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Tuesday, June 10, 2008

अल्पविराम


किसी सालाना जलसे सा लगता है अब घर जाना
यात्रा के आखिरी पड़ाव सा शांत खड़ा मिलता है घर
आखिरी प्लेटफार्म सा जम्हाई लेता
अकेला खड़ा
हाथ हिलाता आने जाने वालों को
पूरा करता निमंत्रण की औपचारिकतायें
मुस्कुराता खिड़किओं से
पलकें झपकाता परदे गिराकर

घर की मुस्कराहट के पीछे
दिख जाती हैं कुछ डबडबाई ऑंखें
शब्दों के दायरे से बाहर झांकती कुछ भावनाएं
मेरे दुबलेपन को कोसती माँ की रसोई
अखबारों के पीछे से झांकते पिता के प्रश्न
एक अनसुलझा सवाल लगता है घर आना अब

चौराहे पर खड़ा गुलमोहर,रोकता है मेरे कदम
मुस्तैद ,लाल बत्ती की तरह
आम के पत्ते सुनाते हैं रात का गीत
थपकिओं से सुलाता है आँगन
साथ साथ सोता है जब,घर भी
एक पूर्णविराम सा लगता है घर जाना तब

पर
अलार्म घड़ी सा चीख उठता है कागज़ का एक टुकडा
झूमता नही गुलमोहर अब,आम के पत्ते गूंगे हो जाते हैं
जाग जाता है घर चौंक कर
उस कागज़ की आवाज़
जिसके एक ओर छपा है
रेल का टिकट
और
यह पूर्णविराम नही है
कहती है दूसरी ओर
गेंहूँ की रोटी

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी कि कड़ी में जुड़ती एक बेहतर कविता.बधाई
आलोक सिंह "साहिल"

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

तुम्हारा मूल्यांकन नही कर सकता | फ़िर भी एक पाठक के नाते से - ८/१० नही ९/१० ... |

-- अवनीश तिवारी

Sajeev का कहना है कि -

घर की मुस्कराहट के पीछे
दिख जाती हैं कुछ डबडबाई ऑंखें
शब्दों के दायरे से बाहर झांकती कुछ भावनाएं
मेरे दुबलेपन को कोसती माँ की रसोई
अखबारों के पीछे से झांकते पिता के प्रश्न
एक अनसुलझा सवाल लगता है घर आना अब
क्या बात है पावस, कितने सुंदर शब्द दिये हैं तुमने....आखिरी पंक्तियों ने मन को यूँ छुवा की आंख भर आयी

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

पावस जी,

आपने तो इस कविता के बाद दिल जीत लिया। आपकी सभी कविताओं की खास बात यह रही है कि आप उनमें भावनाएँ असली भावनाएँ पिरोते हैं। एक-एक शब्द महसूस किया हुआ लगा।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बहुत बढिया, दिल की बात शब्दों में...
महसूस किये जाने वाली रचना..

सीमा सचदेव का कहना है कि -

किसी सालाना जलसे सा लगता है अब घर जाना
यात्रा के आखिरी पड़ाव सा शांत खड़ा मिलता है घर
आखिरी प्लेटफार्म सा जम्हाई लेता
अकेला खड़ा
हाथ हिलाता आने जाने वालों को
पूरा करता निमंत्रण की औपचारिकतायें
मुस्कुराता खिड़किओं से
पलकें झपकाता परदे गिराकर
पावस जी आपकी लेखनी की अलग ही पहचान है ,बधाई

Pooja Anil का कहना है कि -

पावस जी ,

घर की याद दिलाती आपकी रचना सचमुच मन में गहरे उतर गई . बहुत सुंदर.

^^पूजा अनिल

anuradha srivastav का कहना है कि -

सुन्दर रचना............

Nikhil का कहना है कि -

आपकी कविता आपके हुनर पर मुहर लगाती है...बारीकियां पकड़ने वाला एक और कवि हमारे बीच है, इस बात का भरोसा हो गया...
ऐसे ही लिखते रहे...
सस्नेह,
निखिल

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