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Thursday, June 19, 2008

किसे सुनाऊँ अपने गीत


हिन्द-युग्म के जनवरी २००८ के यूनिकवि केशव कुमार कर्ण ने मई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में आठवाँ स्थान बनाया। आप भी देखिए आखिर यह कमाल कैसे हुआ?

पुरस्कृत कविता- किसे सुनाऊँ अपने गीत

तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत !!
वह मधुमय संसार सुहाना,
वह स्वर्णिम शैशव का हास !
सह-क्रीड़ा, साहचर्य हमारा,
बन कर रहा शुष्क इतिहास!!
क्या ये आँख मिचौनी ही है,
जरा बता बचपन के मीत !
तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत !!

कोतूहल कलरव पीपल तल,
बृहद् विटप का शीतल छाँव!
तटिनी तट फैला सिकतांचल,
स्नेह-सुधानिधि सुंदर गांव!
पगडण्डी पर आँख बिछाए,
गए कई निशि-वाषर बीत !
तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत !!

अश्रु शेष केवल आंखों में,
सपने तक नहीं आते हैं !
उस पीड़ा को क्या जानो तुम,
जब अपने छोड़ के जाते हैं !
याद तुम्हीं को करना प्रतिपल,
मेरे जर-जीवन की रीत !
तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत !!



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ५॰५, ७॰१, ६
औसत अंक- ६॰१५
स्थान- आठवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३॰५, ४, ७॰२, ६॰१५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰२१२५
स्थान- आठवाँ


पुरस्कार- शशिकांत 'सदैव' की ओर से उनके शायरी-संग्रह दर्द की क़तरन की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिय
किसे सुनाऊँ अपने गीत।
--सुंदर------
आपने यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लिया
और इतना प्यारा गीत हम सब को पढ़ाया
इसके लिए धन्यवाद।-देवेन्द्र पाण्डेय।

Prabhakar Pandey का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर रचना।

Alpana Verma का कहना है कि -

अश्रु शेष केवल आंखों में,
सपने तक नहीं आते हैं !
उस पीड़ा को क्या जानो तुम,
जब अपने छोड़ के जाते हैं !---
----
--बहुत अच्छा लिखा है यह विरह गीत..बधाई

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

अच्चा गीत है

कर्णप्रिय
वर्ण प्रिय

कुन्दन कुमार मल्लिक का कहना है कि -

संस्कृत के मूल शब्दों के साथ देशज शब्दों का ऐसा संयोजन विरले ही देखने को मिलता है। यह रचना कवि की उपमा, सौन्दर्य, शब्द संयोजन और शिल्प पर सहज अधिकार को दर्शाता है।
मुझे इस बात पर गर्व है की मैं उनके घनिष्ठ मित्रों में से हूँ।
केशव भाई, हार्दिक शुभकामना!
आपका-
कुन्दन कुमार मल्लिक

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

कोतूहल कलरव पीपल तल,
बृहद् विटप का शीतल छाँव!
तटिनी तट फैला सिकतांचल,
स्नेह-सुधानिधि सुंदर गांव!
पगडण्डी पर आँख बिछाए,
गए कई निशि-वाषर बीत !
तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत !!

एक सुन्‍दर बिम्‍ब उरेहा है.. बधाई।

mehek का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर ,बधाई

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

अश्रु शेष केवल आंखों में,
सपने तक नहीं आते हैं !
उस पीड़ा को क्या जानो तुम,
जब अपने छोड़ के जाते हैं !
भाव, शिल्प व शब्द संयोजन सराहनीय है.

Unknown का कहना है कि -

अश्रु शेष केवल आंखों में,
सपने तक नहीं आते हैं !
उस पीड़ा को क्या जानो तुम,
जब अपने छोड़ के जाते हैं !

बहुत ही बढिया लिखा है।
सुमित भारद्वाज

Anonymous का कहना है कि -

सुंदर लिखा है आपने.बधाई
आलोक सिंह "साहिल"

pallavi trivedi का कहना है कि -

sundar geet....badhai.

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

sundar


Avaneesh

Pooja Anil का कहना है कि -

अति सुंदर गीत है . बधाई.
लिखते रहें .

^^पूजा अनिल

Ashish Mishra का कहना है कि -

bahut hi sundar rachana ki hai aapne.

Anonymous का कहना है कि -

Keshavji
Mai apke duara likhi hui kavita humesa padhti hun aur meko apki sari kavitanye bahot achi lagti hai...asha hai ki ap hume humesa isi tarah pyari pyari kavitaye padhne mauka denge.

तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत !!..........
Ye git apne bahooooooot he acha likha hai..
isi tarah ke git ap likhte rahiye..
aur hindustan ke bahot bade kavi ban jaiye.....

Bahot sari subhkamnao ke sath..
Rachna

सीमा सचदेव का कहना है कि -

केशव जी आपका शब्द चयन बहुत ही अनूठा लगा
वह मधुमय संसार सुहाना,
वह स्वर्णिम शैशव का हास !
सह-क्रीड़ा, साहचर्य हमारा,
बन कर रहा शुष्क इतिहास!!
क्या ये आँख मिचौनी ही है,
जरा बता बचपन के मीत !बहुत ही सुंदर गीत |बधाई

Kamal का कहना है कि -

Wording of the poem "Kise Sunaoon Apne Geet" is very melodious.

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