जब भी देखा है दीवार पर टंगी
मोनालीसा की तस्वीर को
देख के आईने में ख़ुद को भी निहारा है
तब जाना कि ..
दिखती है उसकी मुस्कान
उसकी आंखो में
जैसे कोई गुलाब
धीरे से मुस्कराता है
चाँद की किरण को
कोई हलका सा 'टच' दे आता है
घने अंधेरे में भी चमक जाती है
उसके गुलाबी भींचे होंठो की रंगत
जैसे कोई उदासी की परत तोड़ के
मन के सब भेद दिल में ओढ़ के
झूठ को सच और
सच को झूठ बतला जाती हैं
लगता है तब मुझे..
मोनालीसा में अब भी
छिपी है वही औरत
जो मुस्कारती रहती है
दर्द पा कर भी
अपनों पर ,परायों पर
और फ़िर
किसी दूसरी तस्वीर से मिलते ही
खोल देती है अपना मन
उड़ने लगती है हवा में
और कहीं की कहीं पहुँच जाती है
अपनी ही किसी कल्पना में
आंगन से आकाश तक की
सारी हदें पार कर आती है
वरना यूं कौन मुस्कराता है
उसके भीचे हुए होंठो में छिपा
यह मुस्कराहट का राज
कौन कहाँ समझ पाता है!!
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30 कविताप्रेमियों का कहना है :
मोनालीसा में अब भी
छिपी है वही औरत
जो मुस्कारती रहती है
दर्द पा कर भी
बहुत ही बढ़िया कविता
yah rang bhee bahut achha laga
ANil
aap ki kavita vastav me tarifelayak hai
जो मुस्कारती रहती है
दर्द पा कर भी.
बहुत खूब !
बिल्कुल मोनालिसा की तरह बहुत ही खूबसूरत कविता।
एक-एक शब्द बहुत सुंदर।
kiya baat hai,
kiya gahraai ko chua hai aapne,
yeh kala har kisi ke andar nahi hoti.
रंजू जी ,
दिखती है उसकी मुस्कान
उसकी आंखो में
जैसे कोई गुलाब
धीरे से मुस्कराता है
चाँद की किरण को
कोई हलका सा 'टच' दे आता है
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ हैं , और -
मोनालीसा में अब भी
छिपी है वही औरत
जो मुस्कारती रहती है
दर्द पा कर भी
बेहद भावुक कर देने वाली कविता है . बहुत सुंदर लिखा है .बधाई
^^पूजा अनिल
रजंना जी,
भाव भरी रचना के लिये बधाई.. मुस्कराना जमाने मे सबसे मुशकिल काम है...
फ़िर भी मुस्कराते रहिये
आदत पड गई हो जिसे दर्द में मुस्काराने की
भला जरूरत क्या है उसे फ़िर किसी बहाने की
रंजू जी..बहुत खूबसूरत..
अच्छी कविता रंजू जी.
Hello, Ranju Ji....wow so nice poem write by you..very beautiful..aap ne kis tarah se womens ke internal beauty ko aur hansi ko world famous painting painting Monalisa ki hansi se bhav bhivor kar diya hai...I just say for your peom summary: Women is
Mother...
Women is
sister...
Women is
Gran maa...
women is
Friend....
Women is
Family...
Women is
Nation...
Women is
World....
Women is
Power of univers...
Univers Also
Power of women...
Women is not only
Women...
A women is
Homeable gods...
A women is
Loveable goodes...
With goodness...
Thanx for availabe so nice poem..god bless u...
Sanju
Lucknow
9838828439
रंजू जी
आपने एक नए अर्थ को ढ़ूँढ़ा है-
अपनी ही किसी कल्पना में
आंगन से आकाश तक की
सारी हदें पार कर आती है
वरना यूं कौन मुस्कराता है
उसके भीचे हुए होंठो में छिपा
अच्छी कल्पना।
अपनी ही किसी कल्पना में
आंगन से आकाश तक की
सारी हदें पार कर आती है
वरना यूं कौन मुस्कराता है
उसके भीचे हुए होंठो में छिपा
यह मुस्कराहट का राज
कौन कहाँ समझ पाता है!!
बहुत खूबसूरत रंजू जी
वर्ना यूं कौन मुस्कराता है
उसके भीचे हुए होठों में छिपा
यह मुस्कराहट का राज़
कौन यहाँ समझ पाता है !
