मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
जल गयी लाश थी कोई पत्थर हुआ
क्या संभाले उसे, क्या करेंगे दुआ
ज़िंदगी आँख में रुक गयी काँच बन
और हाँथों की हर फूटती चूडियाँ
इसमें भी है खबर, कैमरे की नज़र
चीखती अधमरी की तरफ तन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
जिसने फोडा था बम उसका ईमान क्या
उफ पिशाचों से बदतर वो हैवान था
हो कि हूजी, सिमि या कि लश्कर कोई
कैसे खुफिया हैं क्यों तंत्र अंजान था
लोकशाही में आलू तो मँहगा हुआ
आदमी की रही कोई कीमत नहीं
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
वो पहन कर के खादी निकल आयेंगे
उंगलियों को उठा कर के चिल्लायेंगे
चुप हैं घडियाल सूखी नदी देख लो
उनकी आँखों से आँसू निकल आयेंगे
जो बचाते हैं अफज़ल को इस देश में
वो हैं कारण अमन की कबर बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
मुझको अफसोस मेरे गुलाबी शहर
तेरे सीने में नश्तर, लहू का कहर
अब सियासी बिसातों की सौगात बन
फैलता जायेगा हर डगर एक ज़हर
हादसे पर सिकेंगी बहुत रोटियाँ
देख गिद्धों की कैसी नज़र बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
***राजीव रंजन प्रसाद
14.05.2008
जल गयी लाश थी कोई पत्थर हुआ
क्या संभाले उसे, क्या करेंगे दुआ
ज़िंदगी आँख में रुक गयी काँच बन
और हाँथों की हर फूटती चूडियाँ
इसमें भी है खबर, कैमरे की नज़र
चीखती अधमरी की तरफ तन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
जिसने फोडा था बम उसका ईमान क्या
उफ पिशाचों से बदतर वो हैवान था
हो कि हूजी, सिमि या कि लश्कर कोई
कैसे खुफिया हैं क्यों तंत्र अंजान था
लोकशाही में आलू तो मँहगा हुआ
आदमी की रही कोई कीमत नहीं
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
वो पहन कर के खादी निकल आयेंगे
उंगलियों को उठा कर के चिल्लायेंगे
चुप हैं घडियाल सूखी नदी देख लो
उनकी आँखों से आँसू निकल आयेंगे
जो बचाते हैं अफज़ल को इस देश में
वो हैं कारण अमन की कबर बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
मुझको अफसोस मेरे गुलाबी शहर
तेरे सीने में नश्तर, लहू का कहर
अब सियासी बिसातों की सौगात बन
फैलता जायेगा हर डगर एक ज़हर
हादसे पर सिकेंगी बहुत रोटियाँ
देख गिद्धों की कैसी नज़र बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
***राजीव रंजन प्रसाद
14.05.2008
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut sashakta rachana badhai,bilkul sahi kaha,insaan ki koi kimat nahi jo zinda hai,jab mar jaye breaking news ho jaye,ufff ye media wale
राजीव जी,
रात इसी विषय पर कुछ शब्द जोड़े थे और अभी सुबह आकर देखा तो मेरी वेदना आपकी लेखनी मुखरित हुई देखकर दिल भर आया..
जल गयी लाश थी कोई पत्थर हुआ
क्या संभाले उसे, क्या करेंगे दुआ
ज़िंदगी आँख में रुक गयी काँच बन
और हाँथों की हर फूटती चूडियाँ
इसमें भी है खबर, कैमरे की नज़र
चीखती अधमरी की तरफ तन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
बहुत बहुत बधाई..
अब सियासी बिसातों की सौगात बन
फैलता जायेगा हर डगर एक ज़हर
हादसे पर सिकेंगी बहुत रोटियाँ
देख गिद्धों की कैसी नज़र बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
राजीव जी इससे आगे कहने को कोई शब्द ही नही बचे है |
राजीव जी,
आज का सत्य आपकी रचना से टपकता है.. घोर आत्म मन्थन से ही ऐसी रचना का जन्म होता है जिसमें वातावरण से अवशोषित भावनाओं का सटीक मिश्रण हो.
बधाई
राजीव जी खूब चलती है आपकी कलम इन विषयों पर .बहुत सही लिखा है आपने इस हालात पर .लिखते रहे
हादसे पर सिकेंगी बहुत रोटियाँ
बिलकुल सही लिखा आपने....बस यही होता है हमारे देश में....
आपकी लेखनी को नमन..
आलोक सिंह "साहिल"
राजीव जी की यह एक बेहद सशक्त कविता है जो सच्चाई को निर्मम रूप से उजागर करती है. इच्छा है की आप का कोई संग्रह पढूं. इस विषय में सूचित कीजियेगा टू आभार
फैलता जायेगा हर डगर एक ज़हर
हादसे पर सिकेंगी बहुत रोटियाँ
देख गिद्धों की कैसी नज़र बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
बहुत खूब राजीव जी !
bahut sahi kavita likhi hai. kavita ki har pankti apne aap sashakt hai jo aaj ki paristhitiyo ko bayaan karti hai
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