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Thursday, July 24, 2008

वहां इंसानियत का खून करने वाले ही तो थे


टॉप १० कविताओं से आगे बढ़ते हैं। ११वें और १२वें स्थान की कविताओं का प्राप्तांक भी १०वें स्थान की कविता के लगभग बराबर ही था। इसलिए हमने इन दो कविताओं को भी प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। इस स्थान पर अरूण मित्तल अद्‌भुत की एक ग़ज़ल है। अरूण मित्तल अद्‌भुत इससे पहले भी पुरस्कृत हो चुके हैं।

पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल

वो धोखा दे गया हमको जरा से इक बहाने से
हमे शक उस पे था लेकिन डरे हम आजमाने से।

तेरे चेहरे पे ये मासूमियत भी खूब जमती है
क़यामत आ ही जायेगी जरा सा मुस्कुराने से।

वहां इंसानियत का खून करने वाले ही तो थे
नहीं था आग का रिश्ता किसी का घर जलाने से।

न ही जादूगिरी ना खेल है कोई तिलिस्मों का
यहाँ बनती है किस्मत अपने हाथों से बनाने से।

तुम्हे 'अद्‌भुत' से ही सारे मिले होंगे मगर हमको
शिकायत थी जमाने से शिकायत है जमाने से।



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰७, ३
औसत अंक- ४॰८५
स्थान- उन्नीसवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ५, ४, ६॰४, ४॰८५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰०५
स्थान- ग्यारहवाँ

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

झक्कास ! टोटल बिंदास ग़ज़ल है, बाप !!

Smart Indian का कहना है कि -

अद्भुत है अद्भुत जी - करण जी ने ठीक ही कहा - झकास.

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

न ही जादूगिरी ना खेल है कोई तिलिस्मों का
यहाँ बनती है किस्मत अपने हाथों से बनाने से।
क्या बात कही है अद्भुत जी.

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

न ही जादूगिरी ना खेल है कोई तिलिस्मों का
यहाँ बनती है किस्मत अपने हाथों से बनाने से।

बहुत अच्छा बहुत अच्छा शेर

Anonymous का कहना है कि -

mujhe poori hi gazal achhi lagi
badhai
saader
rachana

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

हाँ , बिल्कुल मस्त रचना है |
बधाई |


अवनीश तिवारी

Unknown का कहना है कि -

वहां इंसानियत का खून करने वाले ही तो थे
नहीं था आग का रिश्ता किसी का घर जलाने से।

अच्छा लिखा है

११ वे स्थान के लिए बधाई

सुमित भारद्वाज

सीमा सचदेव का कहना है कि -

वहां इंसानियत का खून करने वाले ही तो थे
नहीं था आग का रिश्ता किसी का घर जलाने से।
बहुत अच्छे

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

अरूण मित्तल अद्‌भुत जी,

आपने मतले मै कानून बनाया है कि पहले शेर कि दोनों पंक्तियों मै काफिया " आने "
और रदीफ़ है "से "

जिसे आपने पूरी ग़ज़ल मै अच्छे से निभाया है.



अगर भाव के रूप मै जाऊं तो.. ये दिल को छू गयी है... और पढ़ कर बार बार पढने का मन करता है..
इस से ज्यादा मै इस बारे मै क्या कह सकता हूँ...

बधाई इतनी सुन्दर रचना के लिए..

सादर
शैलेश

Unknown का कहना है कि -

jabardast boss

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