जिंदगी भर जिंदगी से शिकवा न करना,
खुदा को सरेआम यूँ बेहया न करना ।
उसकी मेहर को मिल्कियत मानने वाले,
साँसों को सरजमीन से अलहदा न करना।
जोश-औ-जुनूं बटे हैं सबमें हीं एक से,
हिम्मत से बदसलूकी तो बेवज़ा न करना।
अब तक करे है तू तकदीर का रोना,
अंधी सरपरस्ती तू इस दफा न करना।
इम्तिहां और इत्मीनान सीखकर उससे,
रात को सुबह का तू रास्ता न करना।
बरबस हीं बेबसी बन जाए है तेरी,
रिंदों को घरौंदे का यूँ हमनवा न करना।
’तन्हा’ ,लिबास रेशमी मिल गया तुझे,
खुदा की नेमतों को बस वाक्या न करना।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
जोश-औ-जुनूं बटे हैं सबमे एक से
हिम्मत से बदसलूकी तो बेवज़ा न करना।
---आप मुखातिब होते तो इस शेर पर कहता----
---इरशाद।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
जिंदगी भर जिंदगी से शिकवा न करना,
खुदा को सरेआम यूँ बेहया न करना ।..
गज़ल की शुरुआत ही जबर्दस्त है तन्हा जी..
बहुत खूब.. बहुत अच्छे...
आज काफ़ी दिनों बाद युग्म खोला और मुलाकात हुई आपसे ! बहुत खूब तन्हा जी... हमेशा वाले तेवर बरकरार हैं.. लगे रहिए
बहुत खूब तन्हा जी!
एक से एक शेर में क्या बात कही है!
उसकी मेहर को मिल्कियत मानने वाले,
साँसों को सरजमीन से अलहदा न करना।
जोश-औ-जुनूं बटे हैं सबमें हीं एक से,
हिम्मत से बदसलूकी तो बेवज़ा न करना।
वाह वाह तन्हा जी बहुत अच्छा सुहान अल्लाह
अब तक करे है तू तकदीर का रोना,
अंधी सरपरस्ती तू इस दफा न करना।
वाह! तन्हाजी क्या बात कही है. अंधी सरपरस्ती ही तो हमें पीछे ढकेलती है.
भाई जी,मजा आ गया.एक लंबे अरसे बाद आपको पढ़कर मन को अत्यन्त संतोष मिला.
कृपया लगे रहिये.
आलोक सिंह "साहिल"
विश्व दीपक ’तन्हा’ जी,
आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी बन पड़ी है बहुत सुन्दर शेरो के साथ..
बस मुझे कई उर्दू शब्दों के अर्थ समझ नहीं आये..
जैसे अलहदा,नेमतों.. ये शब्द सुने हुए से है.. पर सही अर्थ जानना चाहूँगा...
सादर
शैलेश
वाह तन्हा जी ..
इम्तिहां और इत्मीनान सीखकर उससे,
रात को सुबह का तू रास्ता न करना।
बरबस हीं बेबसी बन जाए है तेरी,
रिंदों को घरौंदे का यूँ हमनवा न करना।
’तन्हा’ ,लिबास रेशमी मिल गया तुझे,
खुदा की नेमतों को बस वाक्या न करना।
बहुत बढिया..
तन्हा जी,
आप लौटे हैं पूरे फॉर्म के साथ। मुझे ग़ज़ल का फ्लो बहुत पसंद आया।
Good read.
अच्छा है. कविता की सुन्दरता में व्याकरण का भी अपना महत्व है और उस पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए. आम बोलचाल से बाहर के शब्दों का अनुवाद साथ में देने से रचना का आनंद कई गुना बढ़ सकता है.
वाह सुंदर संतुलित.....तेवरों से भरी ग़ज़ल, बहुत दिनों बाद लौटे हो, जनाब, मज़ा आया पढ़कर ...
Bahut Achhe
बहुत खूब तन्हा जी!
एक से एक शेर में क्या बात कही है!
bahut khoob tanha ji!!!
excellent composition!!!
उसकी मेहर को मिल्कियत मानने वाले,
साँसों को सरजमीन से अलहदा न करना।
काबिल-ए-तारीफ !! बहुत पसंद आया ! मानी भी मकसद भी और तरन्नुम भी ! शुक्रिया !!!
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