जून माह की यूनिकवि प्रतियोगिता की अंतिम रचना की बात करते हैं। इस स्थान पर हिन्द-युग्म पर बेहद सक्रिय पाठक-कवयित्री रचना श्रीवास्तव ने जगह बनाई है। लखनऊ (उ॰प्र॰) में जन्मी रचना को लिखने की प्रेरणा बाबा स्वर्गीय रामचरित्र पाण्डेय और माता श्रीमती विद्यावती पाण्डेय और पिता श्री रमाकांत पाण्डेय से मिली। भारत और डैलस (अमेरिका) की बहुत सी कवि गोष्ठियों में भाग लिया, और डैलास में मंच संचालन भी किया। अभिनय में अनेक पुरस्कार और स्वर्ण पदक मिला, वाद-विवाद प्रतियोगिता में पुरुस्कार, लोक संगीत और न्रृत्य में पुरुस्कार, रेडियो फन एशिया, रेडियो सलाम नमस्ते (डैलस), रेडियो मनोरंजन (फ्लोरिडा), रेडियो संगीत (हियूस्टन) में कविता पाठ। कृत्या, साहित्य कुञ्ज, अभिव्यक्ति, सृजन गाथा, लेखिनी, रचनाकर, हिंद-युग्म, हिन्दी नेस्ट, गवाक्ष, हिन्दी पुष्प, स्वर्ग विभा, हिन्दी-मीडिया इत्यादि में लेख, कहानियाँ, कवितायें, बच्चों की कहानियाँ और कवितायें प्रकाशित। पहली बार हिन्द-युग्म में प्रतियोगिता के माध्यम से इनकी कविता प्रकाशित हो रही है, इन्हें बहुत अच्छा लग रहा है।
पुरस्कृत कविता- जशन उस शहर में कोई कैसे मनाये
कुर्वत इतनी न हो के वो फासला बढ़ाये
मसर्रत का रिश्ता दर्द में न तब्दील हो जाये
जाना है हम को मालूम है फिर भी
ख्वाहिश ये के चलो आशियाँ बनायें
खुली न खिड़की न खुला दरवाजा कोई
मदद के लिए वहां बहुत देर हम चिल्लाये
रूह छलनी जिस्म घायल हो जहाँ
जशन उस शहर मे कोई कैसे मनाये
लुटती आबरू का तमाशा देखा सबने
वख्ते गवाही बने धृतराषटृ जुबान पे ताले लगाये
चूल्हा जलने से भी डरते हैं यहाँ के लोग
के भड़के एक चिंगारी और शोला न बन जाये
धो न सके यूँ भी पाप हम अपना दोस्तों
गंगा में बहुत देर मल-मल के हम नहाये
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰६, २।५
औसत अंक- ४॰८५
स्थान- चौबीसवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰५, ५, ६, ३, ४॰५५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰०१
स्थान- बारहवाँ
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25 कविताप्रेमियों का कहना है :
रचना जी,
बहुत खूब,
धो न सके यूँ भी पाप हम अपना दोस्तों
गंगा में बहुत देर मल-मल के हम नहाये
बधाई - सुरिन्दर रत्ती
गज़ल पसंद आई।
रचना जी,
बधाई स्वीकारें\
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बहुत अच्छे. वर्तनी पर थोड़ा ध्यान देने की ज़रूरत है. रचना अच्छी लगी.
हिन्द युग्म प्रतियोगिता में स्थान मिला और आप सब की टिप्पणियाँ इस से अच्छा क्या होसकता है
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
रचना
bahut khoob
badhai rachanaji
deepak
रूह छलनी जिस्म घायल हो जहाँ
जशन उस शहर मे कोई कैसे मनाये |
रचना जी सर्वप्रथम तो बहुत-बहुत बधाई आपकी रचना के लिए | आज ही बंगलोर में बम-ब्लास्ट हुआ और फ़िर आपकी कविता का शीर्षक ही इतना प्रभावित कर गया कि
जशन उस शहर में कोई कैसे मनाये बहुत ही सार्थक लगा | ....seema sachdev
जाना है हमको मालूम है फिर भी
ख्वाहिश ये के चलो आशियाँ बनायें
-वाह! क्या बात है!
-देवेन्द्र पाण्डेय।
ritbnबहुत ही सुंदर लिखा है-
धो न सके यूँ भी पाप हम अपना दोस्तों
गंगा में बहुत देर मल-मल के हम नहाये
बधाई.
