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Sunday, August 10, 2008

छत पर मैं हूँ और चाँद है...


आज न जाने जब से मेरी आँख खुली है,
दिन का ताना-बाना थोड़ा-सा बेढब है...
सूरज रूठे बच्चे जैसी शक्ल बनाकर,
आसमान के इक कोने में दुबक गया है...
कमरे के भीतर सन्नाटा-सा पसरा है...
कैलेंडर पर जानी-पहचानी सी तारीख दिखी है...
(जाना-पहचाना सा कुछ तो है कमरे में....)
नौ अगस्त....

नौ अगस्त...
बचपन में माँ ठुड्डी थामे कंघी करती थी बालों पर,
पापा हरदम गीला-सा आशीष पिन्हाते थे गालों पर,
बड़े हुए तो दूर अकेले-से कमरे में,
गीली-सी तारीख है,मैं हूँ,कोई नहीं है....

रिश्तों की कुछ मीठी फसलें,
बीच के बरसों में बोईं थीं,
वक्त के घुन ने जैसे सब कुछ निगल लिया है....

बढ़ते लैंप-पोस्ट और रौशनी की हिस्सेदारी के बीच,
लम्बी सड़कों पर सरपट दौड़ती साँसे,
जिंदगी को कितना पीछे छोड़ आई हैं,
अब ये भरम भी नहीं कि,
पीछे मुड़कर हाथ बढाओ तो
जिंदगी मेरी अंगुली थामकर चलने लगे....

एक शहर था,
जहाँ मेरी एक सिहरन,
तुम्हारे घर का पता ढूंढ लेती थी,
और फ़िर,
शोरगुल भरे शहर में,
तुम्हारे अहसास मैं आसानी से सुन पाता था...
एक शहर जहाँ जिस्म की दूरियां,
एहसास के रास्ते में कभी नहीं आयीं,
कभी नहीं.....

आज मुझे अहसास हुआ है,
उम्र का रस्ता तय करने में,
कुछ न कुछ तो छूट गया है...
कच्चे ख्वाब पाँव के नीचे,
नए ख्वाबो को लपक रहा हूँ....
हांफ रहा हूँ,

हाँफते-हाँफते अब अचानक मुझे,
याद आया है कि,पिछले मोड़ पर
नींद फिसल गई है "वॉलेट" से,
दिल धक् से बेचैन हुआ है....
इतनी लम्बी सड़क पे जाने किस कोने में,
बित्ते-भर की नींद किसी चक्के के नीचे,
अन्तिम साँसे गिनती होगी....
ख्वाब न जाने कहाँ मिलेंगे..

नौ अगस्त पूरे होने में
बीस मिनट अब भी बाकी हैं,
छत पर मैं हूँ और चाँद है...
(वो भी आधा, मैं भी आधा)

चाँद मेरे अहसास के चाकू से आधा है,
केक समझकर मैंने आज इसे काटा है,
आधा चाँद उसी शहर में पहुँचा होगा,
जहाँ कभी एहसास कि फसलें उग आई थीं,
जहाँ कभी मेरे गालों पर,
गीले-से रिश्ते उभरे थे....
..............................

निखिल आनंद गिरि

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

जन्म दिन की अनेक अनेक शुभकामनाएं |

कविता के बारे में क्या कहूँ ? यदि एक शब्द में बखानना हो तो कह सकता हूँ - Excellent !

दुबारा पढ़ने जा रहा हूँ रचना |

-- आपका,
अवनीश

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

कुछ पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर है -

१.
रिश्तों की कुछ मीठी फसलें,
बीच के बरसों में बोईं थीं,
वक्त के घुन ने जैसे सब कुछ निगल लिया है....

-- वाह वाह | इसे कौन सा अलंकार कह सकते हैं ?

चाँद मेरे अहसास के चाकू से आधा है,
केक समझकर मैंने आज इसे काटा है,
आधा चाँद उसी शहर में पहुँचा होगा,
जहाँ कभी एहसास कि फसलें उग आई थीं,
जहाँ कभी मेरे गालों पर,
गीले-से रिश्ते उभरे थे....

-- क्या व्यथा है अपनों से दूर रहने का |

मेरा ख्याल है साहित्यकारों के लिए चाँद एक ऐसा उपग्रह (satellite) है जो दूर के अपनो को संदेश पहुंचाता है |
एक से receive कर दुसरे को send करता है |


३.सूरज रूठे बच्चे जैसी शक्ल बनाकर,
आसमान के इक कोने में दुबक गया है...

