छठवें स्थान की कविता की रचनाकारा ने अभी तक अपना परिचय और फोटो नहीं भेजा है, इसलिए हम आज सातवें स्थान की कविता प्रकाशित कर रहे हैं। इस स्थान पर युवा कवयित्री पल्लवी त्रिवेदी की कविता 'ए खुदा...बचपन को तो बख्श' है। इससे पहले कवयित्री पल्लवी त्रिवेदी की दो कविताएँ 'एक दरार ही काफी है' और 'खुदा की इबादत' हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता में शीर्ष १० में स्थान बना चुकी हैं।
पुरस्कृत कविता- 'ए खुदा...बचपन को तो बख्श
रात के वीराने में उसकी किलकारी
जैसे किसी ने साँझ ढले
राग यमन छेड़ दिया हो
उसकी वो नन्ही-नन्ही अधखुली मुट्ठियाँ
नींद में मुस्कुराते होंठ
बार-बार बनता-बिगड़ता चेहरा
मोहपाश में बाँध रहे थे
विडम्बना यह कि वो फरिश्ता
नरम बिछौना, पालना या
माँ की गोद में नहीं
बल्कि कचरे के ढेर पर सो रहा था
इंसानों को कहाँ फुरसत थी,
उसकी रखवाली
मोहल्ले का 'मोती' कर रहा था
ए खुदा!
हम बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श...
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰२, ५
औसत अंक- ५॰६
स्थान- छठवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ५॰५, ४, ८॰१, ५॰६(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰६४
स्थान- सातवाँ
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'मौत से जिजीविषा तक' भेंट करेंगे।
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपकी तीनों कविताओं में बच्चा-बचपन और उनसे जुड़ी मानवीय संवेदना बखूबी अभिव्यक्त होती हैं। प्रस्तुत कविता के माध्यम से आपने जो सामाजिक चेतना को झकझोरने का प्रयास किया है- वह प्रंशसनीय है।---बधाई स्वीकारें।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
इंसानों को कहाँ फुरसत थी,
उसकी रखवाली
मोहल्ले का 'मोती' कर रहा था
इन पंक्तियों ने गहरा प्रभाव छोडा है पल्लवी जी..
Pallavi ji, aapki kavita ki aakhri kuch panktiyon ne mano dil chu liya, bas wo drishya ki kalpana karke aankhein bhar si uthi thi....
Likhti rahiye....
Samir
पल्लवी जी की तीनों कविताएँ अच्छी हैं। संवेदनहीन होते समाज में संवेदना से ओतप्रोत तीन कविताएँ उम्मीद जगाती हैं। खुदा की इबादत में इबादत के बदले हुए तरीकों से उन लोगों की आँखें खुल जानी चाहिए (लेकिन खुलेंगी नहीं)जो मंदिरों-मस्जिदों की घंटियों और अजानों में खुदा को खोजने का ढोंग करते हैं।
आगे और अच्छी कविताओं की उम्मीद में,
-गिरिजेश्वर
बहुत अच्छी एक एक लाइन कविता की बहुत अच्छी है
शायद खुदा आपकी पुकार सुन ले और बरबाद हो रहा बचपन बच जाए
पल्लवी जी,
"उसकी रखवाली
मोहल्ले का 'मोती' कर रहा था"
दुखद है पर बयान-ऐ-हकीकत है, अच्छा लिखा है.
विडम्बना यह कि वो फरिश्ता
नरम बिछौना, पालना या
माँ की गोद में नहीं
बल्कि कचरे के ढेर पर सो रहा था
इंसानों को कहाँ फुरसत थी,
उसकी रखवाली
मोहल्ले का 'मोती' कर रहा था
ए खुदा!
हम बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श...
पल्लवी जी उत्तम! बधाई इतनी संवेदन्शीलता के लिये साधुवाद किन्तु खुदा भी शायद कहता होगा-
हे इंसान!
क्या बिगाड है,
मैंने तेरा!
अपने सारे कुकृत्यों का दोष,
क्यों मेरे ऊपर गेरा,
मैंने तुझको दिया सब-कुछ,
तूने खुद ही उजाडा डेरा,
सद-कर्मो को अपने कहता
कुकर्मों से मुझ को घेरा
बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श
.
बहुत ही अच्छी पंक्तिया |
आपकी कविताए बताती है कि आपकी मह्सुसियत बहुत गहरी है |
बधाई |
ए खुदा!
हम बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श...
इस दुआ के आगे तो कहने के लिए कुछ रह ही नही जाता |
ek prabhawshali rachna.
badhai swikar karein
alok singh "sahil"
बहुत बहुत धन्यवाद मित्रो सकारात्मक टिप्पणियों से हौसला बढ़ाने के लिए...
पल्लवी जी,
आपकी मै ये तीसरी कविता पढ़ रहा हूँ
और तीनो मै मुझे कुछ समानता दिखी
१) सब की सब व्यावहारिक जीवन पर निर्भ्यर है...अतः हर पाठक अपने आप को कविता से जुदा हुआ पाटा है.
२) तीनो कविताओ मै आपने बच्चो को जरूर शामिल किया है.. क्यों की..आपको पता है..
बच्चे तो साक्षात् भगवान का रूप होते है.. चाहे वो जानवरों के ही क्यों न हूँ..
३) हर कविता एक सामाजिक सन्देश देती है.. और जिसे इतनी सुन्दरता से दिया जाता है की जैसे मा अपने बच्चे को संस्कार दे रही हो..
अब अगर मै इस कविता की बात करू तो,
१) आप की ये कविता फिर से पहली कुछ पंक्तियों मै भूमिका बांध कर मुख्या पहलु (कथ्य) तक पहुचती है..
२) अंत (निष्कर्ष ) शायद आप इस बार सबको पसंद न आये क्यों की हर कोई इस पहलु को अलग तरीके से देखता है.. परन्तु आप ने इसे अच्ची तरह निर्वहन किया है..
३)इस बार समाधान न दे कर सधे निष्कर्ष पर पहुची है..
१-भाषात्मक रूप मै आप बिलकुल सटीक है
२- भावात्मक रूप मै भी आप अपना कथ्य पाठको तक पहुचने मै सफल रही है
३- आप फिर से शादार्थ दे तो अच्चा होगा.. मुझे ये राग यमन समझ नहीं आया
बाकी सुन्दर कविता के लिए बधाई
सादर
शैलेश
bahut sunder kavita .padhne bad bahut der tak soochti rahi
saader
rachana
पल्लवी जी,
सच कहूँ तो आज बहुत दिनों बाद कोई कविता पढ़ कर आँखें भींग गयी ! निःशब्द हूँ !! बस धन्यवाद दूंगा !!!!
आपकी कविता बहुत सहज और स्पष्ट सोच वाली होती हैं, इसलिए पाठकों के मन को भाती हैं। अच्छा लिखती हैं आप।
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