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क्षणिकायें


खौलते पानी से हाथ जला लिया उसने
पानी से आग बुझती है
किसी से सुना होगा

भागते भागते गिर कर मर गया कोई
जिन्दगी मौत से बदतर है
उसी से भाग रहा था

टूटे नग कौन गहनों में बिठाता है
अब कोई ख्वाब नहीं
आंखें सूनी हैं

रिश्तों के पुल आंसुओं से न बह जायें
यही सोच कर
अब वह रोता नहीं

बात बनते बनते फ़िर से बिगड ही गई
लफ़्ज जुबां से न निकले
रिश्ता टूट गया

उसने साथ जीने मरने की कसम खाई
मगर निभाई नहीं
शायद पचा ली

उसको स्कूल या पढना कभी भाया नहीं
रात भर तारे गिने
मुहब्बत का असर