यकीं किस पर करूँ मै आइना भी झूठ कहता है।
दिखाता उल्टे को सीधा व सीधा उल्टा लगता है ॥
दिये हैं जख्म उसने इतने गहरे भर न पाएंगे,
भरोसा उठ गया अब आदमी हैवान दिखता है ।
शिकायत करते हैं तारे जमीं पर आके अब मुझसे,
है मुश्किल देखना इंसां को नंगा नाच करता है ।
वजह है दोस्ती और दुश्मनी की अब तो बस पैसा,
जरूरत पड़ने पर यह दोस्त भी अपने बदलता है ।
है बदले में वही पाता जो इसने था कभी बोया,
इसे जब सह नही पाता अकेले में सुबकता है ।
भले कितनी गुलाटी मार ले चालाक बन इंसां
न हो मरजी खुदा की तब तलक पानी ही भरता है ।
बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,
हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है ।
कवि कुलवंत सिंह
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,
हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है ।
अच्छा है. बधाई
कुलवंत जी बहुत बढ़िया .....बधाई
यकीं किस पर करूँ मै आइना भी झूठ कहता है।
दिखाता उल्टे को सीधा व सीधा उल्टा लगता है ॥
बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,
हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है ।
ये पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगी - सुरिन्दर रत्ती
वजह है दोस्ती और दुश्मनी की अब तो बस पैसा,
जरूरत पड़ने पर यह दोस्त भी अपने बदलता है ।
बहुत खूब कुलवंत जी
कुलवन्त जी
अच्छी गज़ल लिखी है-
बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,
हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है ।
सुन्दर शेर।
अच्छी रचना है कुलवंत जी, बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
है बदले में वही पाता जो इसने था कभी बोया,
इसे जब सह नही पाता अकेले में सुबकता है
बहुत अच्छे कवि जी
behad hi sadharan aor mamoli rachna hai ,na gajal kahi ja sakti hai na kavita,sudhaar ki gunjaish hai.
"है बदले में वही पाता जो इसने था कभी बोया,
इसे जब सह नही पाता अकेले में सुबकता है "
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं !
कुलवंत जी,
आप से बहुत अपेक्षायें हैं। आपकी लेखनी से कईं उम्दा रचनायें निकल चुकी हैं पर इसने मुझे बहुत निराश किया है।
माफ कीजियेगा पर मुझे ये रचना अति साधारण लगी। और ये गज़ल तो कतई नहीं है। और मैं हैरान ये देख कर हूँ कि कैसे हमारे वरिष्ठ कवियों ने इसको सही ठहराया है? "तीखी बात" जी ने बात तीखी कही है पर सही कही है।
धन्यवाद
यकीं किस पर करूँ मै आइना भी झूठ कहता है।
दिखाता उल्टे को सीधा व सीधा उल्टा लगता है ॥
दिये हैं जख्म उसने इतने गहरे भर न पाएंगे,
भरोसा उठ गया अब आदमी हैवान दिखता है ।
बहुत बढ़िया गज़ल कुलवंत जी ! बधाई!
आप सभी मित्रों का हार्दिक दिल से धन्यवाद!
मैने हमेशा एक बात कही है कि आप मेरी गलतियों को बता कर मेरा उपकार ही करेंगे... तीखी बात और तपन शर्मा जी ने कहा है यह गज़ल नही है.. हो सक्ता है मै कहीं गलत हूँ। अगर मेरी गलती बता दी जाए तो मैं आगे से सुधार कर सकूँ और गजल लेखन में परिपक्व हो सकूँ । मैं भी गजल लेखन सीख ही रहा हूँ..पुस्तक से.. और अवश्य हो सकता है कि इसमें गलती / गलतियां हों...
आप का ही कवि कुलवंत
अच्छी गजल लिखी सर जी,
आलोक सिंह "साहिल"
कवि कुलवंत जी ,
यकीं किस पर करूँ मै आइना भी झूठ कहता है।
दिखाता उल्टे को सीधा व सीधा उल्टा लगता है ॥
बहुत सही कहा है , बधाई
^^पूजा अनिल
बहुत बढ़िया,बधाई
वैसे अगर गजल के कायदे और कानून देखे जाए तो गजल है
पर दिल को छू नही पायी बस मुझे तो ये ही कमी लगी
सुमित भारद्वाज
ग़ज़ल का आखरी शेर बहुत अच्छा है -
बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,
हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है ।
आप सभी मित्रों का पुन: धन्यवाद देते हुए...
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