शैफाली शर्मा ने वेबदुनिया में उप-संपादक के रूप में कार्य करने के साथ-साथ कविताएँ, कहानियाँ लिखने का शौक पूरा करने के लिए http://hindi.mywebdunia.com/ के जरिये ब्लॉगिंग की दुनिया में कदम रखा, तो पाठको के प्यार और सम्मान ने उसमें निरंतर बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया। साहित्यिक और आध्यात्मिक रचनाओं के साथ बेहद लगाव होने के साथ-साथ मानवीय रिश्ते और जीवन के अनसुलझे पहलुओं का अध्ययन, लेखन और मार्गदर्शन का अवसर प्राप्त होता रहा। वेबदुनिया पोर्टल में “जीवन के रंगमंच से” के नाम से एक स्तंभ भी लिखती हैं। ओशो, अमृता प्रीतम, गुलज़ार की मुरीद हैं इसलिए लेखन में उनका प्रभाव दिखाई देता है। बाकी आप इनकी कविता से इन्हें जान सकते हैं। इनकी एक कविता पिछले माह की प्रतियोगिता में ११वें स्थान पर है।
रंगमंच और मीडिया से जुड़ी हैं। ड्रामा, टेलीफिल्म और विज्ञापनों मे काम करती हैं। साथ ही दो बेटियों की माँ होने का गर्व भी प्राप्त हुआ है। हिन्द-युग्म से जुड़ना इनके लिए एक सम्मान का अवसर है और इन्हें खुशी है कि ये आज हिन्द-युग्म परिवार की सदस्य हैं।
कविता- आकाश एक बूढ़ा बाबा
रोज सुबह-सुबह दुधिया चादर ओढ़े एक बूढ़ा बाबा
अपनी पोटली में चमकता जादुई गोला लिए
आ खड़ा होता है चौखट पर.....
कहीं बीती रात के मीठे सपनें को
सतरंगी चुनरिया ओढ़ाता है,
कहीं रात की काली चुनरिया में
चमकीली टिकलियाँ टाँकता है,
तो कहीं धुँआ छोड़ते चुल्हे को
फूँक देकर जलाता है.......
अलसाते जीवन को
सुनहरे पानी के छींटों से उठाकर
वो बूढ़ा बाबा दिन भर
हाँकता रहता है सबको उपर बैठे
और फिर दिन भर के थके मन को
बैंगनी राहत देकर बहलाता है,
सबको थकान से भरी मुस्कुराहट देकर
बत्ती बुझाकर, लोरी सुनाता है,
तारें बच्चों की तरह उसके आँगन में खेलते रहते हैं
और वह हाथ में चाँद की टॉर्च जलाकर
रातभर जागकर रखवाली करता है...........
कितने सुरक्षित हैं हम उसकी पनाह में
जो स्थिर है फिर भी जीवंत है,
विशाल है लेकिन सीमित है
आँखों की सीमा तक,
जो ठिकाना नहीं देता
लेकिन स्वच्छंदता को पनाह देता है।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, २॰५, ५॰७५, ७॰०५, ७
औसत अंक- ५॰६६
स्थान- ग्यारहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ५, ५॰६६(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰२२
स्थान- ग्यारहवाँ
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
"वो बूढ़ा बाबा दिन भर
हाँकता रहता है सबको उपर बैठे"
बहुत सुंदर कविता है. बधाई!
आकाश की बड़ी सुंदर व्याख्या की है आपने अपने कविता के माध्यम से
बधाई
bahut achchha likha hai akash ka sunder varnan hai
saader
rachana
कविता पढ़ के मन भटका उमड़-घुमड़ घिर आए बदरा
ज्यों बूढ़े बाबा के आंगन में बदरी को पिछियाए बदरा
:) सुन्दर उपमाओं से सज्जित कविता..
- शैफाली जी आपकी कविता को मेरे साथ पढते हुये साथ में बैठे बच्चे के सवाल ' आकाश बूढा बाबा न होकर बच्चा होता तो ??' पर तुर्तोदित हुई लघु कविता :-
बूढा न होता आकाश अगर
होता बच्चा सा काश अगर
तो,रख कन्धे पर हाथ हमें
ले जाता हमको सागर पर
या कभी पहाडों पर जाकर
शोर मचाते फिर जमकर
या लिये घूमते तारों को
छ्नकाते जेबों में भरकर
चन्दा सूरज के बिस्किट
खाते चाय में डिप करकर
बूढा ना होता आकाश अगर
बहुत सुंदर विवरण है..
बधाई..
राघव जी..आप बैठे बैठे ही कविता लिख डालते हैं..भई वाह!!!
आपकी हास्य कविता पढे हुए जमाना बीत गया..
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