पीयूष तिवारी की कविता 'बम विस्फोट हुआ' यूनिकवि प्रतियोगिता में चौथे पायदान पर है। देवास (म॰प्र॰) के एक छोटे से गाँव खाटेगाँव में ७ जनवरी १९८२ को जन्मे पीयूष इंदौर से BE करने के बाद मुम्बई में साफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। अपने पिता की कविताएँ सुनकर बचपन से ही कविताओं से अनुराग हो गया और खुद भी कविताएँ लिखने लगे।
पुरस्कृत कविता- बम विस्फोट हुआ
शाम सुनहरी हँसते चहरे , कहीं आरती अजान दुआ !
लौट रहे थे पंछी घर को , सूरज पश्चिम ओंट हुआ !!
उभरे तब आतंकी चहरे , दन से बम विस्फोट हुआ !
बिखरी चिथड़ों मे लाशें , फैला रक्त रुदन धुआँ !!
कुछ पल फैला सन्नाटा , फिर दशों दिशा चीत्कार उठी !
देख नजारा दहशत का , हर नयन अश्रु बौछार उठी !!
बहा लहू पानी सा , कदम कदम पे लाश पड़ी !
खैल घिनौना खेल यहाँ , अभिमानित सी मौत खड़ी !!
कुछ वहसी लोगों में फिर , मानव बस एक नोट हुआ !
उभरे कुछ आतंकी चहरे , दन से बम विस्फोट हुआ !!
बचे हुए जब संभले भागे , जो घायल उन्हें बचाने को !
बिछडे भगदड़ मे परिजन , मृत या जीवित मिलाने को !!
उड़ा कहीं पैर किसी का , खो गयी कहीं नयन ज्योति !
सन्नाटा कानों ने ओढ़ा , दूर कहीं वाणी लौटी !!
घाव लिए हिचकी भर रोता , जीवन मन चोट हुआ !
उभरे कुछ आतंकी चहरे , दन से बम विस्फोट हुआ !!
ढूँढ़ रहे खोया जो अपना , घायलों के ढेरों में !
मिला नहीं जब जीवित ढूँढ़े , लाशों के ढेरों में !!
कहीं किसी का लाल मिला, कहीं मिला घायल भाई !
कुछ लोगों की किस्मत ना, मृत परिजन देह आयी !!
कोई म्रत्यु वरन हुआ, कोई जीवन ओंट हुआ !
उभरे कुछ आतंकी चहरे , दन से बम विस्फोट हुआ !!
फिर भोर भई अगली, जो बचे वापस काम चले !
दो मिनट हुआ मोन, कुछ जगह शोक फूल डले !!
फिर चला घोषणा दौर, यहाँ स्मारक बनवायेंगे !
हर घायल को दुर्घटना की, छतिपूर्ति दिलवाएंगे !!
कुछ नेता मृत घर पहुँचे, जीवित परिजन एक वोट हुआ !
हर बार यही होता है , जब-जब बम विस्फोट हुआ !!
सिमटी लाशों के टुकड़ों में, किसका मजहब कौन कहे !
पटा पड़ा फर्शों पे लहू , क्या उसमे कोई धर्म बहे !!
गहरे जख्मों ने कभी क्या, अपनी जात बताई है !
निर्दोषों की बलि चढ़े, कैसी जेहाद बनाईं है !!
क्या किलकारी में राम-राम, या अल्लाह-अल्लाह बोध हुआ !
तो फिर क्यों मजहब के नाम, एक और बम विस्फोट हुआ !!
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ५, ६॰२, ७॰२५
औसत अंक- ६॰११२५
स्थान- नौवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ७, ५, ६॰११२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰०२८१२५
स्थान- चौथा
पुरस्कार- शशिकांत 'सदैव' की ओर से उनके शायरी-संग्रह दर्द की क़तरन की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
6 कविताप्रेमियों का कहना है :
सिमटी लाशों के टुकड़ों में, किसका मजहब कौन कहे !
पटा पड़ा फर्शों पे लहू , क्या उसमे कोई धर्म बहे !!
गहरे जख्मों ने कभी क्या, अपनी जात बताई है !
निर्दोषों की बलि चढ़े, कैसी जेहाद बनाईं है !!
क्या किलकारी में राम-राम, या अल्लाह-अल्लाह बोध हुआ !
तो फिर क्यों मजहब के नाम, एक और बम विस्फोट हुआ
बहुत अच्छा पीयुश जी एक्दम समयिक व जान्दार रचना है.
क्या किलकारी में राम-राम, या अल्लाह-अल्लाह बोध हुआ !
तो फिर क्यों मजहब के नाम, एक और बम विस्फोट हुआ
वाह ! बहुत सुन्दर
ढूँढ़ रहे खोया जो अपना , घायलों के ढेरों में !
मिला नहीं जब जीवित ढूँढ़े , लाशों के ढेरों में !!
कहीं किसी का लाल मिला, कहीं मिला घायल भाई !
कुछ लोगों की किस्मत ना, मृत परिजन देह आयी !!
कोई म्रत्यु वरन हुआ, कोई जीवन ओंट हुआ !
bahut hi umda.....
बचे हुए जब संभले भागे , जो घायल उन्हें बचाने को !
बिछडे भगदड़ मे परिजन , मृत या जीवित मिलाने को !!
उड़ा कहीं पैर किसी का , खो गयी कहीं नयन ज्योति !
सन्नाटा कानों ने ओढ़ा , दूर कहीं वाणी लौटी !!
घाव लिए हिचकी भर रोता , जीवन मन चोट हुआ !
उभरे कुछ आतंकी चहरे , दन से बम विस्फोट हुआ !!
मन को कचोट देने वाली पंक्तियाँ | बहुत सुंदर
बहुत खूब पीयूष जी ,
एक त्रासदी का भावनात्मक सम्बन्ध ...
आपकी कविता अच्छी लगी, बधाई , लिखते रहें .
^^पूजा अनिल
बहुत बड़िया सुन्दर
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)