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Thursday, July 03, 2008

जिस्म नीला पड़ा है मछली का


मुद्दतों बाद फिज़ा बदली है
उनके होठों पे' हँसी असली है

सूत रिश्तों का घेर लेता है
सूत कच्चा है इंसा तकली है

मेरा माज़ी गुज़र गया शायद
वो यह कहती है कैसी पगली है

राह भटके तो खो गई मंज़िल
कहने वालों की बात नकली है

जिस्म नीला पड़ा है मछली का
प्यास होगी इधर से निकली है


-अवनीश गौतम

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

सीमा सचदेव का कहना है कि -

अवनीश जी मै ठीक तरह से भाव नही समझ पाई ,फ़िर भी निम्न पंक्तियों में व्यंग्य लगा

नीला पडा है मछली का
प्यास होगी इधर से निकली है

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

ग़ज़ल के बोल और लय तो बाकई काबिल-ऐ-तारीफ़ हैं ! कथ्य भी स्तरीय है किंतु समझने में थोडी कसरत करनी पडी !

Anonymous का कहना है कि -

bahut khub

Satyendra Prasad Srivastava का कहना है कि -

अच्छी ग़ज़ल

Anonymous का कहना है कि -

ज़‍िस्‍म में से नुक्‍ता हटा कर जिस्‍म करें।

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

अवनीश जी,
आपकी ग़ज़ल के बारे मै ये कहना चाहूँगा

१) अगर भाषात्मक आंकलन करुँ तो
आपकी रचना सम्पूर्णता को पाती है..
रदीफ़,काफिया सब सुन्दर बन पढ़ा है..
२) अगर भावात्मक आंकलन करू.. तो कुछ कमी सी महसूस हुई..
क्यों की पाठक तक वही बात नहीं पहुच पाती जो आप कहना चाह रहे है..मुझे अभी तक समझ नहीं आई.. :(
३)अगर स्वरात्मक ( गेय पद्य) के रूप मै आंकलन करू तो..
मुझे लगा थोडा पद की लम्बाई छोटी है बहर आने के लिए
अच्छी कोशिश के लिए बादही

सादर
शैलेश

Nikhil का कहना है कि -

"ज़िस्म नीला पडा है मछली का
प्यास होगी इधर से निकली है"

मुद्दतों बाद फिज़ा बदली है
उनके होठों पे' हँसी असली है

अच्छी ग़ज़ल है...छोटे बहर में लिखना मुश्किल भी है और आसन भी...आपने कंटेंट में कमी नहीं आने दी है...वैसे ये कब की लिखी रचना है....

निखिल

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

अवनीश जी आपकी ग़ज़ल काबिले तारीफ़ है
किंतु कुछ खामियां है जैसे कुछ शेरो के भाव नही समझ आए

मेरा माझी गुज़र गया शायद
वो यह कहती है कैसी पगली है

इसका भाव मुझे समझ नही आया मई कोई बड़ा शायर नही शायद आपने इस कलाम में बहुत बड़ी बात कही हो
पर मै एक बात कहता हूँ की जटिल लिखना और पाठको की समझ से बाहर हो सही नही है
हां कुछ शेर मुझे बहुत अच्छे लगे जैसे
राह भटके तो खो गई मंज़िल
कहने वालों की बात नकली है

तारीफे काबिल शेर है
अंत में यही कहूँगा यदि कोई कवि या शायर जिसके शेर या कविताये जटिल हो तो वो नीचे अपने विचार लिखकर अपने बात को समझा दिया करे जिससे पाठको को समझने में आसानी हो

Sajeev का कहना है कि -

वाह ,,,,सूत कच्चा है :) बहुत खूब

Alok Shankar का कहना है कि -

"अवनीश जी आपकी ग़ज़ल काबिले तारीफ़ है
किंतु कुछ खामियां है जैसे कुछ शेरो के भाव नही समझ आए "
बढ़िया है , समझ आए तो कविता अच्छी और न समझ आए तो कविता की गलती :)

Smart Indian का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
Smart Indian का कहना है कि -

मेरा माज़ी गुज़र गया शायद
वो यह कहती है कैसी पगली है

विरोधाभास अलंकार का इतना सुंदर प्रयोग कम ही देखने को मिलता है. अच्छा है, लिखते रहिये.

Avanish Gautam का कहना है कि -

धन्यवाद आप सभी का. Anonymous जी जिस्म से नुक्ता हटाया जा रहा है. निखिल जी ये 6 वर्ष पुराने शेर हैं. क्षमा चाहता हूँ पर यदि कुछ लोगों को भाव समझ में नहीं आये तो यह शेरों की कमी नहीं हैं :)

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