रचना जी,
आपने बहुत खूब लिखा है, विशेषरूप से यह शे'र-
चूल्हा जलने से भी डरते हैं यहाँ के लोग
के भड़के एक चिंगारी और शोला न बन जाये
खुली न खिड़की न खुला दरवाजा कोई
मदद के लिए वहां बहुत देर हम चिल्लाये
रूह छलनी जिस्म घायल हो जहाँ
जशन उस शहर मे कोई कैसे मनाये
चूल्हा जलने से भी डरते हैं यहाँ के लोग
के भड़के एक चिंगारी और शोला न बन जाये
बहुत अच्छे शेरो के साथ सजी एक अच्छी ग़ज़ल
एक शेर मै कहना चाहूँगा
पत्थर दिल है यहाँ सभी, बेजुबान है आँखे
गैरत वो इंसा की फ़िर से अब कौन जगाये
रचना श्रीवास्तव जी,
सबसे पहले मै आप से इन शब्दों का अर्थ जन ना चाहूँगा..
कुर्वत ,मसर्रत
अब अगर मै आपकी ग़ज़ल के बारे मै कहू तो मुझे इस तरह लगा
१) आप का काफिया दूसरे शेर मै बिगड़ गया है..
आपने "आये" को काफिया बनाया था.. दूसरे शेर मै ये "आयें" हो गया है
२) वर्तनी मै बस कुछ ही जगह मुझे कमी लगी वो है -"जशन" ,"वख्ते गवाह"
३)और कुछ जगह अल्प विराम की भी कमी खली..
जो बातें मुझे बहुत अछि लगी वो की
१) आप ने ग़ज़ल मै नीरसता नहीं आने दी..
२) कुछ शब्दों को छोड़ कर सरल शब्दों का प्रयोग किया है
३) ग़ज़ल मै बहार को मै नहीं समझ पाया.. अगर आप बतायेंगी तो अच्चा रहेगा....
बधाई सुन्दर रचना के लिए
सादर
शैलेश
माफ़ करें आपके दूसरे शेर का रदीफ़ बिगड़ गया है न की काफिया..
मै यहाँ पर शब्दावली एक बार फिर से याद रखने के लिए लिख रहा हू
*शे'र'-दो पंक्तियों में कही गई पूरी की पूरी बात जहां पर दोनों पंक्तियों का वज़्न समान हो और दूसरी पंक्ति किसी पूर्व निर्धारित तुक के साथ समाप्त हो.
*'मिसरा उला' -शे'र की पहली लाइन होती है
*'मिसरा सानी' -शे'र की दूसरी लाइन होती है
*मिसरा :-'मिसरा सानी' व 'मिसरा उला' का सयुंक्त शब्द
*गागर में सागर भरना मतलब शे'र कहना ।
*क़ाफिया':-वह अक्षर या शब्द या मात्रा को आप तुक मिलाने के लिये रखते हैं या "वो जिसको हर शे'र में बदलना है मगर उच्चारण समान होना चाहिये "
*रदीफ : एक शब्द जिसे पूरी ग़ज़ल मै स्थिर रहना है या वो जिसको स्थिर ही रहना है कहीं बदलाव नहीं होना है
* रदीफ़ क़ाफिये के बाद ही होता है ।
*मतला :ग़ज़ल के पहले शे'र को कहते हैं वैसे तो मतला एक ही होगा किंतु यदि आगे का कोई शे'र भी ऐसा आ रहा है जिसमें दोनों मिसरों में काफिया है तो उसको हुस्ने मतला कहा जाता है
*मकता : वो शे'र जो ग़ज़ल का आखिरी शे'र होता है और अधिकांशत: उसमें शायर अपने नाम या तखल्लुस ( उपनाम) का उपयोग करता है । जो की जरूरी नहीं है
सादर
शैलेश
आप सब का इन उत्साहवर्धक शब्दों के लिए धन्यवाद . जिस तरह भाषा अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम होती है उसी तरह मेरे लिए कविता और ग़ज़ल भावनाओं के उदगार के लिए एक माध्यम है और मेरी यही कोशिश होती है कि बिना परिभाषा और बन्धन के मेरी बात पाठकों के मन को छू सके. अपनी इस कोशिश में अगर मैं कहीं इस परिभाषाओं के बन्धन से बाहर निकली हूँ तो क्षमा चाहती हूँ.
शैलेश जी आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव के लिए धन्यवाद. आपकी और दूसरे पाठकों के लिए कुर्वत/कुर्बत का मतलब है- नजदीकियां और मशर्रत- खुशी
उम्मीद है आपकी कि प्रतिक्रिया ऐसे ही मिलती रहेगी.
