तुम बिन जीवन एसा
जैसे घर को लूट लुटेरे, जाते आग लगा कर जायें
जैसे इतनी बरसे बरखा, विप्लव हो
और उस पर जा कर बाँध कोई ढह जाये
जैसे चक्रवात के गुजरे पीछे वीराना होता है
जैसे रात चाँदनी क्या है, अंधा पूछ रहा होता है
जैसे मरे प्यास से कोई, बारिश उसकी चिता बुझा दे
जैसे हाँथ बाँध कर ज़िन्दा मुझको कोई आग लगा दे
जैसे डोब रखे पानी में कोई, जब तक मर न जाऊं
जैसे मौत माँगता भटकूं और हर बार बचाया जाऊं
जैसे सपना देख तुम्हारा, आँखें खोलूं वीराना हो
जैसे विरह का अफसाना हो, हँसता गाता दीवाना हो
जैसे कि खंडहर में तुम्हें दी हुई पुकार
मुझ तक ही लौट आती है हर बार, बार बार
जैसे कि लूट ले दुल्हन की पालकी कहार
तुम बिन जीवन एसा जैसे
जीवन कोई उधार..
जैसे घर को लूट लुटेरे, जाते आग लगा कर जायें
जैसे इतनी बरसे बरखा, विप्लव हो
और उस पर जा कर बाँध कोई ढह जाये
जैसे चक्रवात के गुजरे पीछे वीराना होता है
जैसे रात चाँदनी क्या है, अंधा पूछ रहा होता है
जैसे मरे प्यास से कोई, बारिश उसकी चिता बुझा दे
जैसे हाँथ बाँध कर ज़िन्दा मुझको कोई आग लगा दे
जैसे डोब रखे पानी में कोई, जब तक मर न जाऊं
जैसे मौत माँगता भटकूं और हर बार बचाया जाऊं
जैसे सपना देख तुम्हारा, आँखें खोलूं वीराना हो
जैसे विरह का अफसाना हो, हँसता गाता दीवाना हो
जैसे कि खंडहर में तुम्हें दी हुई पुकार
मुझ तक ही लौट आती है हर बार, बार बार
जैसे कि लूट ले दुल्हन की पालकी कहार
तुम बिन जीवन एसा जैसे
जीवन कोई उधार..
***राजीव रंजन प्रसाद
30.10.2000
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
tum bin jeevan aisa jaise jeevan koi udhar,bahut hi sundar bhav,dil mein kuch ehsaas jagati sundar kavita ke liye bahut badhai
राजीव जी,
बहुत ही गजब का उत्प्रेक्षा दिया है और बहुत ही प्रबल भाव की पंक्तियाँ
जैसे मरे प्यास से कोई, बारिश उसकी चिता बुझा दे
जैसे हाँथ बाँध कर ज़िन्दा मुझको कोई आग लगा दे
जैसे डोब रखे पानी में कोई, जब तक मर न जाऊं
जैसे मौत माँगता भटकूं और हर बार बचाया जाऊं
बहुत बहुत बधाई
राजीव जी,
प्रेमभाव से सरावोर व भावुक कर देने वाली रचना के लिये बधाई.. आप की रचना पढ कर कुछ पुराने नगमें याद आ गये..
तुम बिन जीवन कैसा जीवन.. पूछो मेरे दिल से..हाये पूछो मेरे दिल से
तुम नहीं तो जिन्दगी में और क्या रह जायेगा... दूर तक तन्हाईयों का सिलसिला रह जायेगा..
जैसे सपना देख तुम्हारा, आँखें खोलूं वीराना हो
जैसे विरह का अफसाना हो, हँसता गाता दीवाना हो
जैसे कि खंडहर में तुम्हें दी हुई पुकार
मुझ तक ही लौट आती है हर बार, बार बार
वाह बहुत ही सुंदर लिखा है राजीव जी ..नया सा लगा आपका यह अंदाज़ पसंद आया बहुत ..लिखते रहे
-------------जैसे मरे प्यास से कोई बारिश उसकी चिता बुझा दे--------
ऐसी पंक्तियों को पढ़कर ही मुख से बसबस निकलता है----आह !--------देवेन्द्र पाण्डेय।
pranam rajeev ji,
meri kismat to dekhiye, hindyugm khola n aap nazar aa gaye.
par sach kahu to kuch hadd tak nirash kiya aapne.
vo anad nahi aaya, jiske liye log aapki kavita ko khojte firte hai.kahi kuch "kami" see mehsus hui.
bhav-sampreshan accha tha, par vo bahav na tha, jiski apeksha hoti hai, ho sakta hai mere vicharo se jyada pathak sehmat na ho, par cooments me mann ki baat keh dena.....shayad isi liye hum comments likhte hai.
pankti jo visesh pasand aayi.....
जैसे डोब रखे पानी में कोई, जब तक मर न जाऊं
जैसे मौत माँगता भटकूं और हर बार बचाया जाऊं
aabhar,
arya manu,
udaipur
बहुत सुंदर प्रवाह बनता है पढ़ते समय |
बिल्कुल फ्लो मे है | बधाई |
-- अवनीश तिवारी
अच्छी कविता है ...भावुक मन की अभिव्यक्ति ..
सुनीता
जैसे कि खंडहर में तुम्हें दी हुई पुकार
मुझ तक ही लौट आती है हर बार, बार बार
जैसे कि लूट ले दुल्हन की पालकी कहार
तुम बिन जीवन एसा जैसे
जीवन कोई उधार..
बहुत ही सुंदर |बधाई
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