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Wednesday, August 13, 2008

रोजगार कार्यालय की लम्बी कतार में


हिन्दुस्तान में बारोजगार होना कितना मुश्किल है, यह कोई बताने की बात नहीं है। बेरोजगारी के कारण युवाओं द्वारा धन-उगाही के गलत तरीके और शॉर्टकट चुनना अब आम बात हो गई है। लेकिन इस बार आठवें पायदान की कवयित्री रचना श्रीवास्तव ने एक ऐसे युवक पर अपने काव्य-कलम चलाई है जो बेरोजगार तो है लेकिन ईमान का बिक्रेता नहीं है। गौरतलब है कि रचना की एक ग़ज़लनुमा रचना हम पिछले माह भी प्रकाशित कर चुके हैं।

पुरस्कृत कविता- बेच न पाया ईमान

मैं आज का नौजवान
बेरोजगारी से
हूँ परेशान
व्यंग-बाण से बिंधा
कटाक्ष से घायल
मैं उम्मीद में इसकी
न जाने कितने जन्म
लेता रहा मरता रहा
लगा कर लूँ कुछ व्यापार
संग अपने दूँ
औरों को भी रोजगार
विचार आया
खोल लूँ
एक दुकान
जहाँ पे ग्राहक
सच में
समझा जाएगा भगवान
समान होगा शुद्ध
देने होंगे वाजिव दाम
ईमानदारी से होगा
जहाँ सब काम
इन्हीं सपनों के साथ
ले बैंक से क़र्ज़
बनाई हम ने अपनी दुकान
लोग आए
खूब बिका अपना सामान
लगा के
जल्दी ही चुका दूँगा कर्ज़
पूरा कर पाऊँगा
सारा फ़र्ज़
दूसरे दिन देखा
लगी थी दुकान पे भीड़ भरी
असली था समान
इसीलिए आई है
शायद जनता भारी
पहुँचा वहाँ
तो रह गया हैरान
लौटा रहे थे
लोग अपना समान
देशी घी खा के तेरा
बीमार है पूरा घर मेरा
तेल में है
अलग सी गंध
मसालों में है
कुछ ज्यादा सुगंध
सारे समान का बुरा है हाल
ख़राब है तुम्हारा पूरा माल
अरे भाई साहब!
तभी तो है इतना कम दाम
मैं कहता रहा
असली है एकदम असली है हर समान
ज्यादा मुनाफा चाहता नहीं
इसीलिए रखा कम दाम
पटक समान
चला गया हर इन्सान
मैं बैठा रहा
हो के परेशान
नकली-असली में
कुछ इस कदर घुल चुका था
मिलावटी समान का स्वाद
जिव्हा पे कुछ इस कदर चढ़ चुका था
के हर कोई
असली को नकली
समझ रहा था
बगल के दुकानदार ने कहा
करो थोड़ी मिलावट
और बढ़ा दो दाम
चल निकलेगी तुम्हारी दुकान
माँ की खांसती रातें
पिता की अंधी होती आँखें
भाई की पढ़ाई
बहन की सूनी कलाई
याद आया सब कुछ
फ़िर भी बेच न पाया
मैं आपना इमान
रोजगार कार्यालय की
लम्बी कतार में
खड़ा हो गया मैं
एक और भारतीय नौजवान



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३, ४॰५, ५॰५, ६॰३, ९
औसत अंक- ५॰६६
स्थान- दसवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ५॰५, ५॰६६(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰७२
स्थान- आठवाँ


पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'दिखा देंगे जमाने को' भेंट करेंगे।

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

माँ की खांसती रातें
पिता की अंधी होती आँखें
भाई की पढ़ाई
बहन की सूनी कलाई
याद आया सब कुछ
फ़िर भी बेच न पाया
मैं आपना इमान
रोजगार कार्यालय की
लम्बी कतार में
खड़ा हो गया मैं
एक और भारतीय नौजवानरचना जी
बेरोज़गारी का बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने। आपकी शैली बहुत सुन्दर है। इक चित्र सा आँखों के सामने आगया। बधाई स्वीकारें।

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी कविता है, समय में होते सभी परिवर्तन इसमें समेटे गये हैं!

Harihar का कहना है कि -

चल निकलेगी तुम्हारी दुकान
माँ की खांसती रातें
पिता की अंधी होती आँखें
भाई की पढ़ाई
बहन की सूनी कलाई
याद आया सब कुछ
फ़िर भी बेच न पाया
मैं आपना इमान

बहुत अच्छी कविता रचना जी!
बेरोजगार के जीवन का आइना है यह कविता!

Unknown का कहना है कि -

माँ की खांसती रातें
पिता की अंधी होती आँखें
भाई की पढ़ाई
बहन की सूनी कलाई
याद आया सब कुछ
फ़िर भी बेच न पाया
मैं आपना इमान
रोजगार कार्यालय की
लम्बी कतार में
खड़ा हो गया मैं
एक और भारतीय नौजवान

बहुत ही अच्छा लिखा
दिल को छू गयी ये पँक्तियाँ....

सुमित भारद्वाज

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

नकली-असली में
कुछ इस कदर घुल चुका था
मिलावटी समान का स्वाद
जिव्हा पे कुछ इस कदर चढ़ चुका था
के हर कोई
असली को नकली
समझ रहा था

-- यह एक सामाजिक व्यथा है | हमारे यहाँ तो अब नकलीपन एक नियम ( system) सा बन गया है |
यदि इसे हटाने की कोशिश भी करें तो हम odd man out हो जाते है |

बधाई सुंदर रचना के लिए |


अवनीश तिवारी

Anonymous का कहना है कि -

सुंदर रचना के लिए बधाई जी.
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

आप सभी ने कविता को पसंद किया इस के लिए आप का दिल की गहराइयों से बहुत बहुत धन्यवाद .आप की लिखी बाते मुझे उत्साह और विश्वास देती हैं
सादर
रचना

Anonymous का कहना है कि -

rachna ji aap ki rachna tai sunder hai .dil ko chhune vali.sachchai batane vali .abhi bhi desh me hain kuchh imandar loog likhti rahen
dinesh

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

नकली-असली में
कुछ इस कदर घुल चुका था
मिलावटी समान का स्वाद
जिव्हा पे कुछ इस कदर चढ़ चुका था

बहुत अच्छा व्यंग्य रचना जी...

Anonymous का कहना है कि -

aap ki kavita padh ke muh se nikla vah bhai vah .
mita

Anonymous का कहना है कि -

rachna ji
kya khoob kaha hai
achchhi kavita ke liye badhai
madhu

Unknown का कहना है कि -

खूब बिका अपना सामान
लगा के
जल्दी ही चुका दूँगा कर्ज़
पूरा कर पाऊँगा
सारा फ़र्ज़

माँ की खांसती रातें
पिता की अंधी होती आँखें
भाई की पढ़ाई
बहन की सूनी कलाई
याद आया सब कुछ
फ़िर भी बेच न पाया
मैं आपना इमान
In chand panktiyon mein ek bhartiye naujawan ki asha nirasha aur himmat ko bahut sunderta se sameta hai rachna aapne. Dil se nikli baat dil tak pahunchi aur ankhon ko nam kar gayi.

raybanoutlet001 का कहना है कि -

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