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जीवन गान गाओ !


जीवन जल रहा है, क्यों सिसकी भर रहा है,
आग उगल रहा है, दावानल बन रहा है ।

मेघा बरस जाओ ! तप्त उर को हर्षाओ,
जीवन गान गाओ, विश्व की तपन मिटाओ ।

गरल निकल रहा है, जगत में फैल रहा है,
विष पीने को विवश, इंसान भटक रहा है ।

मन मंथन कराओ, दिलों में सुधा बहाओ,
जीवन गान गाओ, मनुज को राह दिखाओ ।

तम में घिर गया है, आलोक कहीं छिपा है,
सूझता न किसी को, अंतहीन यह विभा है ।

दिलों में दीप जला, रोशनी से नहलाओ,
जीवन गान गाओ, पथ प्रकाश से सजाओ ।

गंध भूल गया है, इंसान बहक गया है,
पुष्प भूल गया है, सिर्फ धन महक रहा है ।

फूलों को खिलाओ, जग में गंध बिखराओ,
जीवन गान गाओ, मन में खुशबू बसाओ ।

दुख स्थाई बना है, सुख वंचित हो गया है,
दुखों के सागर में, लगा डुबकियां रहा है ।

न रह पाएंगे दुख, तुम जिंदगी को जीओ,
जीवन गान गाओ, खुशियां खूब बिखराओ ।

शैतान हृदय छुपा, भगवान मूर्ति बना है,
मूर्ति कहाँ बोलती, दूसरों को डसना है ।

रब को दिल बसाओ, खुदी का सबब मिटाओ,
जीवन गान गाओ, खुदा को भी पा जाओ ।

कवि कुलवंत सिंह