हिन्द-युग्म पर अत्यधिक सक्रिय तपन शर्मा की कविता 'किताब' यूनिकवि प्रतियोगिता के जून अंक में पाँचवें स्थान पर हैं। तपन एक इंजीनियर कवि हैं। नोएडा में कार्यरत हैं और इंटरनेट और हिन्दी को अपना अधिकतम समय देते हैं।
पुरस्कृत कविता- किताब
आज किताब के पन्ने
उलट कर देख रहा हूँ,
जो पीले पड़ गये हैं
कहीं-कहीं पर
नीली स्याही से
फैल गये हैं
सुंदर अक्षर
जो कभी हुआ करते थे मोती,
किताब के शुरू में ही
जो लिखा हुआ था मेरा नाम
अब हल्का पड़ चुका है,
कोने से जो कुतरी है
चूहों ने किताब,
उसकी कतरन
बिखरी हुई है फ़र्श पर
सम्भाल कर उठानी पड़ रही है अब
वो किताब,
जिस पर कभी
चढ़ाई थी मज़बूत जिल्द
सालों पहले।
कुछ पन्ने अभी भी
मोड़े हुए हैं,
जैसे याद रखने हों
उन पन्नों में लिखे हुए
वो हसीन खूबसूरत पल,
एक दुर्गँध आ रही
पुरानी किताब में से,
पर नहीं रोक पा रही है खुशबू
उन मुड़े हुए पन्नों की।
मैं जी लेना चाहता हूँ वो पल
बार-बार पढ़ता हूँ वो हँसी
जो लिखी गई थी कभी
उन खुशबूदार पन्नों पर।
उसी महक को अब
बिखेर देना चाहता हूँ मैं आगे भी
ताकि लिखता रहूँ उन्हें
किताब खत्म होने से पहले तक!!
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰१५, ६॰५
औसत अंक- ६॰८३
स्थान- दूसरा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ६, ४, ८॰२, ६॰८३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰८०५
स्थान- पाँचवाँ
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'मौत से जिजीविषा तक' भेंट करेंगे।
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी लगी आपकी यह रचना
tapan babu... padhta to main humesha huin tumhari rachnaye.. lekin aan likh bhi raha huin... Jaise main khud kisi purani kitab ko khol kar baitha huin.. kaafi achha laga... kavita kaisi hian yeh sochna hi nahi pada.. bus poori tarah purani kitabo ki yaade nayi ho gayi :)
बार-बार पढ़ता हूँ वो हँसी
जो लिखी गई थी कभी
उन खुशबूदार पन्नों पर।
bahut sundar ....khoobsurat rachna
अति सुंदर तपन जी. कितनी सहजता है आपके शब्दों में, और प्राकृतिक प्रवाह भी. खुशबूदार पन्नों की खुशबू बहुत अच्छी लगी. लिखते रहिये.
बहुत बढ़िया है तपन जी, बधाई टॉप १० में स्थान बनाने के लिए, जल्दी ही नम्बर १ बने आप यही कामना है
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-बार-बार पढ़ता हूँ वो हंसी
जो लिखी गई थी कभी
उन खुशबूदार पन्नों पर
उसी महक को अब
बिखेर देना चाहता हूँ मैं आगे भी-----
--विशेष रूप से इन पंक्तियों के लिए बधाई स्वीकार करें----
-देवेन्द्र पाण्डेय।
-
bohot achhi kavita hai.
purani kitaab jisko kabhi mann se padha.. jo achha laga wo panna mod diya.
bohot achha chitran hai.
par ek baar phir kehena chahungi ki kavita ki sbase jyada khunsurati uski tukbandi mein hai.. to bhawon ko aur jyada spasht roop prastut karti hai.
बधाई हो भाई जी.
आलोक सिंह "साहिल"
मैं जी लेना चाहता हूँ वो पल
बार-बार पढ़ता हूँ वो हँसी
जो लिखी गई थी कभी
उन खुशबूदार पन्नों पर।
अच्छी लगी आपकी यह रचना
मैं जी लेना चाहता हूँ वो पल
बार-बार पढ़ता हूँ वो हँसी
जो लिखी गई थी कभी
उन खुशबूदार पन्नों पर।
उसी महक को अब
बिखेर देना चाहता हूँ मैं आगे भी
सुंदर रचना तपन जी टॉप १० के लिए बधाई
चूहों ने किताब,
उसकी कतरन
बिखरी हुई है फ़र्श पर
सम्भाल कर उठानी पड़ रही है अब
वो किताब,
जिस पर कभी
चढ़ाई थी मज़बूत जिल्द
सालों पहले।
भौतिकतावादी समाज पर कठोर व्यंग्य !
मित्रों, आप सभी का धन्यवाद जो मेरी कविता को सराहा...मैंने कुछ दिन पहले ही ध्यान दिया कि हिन्दयुग्म से जुड़े हुए मुझे एक साल से ऊपर हो गया है..इस बीच मेरी ५ बार कविता पहले १० में स्थान बना पाई और सभी का स्नेह व प्रोत्साहन मिला जिसकी वजह से मैं लगातार लिख रहा हूँ व भाग ले रहा हूँ समय बहुत तेजी से बीत गया है.. इस बीच युग्म ने कईं पडाव पार किये हैं..हम सभी का दायित्व बनता है कि हिन्द और हिन्दी के लिये हम कुछ करें..छोटा सा योगदान भी कई बार बड़ा साबित होता है..टिप्पणी करें या कविता लिख कर सेवा करें, मुझे लगता है कि बहुत है। आशा है कि हम सब मिलकर हिन्दी को वो स्थान दिलवा पायेंगे जिसका इस भाषा को हक है!!
--तपन शर्मा
तपन जी हम आपके साथ है
आप इसी तरह अच्छा लिखते रहिये
हम हिन्दी को उस शिखर तक ले जायेंगे जो शिखर हिन्दी के लिए हम सब के दिल में है
तपन शर्मा जी,
आपकी कविता
१) पाठक को अपने आप से जोड़ती है,...
२) भाव पाठक को वश मै कर लेते है
३) भाषा इतनी सरल की पढ़ते पढ़ते ही.. सारे द्रश्य आँखों के सामने आ जाते है
इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई..
सादर
शैलेश
एक दुर्गँध आ रही
पुरानी किताब में से,
पर नहीं रोक पा रही है खुशबू
उन मुड़े हुए पन्नों की।
pyare tapan,
yahaan durgandh nahin gandh hona chahiye, gandh ko phir bhi sughane ko dil karta hai.
congrats and keep it up. all the best
rajesh sharma
तपन जी,
अतुकांत कविताओं में भी लय होती है। इस कविता में मुझे लय का सर्वथा अभाव दिखा। इसलिए मैं इस कविता से बहुत अधिक प्रभावित नहीं हआ। हाँ, आपने कथ्य ज़रूर अच्छा चुना था।
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