जीवन जल रहा है, क्यों सिसकी भर रहा है,
आग उगल रहा है, दावानल बन रहा है ।
मेघा बरस जाओ ! तप्त उर को हर्षाओ,
जीवन गान गाओ, विश्व की तपन मिटाओ ।
गरल निकल रहा है, जगत में फैल रहा है,
विष पीने को विवश, इंसान भटक रहा है ।
मन मंथन कराओ, दिलों में सुधा बहाओ,
जीवन गान गाओ, मनुज को राह दिखाओ ।
तम में घिर गया है, आलोक कहीं छिपा है,
सूझता न किसी को, अंतहीन यह विभा है ।
दिलों में दीप जला, रोशनी से नहलाओ,
जीवन गान गाओ, पथ प्रकाश से सजाओ ।
गंध भूल गया है, इंसान बहक गया है,
पुष्प भूल गया है, सिर्फ धन महक रहा है ।
फूलों को खिलाओ, जग में गंध बिखराओ,
जीवन गान गाओ, मन में खुशबू बसाओ ।
दुख स्थाई बना है, सुख वंचित हो गया है,
दुखों के सागर में, लगा डुबकियां रहा है ।
न रह पाएंगे दुख, तुम जिंदगी को जीओ,
जीवन गान गाओ, खुशियां खूब बिखराओ ।
शैतान हृदय छुपा, भगवान मूर्ति बना है,
मूर्ति कहाँ बोलती, दूसरों को डसना है ।
रब को दिल बसाओ, खुदी का सबब मिटाओ,
जीवन गान गाओ, खुदा को भी पा जाओ ।
कवि कुलवंत सिंह
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या खूब लिख़ा है, सर आपने! बधाइ स्वीकारें।
खासा अच्छा लगा.पर आपसे और अधिक कसाव की उम्मीद थी.
आलोक सिंह "साहिल"
कुलवंत जी,
हर दो पंक्तियों को अलग अलग पढ़ें तो अच्छी लग रही हैं.. पर एक साथ पढ़ने पर उतना मजा नहीं आ रहा जितना आपसे उम्मीद रहती है...
--तपन शर्मा
वाकई में प्रत्येक दो पंक्ति अपने में पूर्ण अर्थ रखती है.और उत्साहवर्द्धक है.
वाकई में प्रत्येक दो पंक्ति अपने में पूर्ण अर्थ रखती है.और उत्साहवर्द्धक है.
शब्द अच्छे हैं, भाव ठीक है, परंतु कविता एक स्तर की नहीं हो सकी है। आपसे बहुत उम्मीदें हैं। कृप्या ध्यान रखें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
Aap sabhi mitron kaa haardik dhanyavaad...
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