हिन्द-युग्म के जून माह की यूनिकवि प्रतियोगिता से चुनी गई शीर्ष १० कविताओं में पंकज उपाध्याय बिलकुल नया चेहरा है। कवि पंकज ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में एम॰ए॰ किया है। भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली में पत्रकारिता के छात्र रह चुके हैं। वर्तमान में सकाल ग्रुप के आने वाले चैनल के लिए लखनऊ-रिपोर्टर बनाये गये हैं।
पुरस्कृत कविता- नींद नहीं आती मुझे
उजाले में नहीं आती है, नींद मुझे
चुभता है, यह फिल्प्स आँखों में
सिकोड़कर बंद कर लूँ आँखें तो
दिखता है गोधरा का सच मुझे,
लाल हो जाती है आँखें, मांस के लोथड़ों से
तड़पकर गिरते पशु महोबा के खेत में
विदर्भ की फटी धरती पर किसान का खून सना
गोलियों के छर्रे पर नंदीग्राम का सच लिखा
आँखें ढँकता हूँ, कपड़े से जब मैं
ओखली सा पेट लेकर, नंगों की एक फौज खड़ी
डर कर आँखें खोलता हूँ, जब मैं-
दिखता है उजाला भारत उदय मुझे
बंद कर लूँ उंगलियों से जो कान के छेदों को
बिलकिश की चीखों से कान फटता मेरा
किसानों की सिसकियाँ चित्कारती हैं क्यों मुझे?
शकील के घर सायरन का शोर है,
फौज़ के बूट जैसे मेरे सर पर है,
चक्रसेन के कटते सर की खसखसाहट चूभती है,
अब उजाले में नींद मुझसे उड़ती है।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰४५, ३
औसत अंक- ४॰७३
स्थान- इक्कीसवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४॰५, ५, ६, ७॰१, ४॰७३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰४६५
स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'मौत से जिजीविषा तक' भेंट करेंगे।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
बंद कर लूँ उंगलियों से जो कान के छेदों को
बिलकिश की चीखों से कान फटता मेरा
किसानों की सिसकियाँ चित्कारती हैं क्यों मुझे?
बहुत सुंदर |बधाई
देश की सच्ची हालत बयां की है आपने
बधाई एक अच्छी कविता और पुरस्कार के लिए
चक्रसेन के कटते सर की खसखसाहट चूभती है,अब उजाले में नींद मुझसे उड़ती है।
पंकजजी काश आपकी तरह हम सभी की नींद उड्ती सभी संवेदनशील होते तो स्थिति में सुधार की उम्मीद की जा सकती थी किन्तु.......
दम है सर जी....बधाई स्वीकार करें
आलोक सिंह "साहिल"
पंकज जी,
१) आकी कविता की पहली तीन पंक्तिया पढ़ कर ऐसा नहीं लगा की चौथी पंक्ति कुछ इस तरह होगी.
मुझे पढ़ कर ऐसा लगा भूमिका कुछ बेहतर हो सकती थी...
"उजाले मै नींद नहीं आती मुझे" .... ये पंक्ति पढ़ कर एक दम से मेरे मन मै आया.. भाई बल्ब बुझा कर सोया करो...
२) अगली कुछ पंक्तियों मै वीभत्स रस के दर्शन हुए और वो कविता के आधार पर सही बैठते है..
पर मन कुछ ख़राब, उदास सा हो गया पढ़ कर...
३)और आगे पढने की हिम्मत नहीं हुई.. भाई इस मै मेरा कुसूर नहीं है.. मुझ से ये सुने पढ़े भी नहीं जाते ऐसे किस्स्से..
सादर
शैलेश
वाह ! इस कविता को १० स्थान ? इसे तो और आगे होना कहिये था |
बहुत सुंदर है | बधाई |
अवनीश तिवारी
सुंदर कविता पंकज जी,
प्रथम १० में आने पर बधाई..
कवि की विस्तृत सोच को दर्शाती हुई एक अच्छी कविता...
बधाई स्वीकारें
बॉस,
आपका कथ्य तो अच्छा है, चिंताएँ तो सराहनीय हैं, लेकिन कविता में प्रवाह का अभाव है। और कविता कच्ची लगती है।
अपने अज्ञान के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ, यदि फिल्प्स का अर्थ भी बता दें तो बेहतर होगा. कविता में आपका दर्द दिख रहा है परन्तु काव्य नहीं. जो भी हो, पुरस्कृत होने पर बहुत बहुत बधाई.
स्मार्ट इंडियन जी,
यहाँ फ्लिप्स (फिल्प्स) का अर्थ 'प्रकाश' है। 'फ्लिप्स' बिजली संबंधी उत्पाद बनाने हेतु प्रसिद्ध है। इसलिए कवि ने इसका शानदार इस्तेमाल अपनी इस कविता में किया है।
किसानों की सिसकियाँ चित्कारती हैं क्यों मुझे?
बहुत सुंदर |बधाई
सामयिक आलंबनों के सहारे विभत्स रस की निष्पत्ति कविता को प्रभावशाली बनाता है !
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