मुद्दतों बाद फिज़ा बदली है
उनके होठों पे' हँसी असली है
सूत रिश्तों का घेर लेता है
सूत कच्चा है इंसा तकली है
मेरा माज़ी गुज़र गया शायद
वो यह कहती है कैसी पगली है
राह भटके तो खो गई मंज़िल
कहने वालों की बात नकली है
जिस्म नीला पड़ा है मछली का
प्यास होगी इधर से निकली है
-अवनीश गौतम
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
अवनीश जी मै ठीक तरह से भाव नही समझ पाई ,फ़िर भी निम्न पंक्तियों में व्यंग्य लगा
नीला पडा है मछली का
प्यास होगी इधर से निकली है
ग़ज़ल के बोल और लय तो बाकई काबिल-ऐ-तारीफ़ हैं ! कथ्य भी स्तरीय है किंतु समझने में थोडी कसरत करनी पडी !
bahut khub
अच्छी ग़ज़ल
ज़िस्म में से नुक्ता हटा कर जिस्म करें।
अवनीश जी,
आपकी ग़ज़ल के बारे मै ये कहना चाहूँगा
१) अगर भाषात्मक आंकलन करुँ तो
आपकी रचना सम्पूर्णता को पाती है..
रदीफ़,काफिया सब सुन्दर बन पढ़ा है..
२) अगर भावात्मक आंकलन करू.. तो कुछ कमी सी महसूस हुई..
क्यों की पाठक तक वही बात नहीं पहुच पाती जो आप कहना चाह रहे है..मुझे अभी तक समझ नहीं आई.. :(
३)अगर स्वरात्मक ( गेय पद्य) के रूप मै आंकलन करू तो..
मुझे लगा थोडा पद की लम्बाई छोटी है बहर आने के लिए
अच्छी कोशिश के लिए बादही
सादर
शैलेश
"ज़िस्म नीला पडा है मछली का
प्यास होगी इधर से निकली है"
मुद्दतों बाद फिज़ा बदली है
उनके होठों पे' हँसी असली है
अच्छी ग़ज़ल है...छोटे बहर में लिखना मुश्किल भी है और आसन भी...आपने कंटेंट में कमी नहीं आने दी है...वैसे ये कब की लिखी रचना है....
निखिल
अवनीश जी आपकी ग़ज़ल काबिले तारीफ़ है
किंतु कुछ खामियां है जैसे कुछ शेरो के भाव नही समझ आए
मेरा माझी गुज़र गया शायद
वो यह कहती है कैसी पगली है
इसका भाव मुझे समझ नही आया मई कोई बड़ा शायर नही शायद आपने इस कलाम में बहुत बड़ी बात कही हो
पर मै एक बात कहता हूँ की जटिल लिखना और पाठको की समझ से बाहर हो सही नही है
हां कुछ शेर मुझे बहुत अच्छे लगे जैसे
राह भटके तो खो गई मंज़िल
कहने वालों की बात नकली है
तारीफे काबिल शेर है
अंत में यही कहूँगा यदि कोई कवि या शायर जिसके शेर या कविताये जटिल हो तो वो नीचे अपने विचार लिखकर अपने बात को समझा दिया करे जिससे पाठको को समझने में आसानी हो
वाह ,,,,सूत कच्चा है :) बहुत खूब
"अवनीश जी आपकी ग़ज़ल काबिले तारीफ़ है
किंतु कुछ खामियां है जैसे कुछ शेरो के भाव नही समझ आए "
बढ़िया है , समझ आए तो कविता अच्छी और न समझ आए तो कविता की गलती :)
मेरा माज़ी गुज़र गया शायद
वो यह कहती है कैसी पगली है
विरोधाभास अलंकार का इतना सुंदर प्रयोग कम ही देखने को मिलता है. अच्छा है, लिखते रहिये.
धन्यवाद आप सभी का. Anonymous जी जिस्म से नुक्ता हटाया जा रहा है. निखिल जी ये 6 वर्ष पुराने शेर हैं. क्षमा चाहता हूँ पर यदि कुछ लोगों को भाव समझ में नहीं आये तो यह शेरों की कमी नहीं हैं :)
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