घुटन है दिल में बहुत, नाराज दोनो रब जहाँ
प्रश्न तो सुलझा नहीं, तू कौन है और है कहां ?
पी गया आंसू, जो अग्नि ना बुझी तो विष पिये
प्यासी निगाहें दौड़ती, क्या ढूँढ़ लाने के लिये
ढीठ सी दिखती, कभी तो मुंह मुझसे मोड़ती
चिलचिलाती धूप में भी, क्यों न पीछा छोड़ती ?
धधकती इस आंच में, तड़पा गई मुझको यहां
प्रश्न तो सुलझा नहीं, तू कौन है और है कहां ?
सुनसान राहों में नजर डाली तुझे ढूँढ़ा किये
मिलन हो इस लालसा में, दाग दामन पर लिये
क्यों सताया रूप ने, निर्मम हुई मन की व्यथा
शापित हुई, लज्जित हुई है प्यार की पूरी कथा
हँस के शरमाई, मैं समझा प्रेम की देवी यहां
प्रश्न तो सुलझा नहीं, तू कौन है और है कहां ?
जीत सूने मौन की, संगीत पर ऐसे हुई
दुराशा तेरी न जाने, फलित क्यों कैसे हुई
दुख से बोझिल मन हुआ है, देह जर्जर प्रेम बिन
बोल तेरे याद आये, ख्याल आये रात दिन
नागिन कहूँ, छलना कहूँ, तू लूट लेती है जहाँ
प्रश्न तो सुलझा नहीं, तू कौन है और है कहां ?
-हरिहर झा
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये प्रश्न प्रश्न ही रहे तो अच्छा है हरिहर जी.....बढ़िया कविता
सुंदर कविता.अच्छा लगा पढ़कर.
आलोक सिंह "साहिल"
हरिहर जी,
आपकी कविता तो मेरे लिए प्रश्न बन कर रह गयी !! मुझे ये चीज़ समझ नहीं आई..
१) ये छलना क्या होता है?
२)"घुटन है दिल में बहुत नाराज दोनो रब जहाँ" इस वाक्य मै कही विरामो कोई कमी सी लगी..
वैसे ये दो रब कौन से होते है?
३)अगली पंक्ति है "प्रश्न तो सुलझा नहीं तू कौन है और है कहां ?" अब इस पंक्ति का पहली से क्या सम्बन्ध है..
और इस तरह मुझे आपका ये गीत बिलकुल समझ नहीं आया....इसके शायद ये कारन हो सकते है..
१) विराम चिह्न का प्रयोग लुप्त है..
२) प्रसंग के बिना, समझना और भी मुश्किल हुआ..
३) शब्दार्थ देते कुछ कठिन शब्दों का तो अच्छा रहता..
वैसे तीन चार बार पढ़ कर कुछ हल्का सार समजा कविता का "कोई किसी को छोड़ कर चला गया ढेर सारे प्रश्न दे कर.."
कृपया सही करें
सादर
शैलेश
-
मै शैलेश जी से सहमत हूँ हरिहर जी ये कविता भी मुझे समझ नही आई किस प्रसंग पर आपने ये रचना लिखी है उसको लिख देते तो शायद कुछ सहारा मिलता समझने में
हरिहर जी,
इस कविता की भूमिका समझायें.. दरअसल कविता को हर कोई अपने तरीके से ही समझता है। इसीलिये समझने में कठिनाई आ रही है...
--तपन शर्मा...
सुन्दर , गहरी कविता..
