्ष्मी ढौंडियाल का सफर


अगस्त महीने की प्रतियोगिता की अंतिम कविता यानी १५वीं कविता की बारी आ गई है। जुलाई माह की प्रतियोगिता से अंतिम स्थान पर लक्ष्मी ढौंडियाल की कविता प्रकाशित हुई थी और इस बार भी इन्हीं की कविता प्रकाशित हो रही है।

कविता- सफर

मीलों की थकान
चाह पलभर का विश्राम
कहीं दूर देखी
चिमनी टिमटिमाती
पहुँचा वहां जब
दी
दस्तक किवाड़ पर
थी
दुर्बल सी काया
फटी सी वो आँखें
अभी मैंने दो टूक भी
बातें न की थी
अचानक पकड़ ली
उसने मेरी बाहें
बिठाया बड़े प्यार से
इक तखत पे
फिर लायी लोटे में
भरकर वो पानी
हलक से जो उतरा
अमृत का सागर
मिटी प्यास जन्मों की
सफर की थकान
फिर जो उठा में
आगे सफर को
वो आँखों से बोली
पलभर को ठहरो
तनिक देर ही में
कलेवा बनाया
फिर उसने खाने की
थाली परोसी
मक्के की रोटी में
सरसों का साग
रखते ही मुँह में
असर वो हुआ था
छलकती आंखों से
उसे माँ कहा था
क्या थी वो मेरी
जो मुझको दुलारा
जुबान से न बोली
वो इक शब्द भी पर
विह्वल हो ममत्व से
मुझको पुचकारा



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४॰५, २॰५, ५, ६॰४५, ६॰४५
औसत अंक- ४॰९४
स्थान- पच्चीसवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- २॰५, ५, ४॰९४ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰१४
स्थान- पंद्रहवाँ

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी कहन है -सफर जारी रखें ,बस एक ध्यान रहे केवल भोगे पलों को लफ्जों का लिबास देन -श्याम सखा श्याम

Anonymous का कहना है कि -

भाव अच्छे हैं
सादर
रचना

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

मेहनत करनी होगी...

neelam का कहना है कि -

kavita padhkar hume humaari daadi

yaad aa gayi ,achchi prastuti

Anonymous का कहना है कि -

lakshmi ji, lage rahiye.
shubhkamnayein.
ALOK SINGH "SAHIL"

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

काफी मेहनत करनी होगी। कविता से कुछ क्लीयर नहीं होता।

Smart Indian का कहना है कि -

भावपूर्ण!

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