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Tuesday, June 10, 2008

ज़िन्दगी, तू इतनी मासूम भी नहीं कि तुझे गोद में लिए बैठा रहूँ


बहुत समय के बाद हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता में क्षणिकाओं ने स्थान बनाया है। मई महीने के तीसरे स्थान के रूप में यश की 'क्षणिकाएँ' हैं। यश नाट्य-निर्देशन और फिल्म निर्देशन में सक्रिय हैं और दिल्ली में निवास करते हैं।

पुरस्कृत कविता- क्षणिकाएँ

पुराने दर्द
जब दर्द की दूकान पर
खरीदार आते हैं,
मेरे दर्द को देख कर वो कहते हैं-
इतने पुराने दर्द,
अब नही बिकते हैं...

खुद्खुशी
मेरे घर के एक कोने में,
एक खुशी ने खुद्खुशी की थी,
मेरा मकान है कि -
मातम में नहाया हुआ...

एक दिन
एक दिन चाँद
फ़ैल गया था चूडियाँ बन उनकी कलईयों का,
एक दिन चाँद ने चूडियों को तोड़ डाला,
एक दिन सुबह का सूरज सर्द था
उसके चारों तरफ़ दर्द था,
एक दिन....

भूखा खुदा
पहले मेरी खुशियाँ,
अब उसकी जान,
ये खुदा, तू भी कितना भूखा है...

प्राण
पोर पोर प्राण का सहला गयी,
अनछुई उँगलियों की,
मौन
गुदगुदाहटें ...

बटुआ
दर्द से कराहती माँ - मेरे बटुआ खाली है,
फटे कपडों में घूमता बाप - मेरा बटुआ खाली है,
कपडों में उभरता जवान मांस बहन- मेरा बटुआ खाली है,
मेरी ऑंखें धुंधला देखती हैं...
मेरा बटुआ खाली है...

रात
आज की रात, न आ पाएगी,
आज तो सुबह से ही गीली है,
फिसल जायेगी सुबह के गीलेपन में,
रात,
आज की रात न आ पाएगी ..

जिन्दगी
जिन्दगी
तू इतनी मासूम भी नहीं
कि तुझे
गोद में लिए बैठा रहूँ...


प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ७, ६॰२, ७॰२५
औसत अंक- ६॰६१२५
स्थान- चौथा


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ५॰५, ६, ६॰६१२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰२७८१२५
स्थान- तीसरा


पुरस्कार- शशिकांत 'सदैव' की ओर से उनके काव्य-संग्रह दर्द की क़तरन की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

सीमा सचदेव का कहना है कि -

पहले मेरी खुशियाँ,
अब उसकी जान,
ये खुदा, तू भी कितना भूखा है...
सच्च मे अतिशय दुःख मे टू यही शब्द निक्लेगे | बहुत सुंदर ....बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर सब एक से बढ़ कर एक

Sajeev का कहना है कि -

जिन्दगी
तू इतनी मासूम भी नहीं
कि तुझे
गोद में लिए बैठा रहूँ...
वाह...

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आपने क्षणिका का मतलब समझा है। बेहतरीन क्षणिकाएँ

Anonymous का कहना है कि -

सभी क्षणिकाएँ अत्यंत प्यारी.बधाई
आलोक सिंह "साहिल"

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वाह !

Anonymous का कहना है कि -

यश जी, बेशक आपने उम्दा क्षणिकाएँ लिखीं हैं काफी सराहनीय प्रयास रहा| लेकिन कहीं एक काँटा है जो चुभ रहा है....माफ़ कीजियेगा मैं हिंद युग्म में कमेन्ट तो प्रायः नहीं करता लेकिन पूरे मनोयोग से हर रचना पढता रहा हूँ ......आज खुद को लिखने से रोक नहीं सका |
........बटुआ.......की ये पंक्तियाँ देखिये
कपडों में उभरता जवान मांस बहन- मेरा बटुआ खाली है,
यहाँ आप का शब्द संयोजन भटकता हुआ लग रहा है| आप जिस भाव को पिरोना चाह रहे हैं वह शालीन अभिव्यक्ति की गुजारिश करता है न की 'कपडों में उभरता जवान मांस बहन' जैसी अनर्गल अभिव्यक्ति की| आप यहाँ भाई बहन जैसे पवित्र रिश्तों का अवलंब लेकर दुनिया से जूझते हुए इंसान की मजबूर मनोदसा का चित्रण कर रहे हैं| लेकिन यह मजबूरी नायक का आत्म नियंत्रण हर के बौखलाहट के रूप चित्रित हो रही है..और आप "कपडों में उभरता जवान मांस" जैसे शब्द समूहों का प्रयोग कर बैठते है .....आशा है जल्दबाजी में यह हुआ होगा...कृपया सुधार की कोशिश करे|

Pooja Anil का कहना है कि -

यश जी ,

बेहद संवेदनशील क्षणिकाएँ हैं , बधाई

^^पूजा अनिल

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

गागर में सागर !!
बहुत बहुत धन्यवाद !!!

anuradha srivastav का कहना है कि -

सार्थक.......

Anonymous का कहना है कि -

bahut khoob

pallavi trivedi का कहना है कि -

बहुत सुंदर क्षणिकाएँ.... सार गर्भित..

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