यह लगातार दूसरी बार है कि हम हिन्द-युग्म की यूनकवि प्रतियोगिता से वाराणसी निवासी देवेन्द्र कुमार पाण्डेय की कविता प्रकाशित कर रहे हैं। इनकी पहली ईनामी कविता 'मुट्टी भर धूप' को पाठकों ने काफी पसंद किया था। पिछली बार किन्हीं कारणों से ये अपना चित्र नहीं भेज पाये थे, इस बार इनका चित्र हमें प्राप्त हो गया है।
पुरस्कृत कविता- प्रतीक्षा
जीवन के रास्ते में कई मुकाम हैं।
जैसे-
एक नदी है
नदी पर पुल है
पुल से पहले
सड़क की दोनों पटिरयों पर
कूड़े के ढेर हैं
दुर्गंध है
पुल के उस पार
रेलवे क्रासिंग बंद है।
क्रासिंग के दोनों ओर भीड़ है
भी़ड़ के चेहरे हैं
चेहरे पर अलग-अलग भाव हैं
अपने-अपने घाव हैं
अपनी-अपनी मंजिल है।
सब में एक समानता है
सबको मंजिल तक जाने की जल्दी है
लम्बी प्रतीक्षा-एक विवशता है।
ट्रेन की एक सीटी पर-
सबके चेहरे खिल जाते हैं।
ट्रेन की सीटी-
आगे बढ़ने का एक अवसर है
अवसर-
चींटी की चाल से चलती एक लम्बी मालगाड़ी है।
चेहरे बुझ जाते हैं।
प्रतीक्षा में-
एक हताशा है
निराशा है
गहरी बेचैनी है।
प्रतीक्षा-
कोई करना नहीं चाहता
ट्रेन के गुजर जाने की भी नहीं।
मंजिल है कि आसानी से नहीं मिलती।
जीवन एक रास्ता है जिसमें कई नदियाँ हैं
मगर अच्छी बात यह है
कि नाव है और नदियों पर पुल भी बने हैं।
रेलवे क्रासिंग बंद है
मगर अच्छी बात यह है कि
ट्रेन के गुजर जाने के बाद खुल जाती है।
कमी तो हमारे में है
कि हम
चींटी की चाल से चलती
एक लम्बी मालगाड़ी के गुजरने की
प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहते।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰५, ६॰६५, ५, ४॰३
औसत अंक- ५॰३६२५
स्थान- सोलहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ६, ४, ५॰३६२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰८४०६२५
स्थान- छठवाँ
पुरस्कार- डॉ॰ रमा द्विवेदी की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'दे दो आकाश' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
कमी तो हमारे में है
कि हम
चींटी की चाल से चलती
एक लम्बी मालगाड़ी के गुजरने की
प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहते।
वाह...बहुत गहरे अर्थों वाली एक खूबसूरत कविता के लिए बधाई.
कमी तो हमारे में है
कि हम
चींटी की चाल से चलती
एक लम्बी मालगाड़ी के गुजरने की
प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहते।
सच्च कहा आपने कमी टू हममे ही है लेकिन हम उन्हें ही नज़रंदाज़ कर देते है | बधाई......सीमा सचदेव
भाव अच्छे है | प्रतीक भी अच्छे चुने है |
कुल मिलकर रचना मे रूचि बनी रहती है अंत तक |
बहुत बधाई |
-- अवनीश तिवारी
देवेन्द्र जी ,
बहुत अच्छा सम्बन्ध बनाया है प्रतीक्षा और कमी का
कमी तो हमारे में है
कि हम
चींटी की चाल से चलती
एक लम्बी मालगाड़ी के गुजरने की
प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहते।
अधीरता जो बढ़ती जा रही है, वो कम होती ही नहीं. बहुत अच्छा लिखा है, बधाई
^^पूजा अनिल
बधाई हो सर जी,बहुत ही दमदार कविता लिखी आपने.
आलोक सिंह "साहिल"
देवेन्द्र जी,
रचना अच्छी है किंतु सपाट गद्यात्मकता से प्रवाह जैसी विशेषताओं से वंछित है। जबरदस्त बात है आपका प्रभावी कथ्य जो रेल्वेक्रासिंग जैसे बिम्ब के साथ पूरी तरह से अपनी बात कह पाता है। हाँ रचना के आरंभ में नदी और नदी पर का पुल नहीं खटकते किंतु रचना की पराकाष्ठा में नदी का जीवन से संबंध एसा लगता है जैसे अपने मूल दृश्यबंध में ठीक से नहीं बैठ पाता। तथापि यह रचना को कमजोर नहीं कर रहा किंतु कई बार पढने पर भी हर बार मैने महसूस किया कि तारतम्यता में कुछ कमी इस स्थल पर आती है। मैं रचना के अंत के लिये आपको विशेष साधुवाद देना चाहता हूँ।
***राजीव रंजन प्रसाद
देवेन्द्र जी
अच्छा रूपक बाँधा है आपने-
मंजिल है कि आसानी से नहीं मिलती।
जीवन एक रास्ता है जिसमें कई नदियाँ हैं
मगर अच्छी बात यह है
कि नाव है और नदियों पर पुल भी बने हैं।
रेलवे क्रासिंग बंद है
मगर अच्छी बात यह है कि
ट्रेन के गुजर जाने के बाद खुल जाती है।
बधाई स्वीकारें।
डा. रमा द्विवेदी said...
देवेन्द्र जी ,
प्रतीक्षा ज़िन्दगी का पर्याय है... परन्तु मशीनी-युग में कोई प्रतीक्षा नहीं करना चाहता....अच्छा कथ्य चुना है...प्रवाह कहीं कहीं बाधित हो रहा है....सफल प्रयास के लिए बधाई व शुभकामनाएं...
देवेंद्रजी ,
'मुट्ठी भर धूप' और प्रस्तुत काव्य दोनों बढिया है, बधाई हो !
कमी तो हमारे में है
कि हम
चींटी की चाल से चलती
एक लम्बी मालगाड़ी के गुजरने की
प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहते।
bahut hi gehri baat,bahut badhai.
congrats...
i loved this one..
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