-- यह भी खूब बना है |


बधाई |


अवनीश तिवारी

shivani का कहना है कि -

सबसे पहले मेरी ओर से आपको आपके जन्मदिन पर अनेकानेक शुभकामनाएं !इश्वर से दुआ है की आप दीर्घायु हों ओर आपकी कलम इसी प्रकार निरंतर चलती रहे !आपकी कविता पढ़ी !बहुत अच्छी लगी ,हर पंक्ति बार बार पढने को दिल करता है आपकी लेखनी में बहुत दम है !बस इसी तरह लिखते रहिये !

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयाँ।

यादों के समंदर में गहरी डुबकी मार कर अहसास के मोती निकाल लाए हैं निखिल जी-----
इन मोतियों को हिन्द-युग्म के शीप में सजाने के लिए शुक्रिया।
-देवेन्द्र पाण्डेय।

Smart Indian का कहना है कि -

आदि से अंत तक बहुत ही सुंदर कविता है निखिल जी. धन्यवाद.

परमजीत सिहँ बाली का कहना है कि -

बहुत सुन्दर रचना है।अपनें भावों को बखूबी अभिव्यक्त किया है।

Anonymous का कहना है कि -

जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं निखिल भाई,
रही बात कविता की तो ये पंक्तियाँ ज्यादा खास लगीं...
चाँद मेरे अहसास के चाकू से आधा है,
केक समझकर मैंने आज इसे काटा है,
आधा चाँद उसी शहर में पहुँचा होगा,
जहाँ कभी एहसास कि फसलें उग आई थीं,
जहाँ कभी मेरे गालों पर,
गीले-से रिश्ते उभरे थे....
आलोक सिंह "साहिल"

Divya Prakash का कहना है कि -

mएक शब्द "गज़ब" !!
जन्मदिन की हार्दिक शुभ कामनाएं

Prem Chand Sahajwala का कहना है कि -

कविता बेहद दिल को छूने वाली लगती है. कवि प्रतिभा सम्पन्न हैं. मानवीय संवेदना को कागज़ पर बहुत मार्मिक ढंग से उतारते है. ये पंक्तिया विशेष कर बेहद बेहद सुंदर लगती हैं:

चाँद मेरे अहसास के चाकू से आधा है,
केक समझकर मैंने आज इसे काटा है,
आधा चाँद उसी शहर में पहुँचा होगा,
जहाँ कभी एहसास कि फसलें उग आई थीं,
जहाँ कभी मेरे गालों पर,
गीले-से रिश्ते उभरे थे....

साधुवाद. अन्य कविताओं की प्रतीक्षा रहेगी.

Anonymous का कहना है कि -

janm din ki dheron shubhm kamnayen
aap sada yu hi likhte rahen
kavita to bahut hi achchhi hai

saader
rachana

Unknown का कहना है कि -

नौ अगस्त पूरे होने में
बीस मिनट अब भी बाकी हैं,
छत पर मैं हूँ और चाँद है...
(वो भी आधा, मैं भी आधा)

चाँद मेरे अहसास के चाकू से आधा है,
केक समझकर मैंने आज इसे काटा है,
आधा चाँद उसी शहर में पहुँचा होगा,
जहाँ कभी एहसास कि फसलें उग आई थीं,
जहाँ कभी मेरे गालों पर,
गीले-से रिश्ते उभरे थे....
......

बहुत अच्छी कविता
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

सुमित भारद्वाज

Avanish Gautam का कहना है कि -

अब मैं क्या लिखूँ आपने तो खुद ही अपने जन्मदिन पर इतनी सुन्दर और संवेदनशील कविता लिख ली है.
बहुत बहुत बधाईयाँ, शुभकामनाएँ, जन्मदिन के लिए भी और कविता के लिए भी.

विश्व दीपक का कहना है कि -

निखिल जी!
जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

कविता सच में बेहद खूबसूरत बनी है, खुद को महसूस कराती है।
बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

अभिषेक पाटनी का कहना है कि -

MANY MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY !

HAPPY B'DAY

DEAR MOST NIKHIL !

this is good know giving salutation on own birthday through words...no...no bunch of words....fantabulous

Sajeev का कहना है कि -

अरे मेरे चाँद, तुम्हारा जन्मदिन मैं कैसे भूल गया, क्या कविता लिखी है भाई......ढेरों शुभकामनायें

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