जुलाई माह की प्रतियोगिता के ९वें स्थान पर डॉ॰ सी॰ जयशंकर बाबु की कविता है, जो मूलतः तेलगू भाषी है मगर हिन्दी के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं। इनकी एक कविता का प्रकाशन हम दिसम्बर २००७ में कर भी चुके हैं।
पुरस्कृत कविता- टिम-टिमाता दीप
अपने घर के आंगन के दोनों तरफ़
फाटक के पास दीवारों पर बड़े-बड़े ग्लो-लाइट
उधर अंदर हरियाली भरे लॉन में फ़ोकस-लाइट
बगीचे में इधर-उधर शो-लाइट
इन तमाम चकाचौंधों के बीच
चमकदार हेडलाइट के साथ मेरी कार
अंदर प्रवेश करती है
उधर कॉलिंग बेल ट्रिंग – ट्रिंग
दरवाजा खुलते ही सामने दीवार पर
जगमगाते तारों की भांति
रंगीन बल्बों से सजा हुआ बालाजी के फोटो का दर्शन
बरामदे में ही हीरे का चकाचौंध वाला डिजाइन-लाइट भी
ड्राइंग रूम में छत पर सज़ा चैनीज़-लैंप
चारों ओर फ्लोरोसंट-लैंप
उधर किचन में पहुँच जाऊँ
इलैक्ट्रिक बाइलर में कॉफ़ी रेडी
और इधर फ्रिज में सारी चीज़ें प्रिजर्वड हैं
शायद कल सुबह नास्ते पर दोसा बनाने की योजना हो
इधर आटा पीसने में ग्राइंडर व्यस्त है
डैनिंग हॉल में पंखे एवं तमाम लाइट अभी चालू हैं
उधर म्यूसिक सिस्टम भी ऑन
इधर पसंदीदा पखवानों का डिनर चालू
थोड़ी देर बाद टी.वी. के सामने बिताने में मैं मस्त
उधर बेड्रूम में ए.सी. ऑन हो गया
अब मैं अपने बेड-लैंप को भी टॉस्क दूँगा....
ये हैं इधर की गतिविधियाँ
रात भर पवर के सहारे ही हमने सुख की नींद ली
पुनः पवर से ही दिन शुरू
उधर ओवर हेड टैंक में पानी भरने के लिए मोटर चालू हैं
बगीचे में पौधों के बीच स्प्रिंक्लर्स चालू
इस बीच ट्रेड मिल पर मेरा वाकिंग चालू
उधर बच्चे सैक्लिंग और श्रीमती अपने कामों में व्यस्त
सबका पवर से ही काम
थोड़ी देर बाद स्टीम-बाथ
तत्पश्चात् म्यूसिक सिस्टम में मंत्रोच्चार के बीच पूजा-पाठ,
नाश्ता भी फिनिश करके थोड़ी देर के लिए रीडिंग रूम में पहुँच जाता मैं
उधर टेबल पर मेरी प्रतीक्षा में अख़बार
सरासर सुर्खियों की ओर मेरी नज़र दौड़ती है
“किसान की ...."
सुर्खी के साथ
रोधन करती महिला का रंगीन चित्र ...
मैं वातानुकूलित कमरे में बैठकर
आराम से अख़बार पढ़ रहा हूँ....
किसान के लिए अपनी सयानी बेटी की शादी की चिंता तो दूर
गले के नीचे उतरने के लिए दो दाने की भी कमी
जोते हुए खेत ने जिन यातानाओं को दूर नहीं किया
किसान के हाथों से काती गई रस्सी ने
उदारतापूर्वक उसकी यातानाएँ पलभर में दूर करने की जिम्मेदारी ली
उधर पेड़ पर लटके किसान भाई को जलाने के लिए काष्ठ की भी कमी
किसान का कुटिया रातों में अंधेरा ही नज़र आता है
टिम-टिमाते दीप के लिए तेल की भी कमी
अब मोटर के लिए पवर कहाँ
दो बूँद पानी भी न मिलने से
जुताई की गई फसल सूखने से ...
महाजन के ऋण ने तो
किसाने के दिल को ही काट दिया ...
भारी मन से अखबार उधर रखकर
मैं दफ़्तर की चल पड़ा कार से
अपने कैबिन में प्रवेश करके आसन ग्रहण करते ही
कालिंग बेल दबाया
आज के तमाम ई-मेलों के प्रिंट ऑउट लेकर मेरी असिस्टेंट प्रस्तुत
मेरे दिमाग में किसान की आत्म हत्या की ख़बर
अभी भी ....
इसी बीच कहीं मेरे दिमाग में...
चौबीस घंटे हमें अपने इस्तेमाल के लिए पॉवर ही पॉवर
मगर किसान के उन प्यारे पौधों को सींचने के लिए
जो हमारे खान-पान के लिए ही हैं
दो बूँद पानी देने के लिए मोटर के लिए 'नो पवर'
... मेरे दिमाग में सोच का संघर्ष जारी
आँखें भर आईं
उधर किसान की झोंपड़ी में भले ही दीप न जले
अब मेरे दिमाग में कोई दीप
टिम-टिमाता नज़र आ रहा है ।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ४, ५॰५, ६॰४, ८॰२५
औसत अंक- ६॰०३
स्थान- पाँचवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰५, ५, ६॰०३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰५१
स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'दिखा देंगे जमाने को' भेंट करेंगे।
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी कविता है. सच ही है - मगर एक और पॉवर है - the power that corrupts and the absolute power that corrupts absolutely - हमारी राजनीति, प्रशासन एवं आतंकवाद की घटनाओं में यह पॉवर आम दिख रही है.
कविता अच्छी है.. मगर छोटी हो सकती थी..पावर के स्थान पर "पवर" बार-बार अखर रहा था...
किन्तु तेलुगूभाषी होने पर भी हिन्दी में लेखन काबिलेतारीफ है..
प्रथम १० में आने पर बधाई...
धन्यवाद..
तपन जी से सहमत हूँ
कविता में विस्तार अधिक केन्द्र कम है...
कविता छोटी होनी चाहिए थी कवि का तो काम ही है गागर में सागर भरना ................
वीनस केसरी
कविता बहुत है अच्छी। और पावर से ही ब्लोग भी चल रहा है।
आपकी कविता पढ़कर पहले तो लगा की आज जिस तरह से मशीने मनुष्य पर हावी हो रही है कवि उसकी व्याख्या कर रहा है
परन्तु अंत तक आते आते आपने समाज की असमानता को दर्शाया
दो अलग अलग भावो को एक कविता में समेटने के लिए बधाई
कही कही कुछ ग़लत शब्द टाइप हुए है किंतु आपका प्रयास हिन्दी के लिए काबिलेतारीफ है
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