इस दौर में इंसाँ कहीं बेहतर नहीं मिलते
रहज़न ही यहाँ मिलते हैं रहबर नहीं मिलते
अब देख कर इन ज़ख़्मों को घबराना भी कैसा
सच बोल के किस दौर में पत्थर नहीं मिलते
हर वक्त वहाँ सहमे हुए मिलते है बच्चे
किलकारियाँ गूँजें जहाँ वो घर नहीं मिलते
गिनती के लिए लाखों ही मिल जाएँगे लेकिन
ख़ातिर जो अना की कटें वो सर नहीं मिलते
अंदाज़ा किसे है यहाँ तक़लीफ़ का उनकी
क़ाबिल तो है लेकिन जिन्हें अवसर नहीं मिलते
मिलते हैं वो माँ की ही दुआओं में यक़ीनन
मन्दिर में ही भगवान भी अक्सर नहीं मिलते
घर से जो चलो याद रहे इतना भी "नीरज"
हर राह में दिलकश ही तो मंज़र नहीं मिलते
(इस ग़ज़ल के रूप को प्रस्तुतीकरण लायक बनाने में भाई द्विज की अहम् भूमिका है)
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
Bahut achchi koshish lagi. Kuchh she'r dil ko chhoo gaye. Waise toh "mukt" Shayari ka bhi apna andaaz hai, per aisa laga ke yadi "bhi" "hi" "to" in jaise chhote shabdon ko behtar sambhaala ja sakta hai!
हर वक्त वहाँ सहमे हुए मिलते है बच्चे
किलकारियाँ गूँजें जहाँ वो घर नहीं मिलते
मिलते हैं वो माँ की ही दुआओं में यक़ीनन
मन्दिर में ही भगवान भी अक्सर नहीं मिलते
बहुत खूब नीरज जी ...बहुत अच्छे लगे यह शेर
बहुत बढिया रचना है।
अंदाज़ा किसे है यहाँ तक़लीफ़ का उनकी
क़ाबिल तो है लेकिन जिन्हें अवसर नहीं मिलते
bahut badhiya lika
kafiya aur radeef bhi theek nibha rakhe hai
aise he likhte raheiye.....
sumit bhardwaj
कमाल का लिखा है भाई जी,मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"
नीरज - अच्छा लिखा है आपने
इस दौर में इंसाँ कहीं बेहतर नहीं मिलते
रहज़न ही यहाँ मिलते हैं रहबर नहीं मिलते
अंदाज़ा किसे है यहाँ तक़लीफ़ का उनकी
क़ाबिल तो है लेकिन जिन्हें अवसर नहीं मिलते
वाह वाह बहुत सुंदर - सुरिन्दर रत्ती
नीरज भाई
बढिया!!
अंदाज़ा किसे है यहाँ तक़लीफ़ का उनकी
क़ाबिल तो है लेकिन जिन्हें अवसर नहीं मिलते
घर से जो चलो याद रहे इतना भी "नीरज"
हर राह में दिलकश ही तो मंज़र नहीं मिलते
नीरज जी ये शेर बहुत पसंद आये .......आप बस दिल की बात कह देते है......
मिलते हैं वो माँ की ही दुआओं में यक़ीनन
मन्दिर में ही भगवान भी अक्सर नहीं मिलते
वाह...बहुत खूब
नीरज जी, बहुत अच्छा लिखते हे,हर शव्द पढ्ने ओर सोचने पर मजबुर कर देते हे, धन्यवाद इन सुन्दर शव्दो के लिये..
मिलते हैं वो माँ की ही दुआओं में यक़ीनन
मन्दिर में ही भगवान भी अक्सर नहीं मिलते
हर वक्त वहाँ सहमे हुए मिलते है बच्चे
किलकारियाँ गूँजें जहाँ वो घर नहीं मिलते
बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं - धन्यवाद!
मिलते हैं वो माँ की ही दुआओं में यक़ीनन
मन्दिर में ही भगवान भी अक्सर नहीं मिलते
घर से जो चलो याद रहे इतना भी "नीरज"
हर राह में दिलकश ही तो मंज़र नहीं मिलते
वाह! वाह! बधाई.
ritbansalघर से जो चलो याद रहे इतना भी "नीरज"
हर राह में दिलकश ही तो मंज़र नहीं मिलते
बहुत अच्छा
बहुत खूबसूरत गजल...एक-एक शेर बहुत बढ़िया.
niraj ji bahut hi achchha likha hai aap ne
मिलते हैं वो माँ की ही दुआओं में यक़ीनन
मन्दिर में ही भगवान भी अक्सर नहीं मिलते
ye mujhe bahut hi achchha laga
saader
rachana
हर वक्त वहां सहमे हुए मिलते हैं बच्चे
किलकारियाँ गूँजे जहाँ वो घर नहीं मिलते।
---वाह क्या शेर है।--देवेन्द्र पाण्डेय।
हर वक्त वहाँ सहमे हुए मिलते है बच्चे
किलकारियाँ गूँजें जहाँ वो घर नहीं मिलते
गिनती के लिए लाखों ही मिल जाएँगे लेकिन
ख़ातिर जो अना की कटें वो सर नहीं मिलते
एक अच्छी ग़ज़ल के बहुत ही उम्दा शेर
पढ़कर अच्छा लगा बधाई
१) आपकी ग़ज़ल वाकई कबीले तारीफ़ है..
हर शेर बहुत सुन्दर है..
बस छोटी सी बात समझ नहीं आई...
ये शेर आपका ग़ज़ल मै दो बार आया है.. ऐसा क्यों ?
"हर वक्त वहाँ सहमे हुए मिलते है बच्चे
किलकारियाँ गूँजें जहाँ वो घर नहीं मिलते"
सादर
शैलेश
मैं दिल से आभारी हूँ अपने पाठकों का जिन्होंने ग़ज़ल पसंद करके इसे सार्थक बनाया साथ ही मुझे कुछ सीखने समझने का मौका भी दिया. ग़ज़ल के पारखी पाठकों द्वारा बताई कमिया मैं अपनी आगामी रचनाओं में दूर करने की कोशिश करूँगा. शैलेश जी भूल की और इंगित करने का शुक्रिया, मैंने भूल सुधार ली है. आप सब से अनुरोध है की अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखें.
नीरज
bahut behtreen gazal
नीरज जी,
बहुत बढ़िया ग़ज़ल। आपके लौटने से हिन्द-युग्म की चमक लौट आई है। दुबारा स्वागत करता हूँ।
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