मई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता के १०वें स्थान के कवि अजीत पाण्डेय की कविता हम अब तक इसलिए नहीं प्रकाशित कर सके थे क्योंकि उन्होंने अपना परिचय भेजने में काफी विलम्ब किया। अजीत पाण्डेय जी सिंघाद इंस्टीट्यूट, पुणे में प्राध्यापक हैं, मूल रूप से महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के चिल्ली (१) ग्राम के निवासी हैं। बचपन से कविताओं और ग़ज़लों के शौकीन हैं। ये शिवानी सिंह के आभारी हैं जिन्होंने इन्हें हिन्द-युग्म का रास्ता दिया।
पुरस्कृत कविता- बदल गये हैं
हालात बदल गये हैं, खयालात बदल गये हैं,
सायल वही है फिर भी सवालात बदल गये हैं.
शहरों की तरक्की पर है नाज़ मुझे भी,
बस ग़म जरा सा है क्यों देहात बदल गये हैं.
सायल वही है फिर भी सवालात बदल गये हैं.
वो दौर दोस्ती का, दोस्तों में दोस्ती थी ,
अब दोस्ती के मायने औ ज़ज्बात बदल गये है.
सायल वही है फिर भी सवालात बदल गये है.
सोहबत में हैं आज भी करीबी बहोत 'शफक़',
बस जो दिल से दिल के थे वो तालुकात बदल गये हैं.
सायल वही हैं फिर भी सवालात बदल गये हैं.
**सायल- प्रश्नकर्ता, सवाल करने वाला
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ३॰५, ६॰६, ६॰५
औसत अंक- ५॰६५
स्थान- पंद्रहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४॰५, ५, ३॰८, ५॰६५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰७३७५
स्थान- दसवाँ
पुरस्कार- शशिकांत 'सदैव' की ओर से उनके शायरी-संग्रह दर्द की क़तरन की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
15 कविताप्रेमियों का कहना है :
वो दौर दोस्ती का, दोस्तों में दोस्ती थी ,
अब दोस्ती के मायने औ ज़ज्बात बदल गये है.
इरशाद ! इरशाद !!
शहरों की तरक्की पर है नाज़ मुझे भी,
बस ग़म जरा सा है क्यों देहात बदल गये हैं...
बहुत बढिया..
वो दौर दोस्ती का, दोस्तों में दोस्ती थी ,
अब दोस्ती के मायने औ ज़ज्बात बदल गये है.
सायल वही है फिर भी सवालात बदल गये है.
wah sahi kaha bahut khub
सुंदर ग़ज़ल है |
बधाई |
अवनीश तिवारी
वो दौर दोस्ती का, दोस्तों में दोस्ती थी ,
अब दोस्ती के मायने औ ज़ज्बात बदल गये है.
सायल वही है फिर भी सवालात बदल गये है.
ऐसे ही लिखते रहे
कविता अच्छी लगी और एक गजल की लाइन याद आ गयी
दोस्ती हर दिन की मेहनत है, चलो यूँ ही सही....
सुमित भारद्वाज
सोहबत में हैं आज भी करीबी बहोत 'शफक़',
बस जो दिल से दिल के थे वो तालुकात बदल गये हैं.
सायल वही हैं फिर भी सवालात बदल गये हैं
बढ़िया लेखन !
शहरों की तरक्की पर है नाज़ मुझे भी,
बस ग़म जरा सा है क्यों देहात बदल गये हैं.
सायल वही है फिर भी सवालात बदल गये हैं.
बहुत खूब |बधाई
bahut achhi kavita. aise hi likh kar hausala badhye.
samarjeet verms
शहरों की तरक्की पर है नाज़ मुझे भी,
बस ग़म जरा सा है क्यों देहात बदल गये हैं.
सोहबत में हैं आज भी करीबी बहोत 'शफक़',
बस जो दिल से दिल के थे वो तालुकात बदल गये हैं.
ये दो शेर वाकई लाजवाब है
बधाई हो आपको
ऐसी ही अच्छी ग़ज़ल लिखते रहे
बहुत खूब लिखा है, लिखते रहें .
अच्छे सवाल हैं, अच्छी कविता है. वर्तनी पुनः देखने की ज़रूरत लगती है.
Coooooooooooool.
bahut khub miya.
waiting for more.
लाजवाब शिरकत की है आपने हिंद युग्म में !अपने प्रथम प्रयास में ही इतने ऊंचे स्थान पर आ गए ,बहुत बहुत मुबारक !शिवानी तो सिर्फ बहाना है ,तुम्हे तो बहुत ऊँचाई पर जाना है !
वो दौर दोस्ती का ,दोस्तों में दोस्ती थी ,
अब दोस्ती के मायने औ ज़ज्बात बदल गए हैं
सायल वही हैं फिर भी सवालात बदल गए हैं !
जिंदगी की इसी सच्चाई में हम भी उलझे हैं !आपने बहुत अच्छा लिखा है !आगे और भी उम्मीदें रहेंगी !अपना प्रयास यूँही जारी रखें !
बहुत बढिया!!!!
बहुत बढिया!!!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)