बहुत खूब रंजना जी .....आपकी कविता बहुत अच्छी है अन्तिम चार पंक्तियाँ मुझे बहुत ही पसंद आई !उसके होठों की मुस्कराहट का राज़ तो आज भी रहस्य बना हुआ है आप ऐसे ही लिखती रहिये ....धन्यवाद
मेडम जी
बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने,
मेरे पास तो इसकी प्रशंसा हेतु शब्द तो नहीं है.
एक-एक शब्द इतना सजीव सा जान प़डता है.
बहुत-बहुत शुभकामनायें.
एक जानकारी है, जो शायद आपको भी पता होगी, यह चित्र तत्कालीन फ़्रांस के राजा के स्नानाघर की शोभा बढ़ाती थी.
जैसे कोई उदासी की परत तोड़ के
मन के सब भेद दिल में ओढ़ के
झूठ को सच और
सच को झूठ बतला जाती हैं
लगता है तब मुझे..
मोनालीसा में अब भी
छिपी है वही औरत
जो मुस्कारती रहती है
ये तो बहुतो की कहानी कह दी आपने.......
रंजू जी,मोनालिसा को लक्ष्य कर जिन एहसासों को आपने उकेरा है,वो कमाल हैं,एक बेहतरीन कही जा सकने वाली रचना.आपने ख़ुद के अंदर मोनालिसा को पा लिया,अब क्या कहूँ?
आलोक सिंह "साहिल"
रंजू जी,मोनालिसा को लक्ष्य कर जिन एहसासों को आपने उकेरा है,वो कमाल हैं,एक बेहतरीन कही जा सकने वाली रचना.आपने ख़ुद के अंदर मोनालिसा को पा लिया,अब क्या कहूँ?
आलोक सिंह "साहिल"
रंजना जी,
मोनालिसा में मैं को बेहद सुंदर तरीके से कविता में पिरोया है.बेहद सुंदर कविता.
अभिनव झा
मोनालिसा के माध्यम से आपने नारी की पीड़ा-उसके भीतर छुपी दर्द सहने की शक्ती और जीवन जीने की कला को बखूबी तराशा है।--------
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मोनालिसा में अब भी
छिपी है वही औरत
जो मुस्कुराती रहती है
दर्द पा कर भी
अपनों पर, परायों पर
और फिर किसी दूसरी तस्वीर से मिलते ही
खोल देती है अपना मन
उड़ने लगती है हवा में
और कहीं की कहीं पहुंच जाती है
अपने ही किसी कल्पना में----------
--ये पंक्तियाँ मोनालिसा की मुस्कान को परिभाषित करतीं हैं।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
अच्छा लगा तस्वीर का दूसरा पहलू
बहुत सुंदर । मोनालिसा की मुसकुराहट की बडी अच्छी मीमांसा की है आपने ।
सभी मोनालिसा की मुस्कराहट की तरफ़ देखते हैं आपने उसके पीछे छुपे दर्द को भी महसूस किया..बहुत अच्छी लिखी है रंजना जी..!!
bahut khubsurat kavita hai bilkul monalisha jaisi hi .uska dard baya karna bhi kaabiletaarif hai.
मोन(आलीसा)(न),
सच में एक आलीशान मुस्कान लिये,
भले ही दिल में दर्द की खान लिये
कविता को मोनालिसा का रूप कहूँ
या मोनालिसा में कविता का भान लिये
तस्वीर ही अलग है मोनालिसा की
और कविता आपकी, इसकी पहिचान लिये
बहुत सुन्दर रंजना जी.. आपने मोनालिसा
का राज जाना और हमने आपका..
आपकी लेखनी परिपक्वता की ओर बढ़ रही है।
वरना यूं कौन मुस्कराता है
उसके भीचे हुए होंठो में छिपा
यह मुस्कराहट का राज
कौन कहाँ समझ पाता है!!
रंजना जी, कविता बेहद गहरी है...
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत बढ़िया .....बधाई
उसके गुलाबी भींचे होंठो की रंगत
जैसे कोई उदासी की परत तोड़ के
मन के सब भेद दिल में ओढ़ के
बहुत ही गूढ़ और मार्मिक अंदाज़ है आपका ..
मोनालीसा में अब भी
छिपी है वही औरत
जो मुस्कारती रहती है
दर्द पा कर भी
अपनों पर ,परायों पर
फ़िर ...
man ki gahraiyon me sama jane wali samvedna ko kavita me ubharne ke liye sukria.
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