रचना
रचना जी,
माना की आप इन बंदिशों के बहार रह कर ही कोशिश करती है..
पर मै आपको गुरूजी कही हुई कुछ पंक्तिया बताता हूँ.. तो शायद आप गौर करेंगी
" कविता तो ताश के पत्तों के महल की तरह होना चाहिये जिसमें हर शब्द का महत्व हो अगर कोई भी शब्द हटाया जाए तो पूरा महल ही गिर पड़े, अगर कोई शब्द ऐसा है जो प्रभाव नहीं छोड़ रहा तो इसका मतलब वो भर्ती का शब्द है ।"
अतः मैंने आपकी ग़ज़ल मै "आंयें" रदीफ़ का जिक्र किया था
सादर
शैलेश
रचना जी,बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
लगता है गज़ल के बारे में यहां कोई कुछ नहीं जानत्ता.इस रचना में न बहर है ,न रदीफ़ काफ़िये,न ही बावस्तगी । न मालूम क्यों सराहा जा रहा है
लुटती आबरू का तमाशा देखा सबने
वख्ते गवाही बने धृतराषटृ जुबान पे ताले लगाये
चूल्हा जलने से भी डरते हैं यहाँ के लोग
के भड़के एक चिंगारी और शोला न बन जाये
सुन्दर रचना के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद. रचनाजी. उत्तम रचना के लिये आभार
Anonymous जी किसी की तारीफ़ या किसी की आलोचना करना होतो खुलकर आइये
किसी के बारे में छुपकर उसकी कमियों को बुरा कहना कोई अच्छी बात नहीं है
यदि आप में गुण है इन कमियों को सुधारने का तो खुलकर सामने आकर कहिये
rachna
ek bar phir se badhai is ghazal ke liye,aapne ek bar funasia radio par mere program mein ye ghazal padhi thi ,tab bhi logon ne ise saraha tha.yahan ek bar phir kehna chahungi ki mere program mein aapke padhne se "char chaand" lag jate hain.
dhanyavad aur shubhkamnayen.
karishma himatsinghani
rj,funasia radio
लगता है गज़ल के बारे में यहां कोई कुछ नहीं जानत्ता.इस रचना में न बहर है ,न रदीफ़ काफ़िये,न ही बावस्तगी । न मालूम क्यों सराहा जा रहा है
jisne bhi ye comment kiya hai bilkul sahi kaha hai aur mujhe bhi nahi lagta ki vyakran ki galti ke saath yani bina bahar ki gazal ko full marks milne chahiye haan ye zaroor kah sakte hai ki rachna ji ki soonch achchi hi nahi varan uttam hai magar vyakran ki galti to hai hi jisse koi bhi mukar nahi sakta
rachna ji se vishesh aagrah hai ki yadi aap bahar ke bare me jaan le to aapki gazak padh kar maza aa jayega.............sadar
,,,,,,,,,,,,,,,,,,venus kesari
aur haan gazal ya bahar ke bare me adhik janne ke liye login kare
www.subeerin.blogspot.com
dhanyvaad.........venus kesari
खुली न खिड़की न खुला दरवाजा कोई
मदद के लिए वहां बहुत देर हम चिल्लाये
रूह छलनी जिस्म घायल हो जहाँ
जशन उस शहर मे कोई कैसे मनाये
धो न सके यूँ भी पाप हम अपना दोस्तों
गंगा में बहुत देर मल-मल के हम नहाये
क्या बात कही है रचना जी आपने........
बधाई स्वीकार करें....
रचना जी,
कुछ पंक्तियां दिल को छूने वाली रहीं विशेषकर रूह छलनी,जिस्म घायल हो जहां, जशन उस शहर में कोई कैसे मनाये । सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है फिर भी दिल को आपकी गजल छू गई ।
साधुवाद, शकील खान, मुंबई
चूल्हा जलने से भी डरते हैं यहाँ के लोग
के भड़के एक चिंगारी और शोला न बन जाये
रचना जी,
नमस्कार।
जीवन के कटु सत्य को प्रस्तुत कर आपने अपनी लेखन शैली का खूब परिचय दिया है। कविता वर्तमान के साथ भविश्य की चूभन का अहसास करवाती है। यूँ ही सरस्वती की कृपा आप पर बनी रहे और हम सब के लिए जीवन के पथ को सुग्म करती रहे इसी अभिलाशा के साथ आपका तहदिल से आभार व्यक्त करता हूँ।
Ramesh Sachdeva
Director
HPS Sr. Sec. School,
Shergarh (Mandi Dabwali)
Haryana - India
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