फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, May 16, 2008

बाबरी


प्रपंच किया कुछ सिरफिरों ने
रजनी को दिया नाम उषा
किताबी फूलों से भर ली मंजूषा
जिसमें कौओं ने कांव कांव कर पत्थर डाले
असमंजस में पड़ा नादान इंसान
डूबता रहा आस्थाओं में
भंवर में फंसता रहा

एक धरोहर खड़ी हुई मिथ्या की नीव पर
जिसके नीचे
शवदाह में दबी अस्थियां
इतिहासकारों की परिकल्पना को सहलाती रही
जो जीवित होना चाहते थे
नासमझी पर रोना चाहते थे
ऐसे चमकीले दांत और अस्थियों के अवशेष
जिन्हें फूंक मार कर जिन्दा करने को
लालायित थे तांत्रिक
पर क्रुद्ध मौत के समक्ष जीवन की हार
हुई सिर फुटौवल
खुद ही घंटी बजाता खतरे का निशान
हत्या हुई बलिदान
लो फिर एक कुनामी
बन कर आई सुनामी ।

-हरिहर झा

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

12 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

हरिहर जी,

रचना बेहद प्रभावी है। कुछ बिम्ब अच्छे हैं जिन्हें रचना के आरंभिक पैरा में आपने प्रयुक्त किया है साथ ही कुछ बिम्ब भ्रामक भी जैसे "शवदाह में दबी अस्थियां"। "कौओ", "मोत", "फुटोवल", "कुद्ध" जैसी गलतियों नें रचना को कमजोर किया है।

आपका कथ्य प्रशंसनीय है।

***राजीव रंजन प्रसाद

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

प्रपंच किया किया कुछ सिरफिरों ने- ---- -भंवर में फंसता रहा। ये पंक्तियॉ बेहद अच्छी हैं।
---देवेन्द्र पाण्डेय।

Harihar का कहना है कि -

बहुत बहुत धन्यवाद राजीव जी!

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुंदर रचना लिखी है आपने हरिहर जी ..

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

झा जी,

सशक्त रचना है.. परंतु दूसरा पैरा अनेकार्थी सा लग रहा है.. सुगमता खो रहा है..

बधाई

सीमा सचदेव का कहना है कि -

खुद ही घंटी बजाता खतरे का निशान
हत्या हुई बलिदान
लो फिर एक कुनामी
बन कर आई सुनामी
अच्छी लगी यह पंक्तियाँ ...सीमा सचदेव

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

क्या मतलब है इसका ?
समझा ही नही |


अवनीश तिवारी

शोभा का कहना है कि -

हरि हर ji
बहुत ही सुंदर लिखा है अपने-
प्रपंच किया कुछ सिरफिरों ने
रजनी को दिया नाम उषा
किताबी फूलों से भर ली मंजूषा
जिसमें कौओं ने कांव कांव कर पत्थर डाले
असमंजस में पड़ा नादान इंसान
डूबता रहा आस्थाओं में
भंवर में फंसता रहा
बधाई

Pooja Anil का कहना है कि -

हरिहर जी ,
प्रथम चंद पंक्तियाँ अच्छी लगी ,
शुभकामनाएँ

^^पूजा अनिल

विश्व दीपक का कहना है कि -

रचना पूरी तरह से समझ नहीं आई , परंतु जितनी भी समझ आई, अच्छी लगी। ऎसा लगता है कि आप मूल बात को परदे के पीछे हीं रखना चाहते थे, इसलिए अलग-अलग बिंब डाले गए हैं और यही बिंब मुझे असमंजस में डाल रहे हैं।
कुछ पंक्तियाँ बेहद अच्छी हैं जैसे
प्रपंच किया कुछ सिरफिरों ने
रजनी को दिया नाम उषा
किताबी फूलों से भर ली मंजूषा
जिसमें कौओं ने कांव कांव कर पत्थर डाले
असमंजस में पड़ा नादान इंसान
डूबता रहा आस्थाओं में
भंवर में फंसता रहा


-विश्व दीपक ’तन्हा’

शोभा का कहना है कि -

हरिहर जी
बहुत ही सुन्दर प्रतीक लिइ हैं-
प्रपंच किया कुछ सिरफिरों ने
रजनी को दिया नाम उषा
किताबी फूलों से भर ली मंजूषा
जिसमें कौओं ने कांव कांव कर पत्थर डाले
असमंजस में पड़ा नादान इंसान
डूबता रहा आस्थाओं में
भंवर में फंसता रहा

एक सशक्त रचना के लिए बधाई।

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सुंदर बधाई

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)