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Thursday, September 11, 2008

ऐ जिंदगी


ऐ जिंदगी, तूने मेरी जिंदगी बिगाड़ दी,
कहीं का भी नहीं छोड़ा, हसरतें हजार दी।

मेरा उनसे एकतरफा इश्क था क्या बुरा,
इकरार की दी आरजू औ' दौलते-इंकार दी।

घर जोड़ने, घर छोड़कर आया तेरे लिए,
एक नींव की पड़ताल में ठोकरों की मार दी।

इंजीनियर तेरे जोर से बनने जो चल पड़ा,
तूने शाइरी की आशिकी मुझमें उतार दी।

यारी में उजड़ गए कई यारों के घरोंदे,
चोटें मेरी तबियत को तूने जो बेशुमार दी।

तू जिंदगी कभी भी यूँ मेरी न हो सकी,
"तन्हा" को खुदा ने है तेरी बंदगी उधार दी।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

शायरी की आशिकी आपने जीवन में उतारकर 'जिदंगी' ने अच्छा ही किया, हमें कम से कम कुछ प्रयोग तो पढ़ने को मिल जाते हैं।

Anonymous का कहना है कि -

जीवन एसा ही है जो चाहिए देता नही जो नही चाहिए बिन मांगे दे देता है
बहुत अच्छी ग़ज़ल
सादर
रचना

manvinder bhimber का कहना है कि -

यारी में उजड़ गए कई यारों के घरोंदे,
चोटें मेरी तबियत को तूने जो बेशुमार दी।

तू जिंदगी कभी भी यूँ मेरी न हो सकी,
"तन्हा" को खुदा ने है तेरी बंदगी उधार दी।
man ko chu gaee hai je panktiyan

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

विश्व दीपक जी,
बिगाड़ दी - हजार दी | जमा नही |
आपकी पूर्व रचनाएँ अधिक प्रभावशाली उनकी तुलना में यह कमजोर है |

सादर,
विनय

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

ऐ जिंदगी, तूने मेरी जिंदगी बिगाड़ दी,
कहीं का भी नहीं छोड़ा, हसरतें हजार दी।

-- नहीं जमा | बिगाड़ और हजार का मेल ?
और सब ठीक लगा |


स्नेह,
अवनीश

कामोद Kaamod का कहना है कि -

यारी में उजड़ गए कई यारों के घरोंदे,
चोटें मेरी तबियत को तूने जो बेशुमार दी।

बहुत बढ़िया.

दीपाली का कहना है कि -

मेरा उनसे एकतरफा इश्क था क्या बुरा,
इकरार की दी आरजू औ' दौलते-इंकार दी.

बहुत ही बढ़िया लिखा है.

Harihar का कहना है कि -

मेरा उनसे एकतरफा इश्क था क्या बुरा,
इकरार की दी आरजू औ' दौलते-इंकार दी।

बहुत अच्छी गजल है तन्हा जी!

Anonymous का कहना है कि -

वाकई आप को ग़ज़ल का क ख ग भी तो नहीं आता सीखें या न लिखें अगर शब्दों के ऐसे जुगाड़ ग़ज़ल कहलायेंगे ,तो मेरे गालिब अपनी कब्रों में कराहयेंगे|

विश्व दीपक का कहना है कि -

अनाम बंधु!
आपकी टिप्पणी का शुक्रिया।

जीवन सीखने का हीं नाम है, इसलिए धीरे-धीरे मैं भी सीख हीं रहा हूँ। मेरी यह रचना गज़ल है या नहीं, यह तो आप सभी पाठक हीं निर्धारित करेंगे। अब आपके अनुसार मुझे गज़ल का "क ख ग घ" भी नहीं आता, तो कृप्या इस "क ख ग घ" से मुझे अवगत कराएँ, तभी तो यह नाचीज़ सीख पाएगा।

अच्छा लगता है अगर आप अपने व्यक्तित्व से मेरा परिचय करा देते, तभी तो आपके पद-चिह्नों पर चलने की मैं कोशिश करता, यह अनाम का छ्द्म भेष धरने की क्या आवश्यकता थी।

मिर्जा गालिब को इतना वक्त कहाँ, कि हरेक कथित गज़ल के शव पर वो कराहें। और अगर उन्होंने कराहना शुरू कर दिया होता, तो अब तक तो उनकी लाश भी कितनी बार मर चुकी होती।

अन्त में फिर से आपका शुक्रिया।

विश्व दीपक का कहना है कि -

विनय जी, अवनीश जी!

आपकी टिप्पणियों के पश्चात मुझे भी अपने पहले शेर में कमी का अहसास हो गया है।

अगली बार से कोशिश करूँगा की ऎसी गलती न हो।

सभी मित्रों की अमूल्य टिप्पणी का शुक्रिया।

वीनस केसरी का कहना है कि -

तनहा जी गजल लेखन विधि सीखने के लिए यहाँ पर पधारें
और पुरानी पोस्टों को पढें
www.subeerin.blogspot.com


वीनस केसरी

Sajeev का कहना है कि -

तनहा भाई इस बार मुझे भी मज़ा नही आया

Smart Indian का कहना है कि -

no comments!

Pooja Anil का कहना है कि -

तनहा जी,

आपकी रचनाएं पहले भी पढ़ चुकी हूँ , उनके मुकाबले कुछ कम लगी .

सादर
^^पूजा अनिल

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