जैसे-तैसे कट रही जिन्दगी।
पहले हम
सरदारों, नवाबों,
राजाओं के गुलाम थे
फिर संतरियों
तथा मंत्रियों के
गुलाम बने
अब हम
पदार्थोन्मुखी हैं
यानी
बाजार के
विज्ञापन के गुलाम हैं
गुलाम हैं
साबुन, तेल, टी.वी.
स्टीरियों, कार,
कम्प्यूटर बेचती
नंगी मादा देह के
इस मादा देह का
अवगुठन नहीं,
मात्र नाम बदलते हैं।
देह तो मात्र
जवान गठीली,
उत्तेजक माशपेशियाँ तथा गोलाईयाँ हैं
हाँ इनके
नाम बदलते रहते हैं
जैसे
ऐश्वर्य, सुष्मिता, लारा दत्ता,
करिश्मा या करीना कपूर
अक्षय, अजेय यौवन के ख्वाब बेचते
पच्चीस साल के बुड्ढे, या साठ साल के जवान के
या फिर अन्दर का मामला है
का गोविंदा
या के.बी.सी. को लॉक करने वाला
बुढ़ाता निरीह अमिताभ
जिसपर तरस खाकर
हम खरीदते हैं हिमानी तेल
हालाँकि मालिश के लिए
न हमारे पास वक्त है
न ही सिर
कबन्धों के पास कभी सिर हुआ है?
जो हमारे पास होता।
उसके धमकाने पर
हम पहुँच जाते है अस्पताल
अपने शिशुओं को
पोलियों ड्राप्स दिलवाने
बस इसी तरह
गुलामी में कटे हैं
हमारे पूर्व जन्म
और
कट रही है यह उम्र भी
जैसे
तैसे
-यूनिकवि श्याम सखा 'शयाम'
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
बाजार के
विज्ञापन के गुलाम हैं
गुलाम हैं
साबुन, तेल, टी.वी.
स्टीरियों, कार,
कम्प्यूटर बेचती
नंगी मादा देह के
श्याम जी आपने कड़वी सच्चाई को उजागर
किया है
बहुत खूब श्याम जी..
अच्छा व्यंग्य हैं। कभी-कभी सोचता हूँ कि हमारे ये स्टार सभी बुराइयों के खिलाफ निंदा करने की ही मुहिम छेड़ देते तो काफी कुछ बदल गया होता।
काफी अछि रचना आज के समाज में जैसा बाजारवाद हावी हो रहा है उस पर काफी अच्छा कटाक्ष
bahut sateek aur saarthak rachna....badhai.
श्याम जी, समसामयिक कथन है आपका. धन्यवाद.
बहुत ही सधा हुआ व्यंग प्रस्तुत किया है आपने.अच्छा लगा
आलोक सिंह "साहिल"
प्रस्तुत व्यंग अच्छा लगा
एक परिपक्व कवि की परिपक्व रचना ! सुंदर शिल्प, सामयिक आलंबन, सजीव बिम्ब व निर्भीक व्यंग्य !! किंतु रचनाधर्मिता व्यक्तिगत आक्षेप से प्रभावित !!!
अब हम
पदार्थोन्मुखी हैं
यानी
बाजार के
विज्ञापन के गुलाम हैं
गुलाम हैं
साबुन, तेल, टी.वी.
स्टीरियों, कार,
कम्प्यूटर बेचती
नंगी मादा देह के
यथार्थ चित्रण है.
कविता स्वीकारने-भावाभिव्यक्ति को महसूसने,दुलारने हेतु आप सभी काव्य मर्मज्ञों को नमन।
श्यामसखा‘श्याम’
पुनस्चः दिल्ली से प्रकाशित साहित्य अमॄत पत्रिका में एक कहानी छ्पी है जून अंक में कहीं मिले तो देखें आपको पसन्द आयेगी।
करण समस्तीपुरी जी.
