कविता- निशा
कवि- सन्नी चंचलानी
तुम्हारी आँखो का यह चिर परिचित मौन
चेहरे पर ये आवरण शून्य का, कुछ कहता है
तो चुप क्यों हो
तुम्हारी आँखें झील सी गहरी,
रहती सदैव झील सी ठहरी, कुछ कहती हैं
तो चुप क्यों हो
क्यों नहीं दिखता सुधियो सा सरोवर तुम्हारी आँखो में
क्यों है मृत शैवाल यादों के मन में
अश्रुओं की बदली, तेरे लिए नहीं है पगली
'निशा' तेरे जीवन की बीत चली, राह तकता नया 'उजियारा' है
तो चुप क्यों हो
मत बाँधो हँसी को,
बिखरने दो मुस्कुराहटों के मोती
बहने दो मन को,
विचरने दो चित मृग को
थिरकने दो मन मयूर को जीवन की पथरीली पगडंडियो पर
डूब जाओ उल्लास में, हो जाओ आनंदित
हर क्षण, हर पल तुम्हारा है
जियो नदी की तरह, बहना तुम्हारी नियति है
दुखों का सागर कितना ही गहरा क्यों ना हो
मौजों के थपेड़े तुम्हें भयभीत नहीं कर सकते
चलो अब मुस्कुराओ
ये हुयी ना बात.......
हाँ हब तुम्हारी आँखे कुछ कहती है
याद रखना तुमसे होकर आशा की सरिता बहती है।
नोट- नियमित कवियों द्वारा कविता प्रकाशन में विलम्ब हो जाने से कहीं हमारे पाठक कविता पढ़ने से वंचित न रह जाएँ, इसलिए जून माह की प्रतियोगिता में आई १४वीं कविता प्रकाशित कर रहे हैं।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
6 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविता पढ़ी पर इसका भाव नही समझ आया ये कविता किसके लिए कही गयी
कहीं कहीं पर कविता की लय बिल्कुल बिगड़ गयी है जिससे पाठक के मन में कविता का कोई रस नही निकलता
Sunny ji,
Kavita to khaas samajh nahin aayee... na itni pasand aayee.. par yeh lines achhi hain...
बहने दो मन को,
विचरने दो चित मृग को
थिरकने दो मन मयूर को जीवन की पथरीली पगडंडियो पर
डूब जाओ उल्लास में, हो जाओ आनंदित
हर क्षण, हर पल तुम्हारा है
जियो नदी की तरह, बहना तुम्हारी नियति है
सन्नी जी,
आपकी इस कविता में न तो बिम्ब नये हैं और न ही भाव। दुहराव कविताओं में नहीं सुहाता। आप कुछ नया रचने की कोशिश करें।
अच्छा प्रयास!
JAHA TAK YE KHULA AASMAN BAKI HAI.
YAD RAKH TERI UDAAN BAKI HAI.
GUMAAN DIL ME NAHI RAKH,NIKAL LE DIL KI.
ABHI PARINDE ME THODI SI JAAN BAKI HAI.
ये अच्छी कोशिश है, युग्म पर कभी भी कविता का अभाव नही पड़ना चाहिए, सन्नी जी आपने बहुत सुंदर लिखा है, जल्द ही आपको शीर्ष १० में देखना चाहूँगा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)