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Tuesday, June 10, 2008

क्षणिकायें


खौलते पानी से हाथ जला लिया उसने
पानी से आग बुझती है
किसी से सुना होगा

भागते भागते गिर कर मर गया कोई
जिन्दगी मौत से बदतर है
उसी से भाग रहा था

टूटे नग कौन गहनों में बिठाता है
अब कोई ख्वाब नहीं
आंखें सूनी हैं

रिश्तों के पुल आंसुओं से न बह जायें
यही सोच कर
अब वह रोता नहीं

बात बनते बनते फ़िर से बिगड ही गई
लफ़्ज जुबां से न निकले
रिश्ता टूट गया

उसने साथ जीने मरने की कसम खाई
मगर निभाई नहीं
शायद पचा ली

उसको स्कूल या पढना कभी भाया नहीं
रात भर तारे गिने
मुहब्बत का असर

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

उसको स्कूल या पढना कभी भाया नहीं
रात भर तारे गिने
मुहब्बत का असर
wah bahut hi badhiya

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सुंदर,मन को भाया
आलोक सिंह "साहिल"

रंजू भाटिया का कहना है कि -

टूटे नग कौन गहनों में बिठाता है
अब कोई ख्वाब नहीं
आंखें सूनी हैं

बहुत खूब ...

रिश्तों के पुल आंसुओं से न बह जायें
यही सोच कर
अब वह रोता नहीं

बहुत अच्छी लिखी है आपने मोहिंदर जी ..

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

यदि कहूँ कि - "आप की रचना मे और मूल्य आ गया है टू अतिशयोक्ति नही होगी " |

आपने अपने को ढालने का सफल प्रयास किया है |

बधाई
अवनीश

Sajeev का कहना है कि -

नया प्रयोग अच्छा लगा....बधाई

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

क्षणिकाये रूपी मणिकायें अच्छी बनी है..

सीमा सचदेव का कहना है कि -

रिश्तों के पुल आंसुओं से न बह जायें
यही सोच कर
अब वह रोता नहीं
बहुत ही सटीक

Pooja Anil का कहना है कि -

मोहिंदर जी,

दुखती रग पे हाथ रख दिया हो जैसे ,

उसने साथ जीने मरने की कसम खाई
मगर निभाई नहीं
शायद पचा ली

बहुत अच्छा लिखा है , शुभकामनाएं.

^^पूजा अनिल

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