हरिहर जी,
पहली बात तो टाइपिंग का ख्याल रखा करें।
अग्नी--> अग्नि
ढुंढ़--> ढूँढ़
ढुंढ़ा--> ढूँढ़ा
कहुँ--> कहूँ
दूसरी बात, गीतों के अर्थ स्पष्ट करने के लिए कॉमा को उचित स्थान पर लगाना भी आवश्यक है। गीत समूचे तौर पर समझ में नहीं आ पाया। कभी लगता है कि कोई नायक नायिका का सानिध्य पाने को उत्सुक है और कभी लगता है कि आत्मा, परमात्मा की तलाश में है लेकिन माया में उलझकर दुखी है।
जो भी हो। कविता पसंद नहीं आई।
हिंद-युग्म को एकाध महीने से ही पढ़ रहा हूँ. बेहद अच्छी रचनाएं पढने को मिलीं. परन्तु वर्तनी और व्याकरण की घोर उपेक्षा देखने को मिलती रही. मुझे लगता है कि कवियों और सम्पादकों को इस ओर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है. जल्दबाजी में लिखी ओर छापी गयी रचना आनंद को कम कर देती है. शैलेश भारतवासी की लिस्ट में एक शब्द जोड़ना चाहूंगा:
नागीन -> नागिन
शैलेश जी, ध्यानाकर्षण के लिये धन्यवाद
१)पुरूष छल करे तो छलिया स्त्री हो तो छलना
फर्क यह है कि छलिया कुछ रोमान्टिक लगता है।
(मेरे एक मित्र ऐसा समझे थे, जैसे खाना पीना चलना
छ्ल करना याने छलना )
२) “रब और जहाँ दोनो”
३)घुटन एवं रब और जहाँ दोनो की नाराजगी सहने के बाद भी प्रश्न
अनुत्तरित है।
1) विराम चिह्न का अब ज्यादा ख्याल रखूंगा
2) अर्थ आपने सही समझा है
3)
शब्दार्थ देने लायक कठिन शब्द मुझे दिखे नहीं अब दो शब्द दिख रहे
हैं छलना व जर्जर |
शैलेश भारतवासी जी
वर्तनी में जहां भी शंका हो जाय मुझे गुगल का
सहारा लेना पड़ता है। “कहुँ” के ढेर सारे उपयोग देख कर
मुझे शंका नहीं थी कि यह गलत साबित होगा
ये सारी गलतियां मैं सुधार दूंगा आभी मैं access नहीं कर
पा रहा हूँ
Mr. smart Indian से सहमत हूँ जब शब्दों के सही व गलत रूप इन्टरनेट पर
इतने अधिक मिलें तो तय करना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा रूप
सही है? नागिन जैसे अन्य शब्दों में भी यह दिक्कत है
Perhaps, the feeling coming out from the wrods wasn't penetrating the soul strongly. For me, the words were fleeting, i suppose more illusory. May be you meant it that way. The effort is good, perhaps not great and I am sure there will be many who will appreciate it better.
झा जी, सुंदर अभिव्यक्ति, आपने अपनी व्याख्या को रोमांटिक एवं हास्यमय बनाया छलिया एवं छलना के प्रसंग के साथ, गंभीर भी ।
........डॉ. जय शंकर बाबु,
संपादक, युग मानस, गुंतकल (आं.प्र.)
गौरव जी, शैलेश जी, तपन जी
विरह से शोकाकुल प्रेमी का दुख व आक्रोश व्यक्त
करने की कोशिश की उतनी अच्छी नहीं बन पाई।
मुझे आश्चर्य इस बात का है कि पारम्परिक कवितायें
लुप्त होती जा रही हैं
क्या आपको भी नहीं लगता कि नये कवियों ने परम्परागत कवितायें लिखना बन्द कर दिया है - शायद मुझ जैसे कवियों के कारण ।
हरिहर जी,
आप पारम्परिक कविता किसे मानते हैं?
गहरी कविता..
शैलेश जी
शैली में लयबद्ध हो, तुकान्त हो
विषय के हिसाब से रस-निष्पत्ति ( श्रंगार-वियोग-करुण-वीररस आदि) की प्रधानता हो ।
जीत सूने मौन की, संगीत पर ऐसे हुई
दुराशा तेरी न जाने, फलित क्यों कैसे हुई
दुख से बोझिल मन हुआ है, देह जर्जर प्रेम बिन
बोल तेरे याद आये, ख्याल आये रात दिन .....
निःशब्द हूँ ! अलौकिक !! आनंदपूर्ण !!!
BHaut Sunder Rachna
BHaut Sunder Rachna
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