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Thursday, September 04, 2008

आज की आवाज़


इंद्रधनुष के दो सिरों को खींचकर
टंकार कर दे आसमां में।
हथेली में हक को अपने भींचकर
हुंकार कर दे इस जहां में॥

रास्तों पर मंजिलों के
दर का पता तू टांक दे,
मंजिलों को अपने घर की
नींव का हीं फांक दे ।

हो गुमां पलको को जिनपे
आँख को यूँ ख्वाब दे,
लहरों से साहिल आ मिले
और पर्वत्तों को आब दे।


अपने लहू की सुर्खियों को बाँधकर
आग भर ले हर बयां में।
कायरों के नस्ल को अब लांघकर
नाग जड़ दे तू हया में ॥

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

Advocate Rashmi saurana का कहना है कि -

bhut sundar. badhai ho.

Pooja Anil का कहना है कि -

तन्हा जी ,

हमेशा की तरह बहुत सुंदर रचना है . एक विनम्र विनती है , कृपया अन्तिम ४ पंक्तियों की व्याख्या कर दें. धन्यवाद .

दीपाली का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर वीर रस कविता.

Anonymous का कहना है कि -

उत्साह भरी रचना अच्छी रचना .
सादर
रचना

Smart Indian का कहना है कि -

बहुत जोशीली रचना!

Harihar का कहना है कि -

अपने लहू की सुर्खियों को बाँधकर
आग भर ले हर बयां में।
वाह तन्हाजी ! क्या बात कही है !!

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