बात लच्छों में लपेट कर कहनी मुझे आई नहीं
और इस दुनिया को मेरी साफ़गोई भाई नही
मैं यूहीं चलता रहा जमाने से कुछ अलग हट कर
मुझे खुशी है बजूद से अपने, मैं कोई परछांई नही
महलों में घूमने से कब किसे यहां खुशी है मिली
बहार आने पर तो जंगल में भी हर कली है खिली
जो आराम थक कर खुली जमीन पर पसर जाने से है
वो लज्जत किसी ने मखमली बिस्तर मे भी पाई नहीं
मन के हालात तय करते हैं खुशी व गम का पैमाना
बांटने से और बढता है मुस्कराहटों का यह खजाना
एक बार गिरने से कोई मायूस होता उम्र भर के लिये
क्या बहुतेरों ने यहां बिना बैसाखी लाचारी निभाई नहीं
अंधेरों को देखना हो तो देखना उजालों का सपना ले कर
मिल जाये रोशनी तो चलना अंधेरों की यादें साथ ले कर
मुफ़लिसी हजार दर्जे बेहतर है किसी बहकी हुई अमीरी से
जमीर को हमेशा आग समझना महज एक दियासलाई नही
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
बात लच्छों में लपेट कर कहनी मुझे आई नहीं
और इस दुनिया को मेरी साफ़गोई भाई नही
मैं यूहीं चलता रहा जमाने से कुछ अलग हट कर
मुझे खुशी है बजूद से अपने, मैं कोई परछांई नही
क्या बात है मोहिन्दर जी....
मोहिन्दर जी,
अंधेरों को देखना हो तो देखना उजालों का सपना ले कर
मिल जाये रोशनी तो चलना अंधेरों की यादें साथ ले कर
मुसलिसी हजार दर्जे बेहतर है किसी बहकी हुई अमीरी से
जमीर को हमेशा आग समझना महज एक दियासलाई नही
आपकी रचना में आशावादिता और संदेश का सम्मिश्रण है..बेहतरीन रचना।
***राजीव रंजन प्रसाद
मन के हालात तय करते हैं खुशी व गम का पैमाना
बांटने से और बढता है मुस्कराहटों का यह खजाना
एक बार गिरने से कोई मायूस होता उम्र भर के लिये
क्या बहुतेरों ने यहां बिना बैसाखी लाचारी निभाई नहीं
मुझे यह पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगी आपकी इस रचना की मोहिंदर जी ..अच्छा लिखा है आपने बहुत ..
बात लच्छों में लपेटकर कहनी मुझे आई नहीं
और इस दुनियॉ को मेरी साफगोई भाई नहीं----
--------वाह ! क्या बात है !! एक अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें-------
--और साफगोई का तकाजा यह है कि टंकण में त्रुटी की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करूं------
--वो लज्जत किसी ने मखमली बिस्तर भी पाई नहीं----में-- बिस्तर से भी पाई नहीं--- होना चाहिए।
--मुफलिसी-- तो सुना है -- क्या मुसलिसी सही है ? ---देवेन्द्र पाण्डेय।
अच्छी और सच्ची कविता.
आभार.
mujhe to apki her pakti aachchhi lagi.itna sundar ghajal!vo bhi pahli,bhayi kamalkar diye janab.
sunil kr sonu
email:-sunilkumarsonus@ahoo.com
अंधेरों को देखना हो तो देखना उजालों का सपना ले कर
मिल जाये रोशनी तो चलना अंधेरों की यादें साथ ले कर
मुसलिसी हजार दर्जे बेहतर है किसी बहकी हुई अमीरी से
जमीर को हमेशा आग समझना महज एक दियासलाई नही
behad khubsurat baat kahi,bahut badhai
अन्तिम छंद सबसे अच्छा लगा |
बहुत जोश पूर्ण है |
बधाई |
अवनीश तिवारी
मन के हालात तय करते हैं खुशी व गम का पैमाना
बांटने से और बढता है मुस्कराहटों का यह खजाना
एक बार गिरने से कोई मायूस होता उम्र भर के लिये
क्या बहुतेरों ने यहां बिना बैसाखी लाचारी निभाई नहीं
क्या बात कही है? मोहिन्दर जी!
वो भी बिना किसी लाग लपेट के. सच्ची कहते रहो, हमे नित नयी रचनायें देते रहो. बधाई हो-बधाई, बहुत अच्छा मेरे भाई.
अंधेरों को देखना हो तो देखना उजालों का सपना ले कर
मिल जाये रोशनी तो चलना अंधेरों की यादें साथ ले कर
मुसलिसी हजार दर्जे बेहतर है किसी बहकी हुई अमीरी से
जमीर को हमेशा आग समझना महज एक दियासलाई नही
हर कड़ी बढ़िया है मोहिन्दर जी किस किस का
बखान करुं
देवेन्दर जी,
टंकण की त्रुटियों की और ध्यान दिलाने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया...मैने त्रुटियां दूर कर दी है..
मन के हालात तय करते हैं खुशी व गम का पैमाना
बांटने से और बढता है मुस्कराहटों का यह खजाना
एक बार गिरने से कोई मायूस होता उम्र भर के लिये
क्या बहुतेरों ने यहां बिना बैसाखी लाचारी निभाई नहीं
बहुत ही अच्छे लगे आपके यह शेयर
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