मैं साकी को हीं हमनफ़स अब बना लूँ,
सबब 'मय' हीं 'मय',मैं बेसबब बना लूँ।
अदा से अदावत निभाए जो हमसे,
कसम पाक रब की, उसे रब बना लूँ।
मिले न मुझे खुशनसीबी के शब जो,
सुखन के हरेक हर्फ़ को शब बना लूँ।
मुझे वो बला जो नज़रबंद कर ले,
उसी पल अदब से उसे सब बना लूँ।
न पाई किसी ने इश्क से सरफ़राज़ी,
कहो क्यूँ मैं 'तन्हा' उसे ढब बना लूँ?
शब्दार्थ:
हमनफ़स- दोस्त, मित्र
सबब - कारण
अदावत - दुश्मनी
सुखन - कविता
हर्फ़ - अक्षर
सरफ़राजी - दुआ, फ़ायदा
ढब- रिवाज, नियम
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
मिले न मुझे खुशनसीबी के शब जो,
सुखन के हरेक हर्फ़ को शब बना लूँ।
क्या खूब लिखा है...बढ़िया।
बहुत ही संजीदगी से आपने ग़ज़ल लिखी है तनहा
तहे दिल से आपकी तारीफ़ करता हूँ
खासकर आपका ये शेर बहुत पसंद आया
अदा से अदावत निभाए जो हमसे,
कसम पाक रब की, उसे रब बना लूँ।
बहुत अच्छा
gazal bahut achchhi bani hai achchhe bhavon ke saath
badhai
saader
rachana .
तन्हा भाई... गज़ब लिखते हो यार.. कमाल है...
वाह बहुत अच्छा लगा पढ कर।
अदा से अदावत निभाए जो हमसे,
कसम पाक रब की, उसे रब बना लूँ।
बहुत खूब!
क्या बात है जनाब...
किस शे'र को ले उल्लेख करूँ,
हर शे'र गजल का भूप यहाँ
'गज' के जैसी हर परछांई
पर 'जल' के जैसा रूप यहाँ
कमाल कर दिया तन्हा भाई,बहुत ही मारक गजल लिखी है.
शानदार
आलोक सिंह "साहिल"
मैं साकी को हीं हमनफ़स अब बना लूँ,
सबब 'मय' हीं 'मय',मैं बेसबब बना लूँ।
अदा से अदावत निभाए जो हमसे,
कसम पाक रब की, उसे रब बना लूँ।
kaafi samay uprant padha aacha laga..
मैं साकी को हीं हमनफ़स अब बना लूँ,
सबब 'मय' हीं 'मय',मैं बेसबब बना लूँ।
अदा से अदावत निभाए जो हमसे,
कसम पाक रब की, उसे रब बना लूँ।
kaafi samay uprant padha aacha laga..
khair ...kehene ki koi jarurat nahi....aapki har gazal ek se badhkar ek hoti hai.
gazal ke mamle me aapko kuch kehna mere liye to suraj ko diya dikhane jaisa hai but i think bas last do line ke alfazo me thodi si ferbadal hoti to shayad tone thodi aur clear ho jati. :)
fir se badhai. :)
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