जब हम बुद्ध ,ईसा को अच्छाई हेतु बिम्ब बना प्रयोग करते हैं न तो तब व्यक्तिगत होता है ,न ही इस कवितामें नाम आने से ,क्यों,क्योंकि ये सभी स्व्यं को बिम्ब या ब्रांड बनाकर ही तो विज्ञापन कर रहे हैं;अगर अमिताभ वाकई हिमानी तेल लगाता और यह सूचना खबर की तरह मिलती तो .व्यक्तिगत होता।अब वे बाज़ार बने हैं तो;जब उन्हे हक है है एक नाकुछ तेल को ग्लैमराइज करने का तो कवि को हक है व्यंग्य का ठीक उसी तरह जैसे लोग लालू को करतेअ है
'शयाम' जी,
आपकी कविता शुरू मै व्यंग के विषय की भूमिका को बंधती हुई... मध्य की पंक्तियों मै चरम तक पहुचती है बस अंत कुछ बेहतर हो सकता था..
- कबन्धों के पास कभी सिर हुआ है?
जो हमारे पास होता।
उसके धमकाने पर
हम पहुँच जाते है अस्पताल
अपने शिशुओं को
पोलियों ड्राप्स दिलवाने
बस इसी तरह
गुलामी में कटे हैं
हमारे पूर्व जन्म
और
कट रही है यह उम्र भी
जैसे
तैसे
ये पंक्तिया मुझे अच्छी नहीं लगी पता नहीं क्यों..शायद आपकी यहाँ पर गुलामी की परिभाषा मेरे समझने से अलग है,.
सादर
शैलेश
प्रिय शैलेश।
यहां इन पंक्तियो का आशय है कि आम मध्यवर्गीय व्यक्ति को बाज़ारी ताकतें अपनी विज्ञापन की ताकत से गुलाम बनाकर वह चीजें भी खरीदने पर मजबूर करती हैं जो वह अपनी मर्जी से विवेक से शायद न खरीदता।अब उस बाजारी ताकत के शूरमा है ब्रांड बने अभिनेता या खिलाड़ी।याने अब हम अपने बच्चों को उनके फ़ायदे के कारण नहीं अमिताभ के विज्ञापन के कारण पोलियो पिलाते हैं।यह व्यंग्य जहां अमिताभ या विज्ञापन शक्ति पर है वहीं आमजन की निरीहता पर भी है।
वैसे भी कविता का अर्थ तो पाठक को खुद ही निकालना होता है
मै यहाँ पर आप से सहमत नहीं हूँ..
मीडिया की वजह से आज.. देश के कोने कोने मै पोलियो के कारन और बचने के तरीके पता चले है ... और अगर लोग अमिताभ की आवाज़ सुन कर लोग अपने बच्चो को पोलियो पिलाते हैं.. तो आप ये कहना चाह रहे है.. की लोग अमिताभ की गुलामी कर रहे है.. जबकि आप भी ये जानते है की पोलियो सरकारी कार्यक्रम है और मुफ्त पिलाई जाती है..
इसे तो मै गुलामी के बजाई राष्ट्र चेतना कहूँगा,...
सादर
शैलेश
शैलेश-हिमानी तेल को कहोगे-बात न पोलियो की है न अमिताभ की बात बाजार की है।सुष्मिता या ऐश्वर्या को त्ब सुन्दरी चुना गया जब बाजार को उन्की जरूरत थी। उससे पह्ले लातिन अमरीकी वेन्जुएला पनामा,उर्गुए मे सुन्दरिया चुनकर ब्रांड बनाकर माल बेचा गया। अब सोवियत रूस के बिखरने के बाद इस्टर्न योरप की सुन्दरियो को चुन कर ब्रांड बनाया जाने लगा है।कुछ दिन बाद देखना चीन की बारी आएगी।कविता उधर इशारा कर रही है।
श्यामसखा‘श्याम
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