इस माह हम प्रति सोमवार ग़ज़लगो प्रेमचंद सहजवाला की ग़ज़लें प्रकाशित कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अंतिम कड़ी।
ग़ज़ल
वो खुदा से भी न डरता था वो इक जल्लाद था
लोग कहते हैं कि वो हिटलर की इक औलाद था
ईश्वर चौराहे पर कल कर रहा तक़रीर था
मेरी तकलीफों को ले कर जाने क्यों नाशाद था
जो पहाडों की तरफ़ जाता मिला था सैर को
वो नहीं था यार ये तो और कोई फरहाद था
इश्क के बारे में उस को कुछ पता तो था नहीं
शायरों से बोलता बस इक लफ़ज़ इरशाद था
मिलकियत घर में करोड़ों क्यों न रक्खे हुक्मरां
मुफलीसी की मुल्क में करता रहा इमदाद था
प्यार करने की तो उसको छूट पहले ही से थी
कत्ल महबूबा का करने को भी वो आज़ाद था
खेलने में खूब है वो मस्त सुंदर बालिका
चुस्त कपडों पर छिड़ा क्यों उस के वाद विवाद था
खूब किस्से और कहानी लिखने में माहिर है वो
सिर्फ़ लिख पाता नहीं तेरी मेरी रूदाद था
कामयाबी मिल गयी आख़िर उसी दह्कान को
रोज़ मरने के तरीके कर रहा ईजाद था
देवता लाखों करोड़ों देख कर हैरां हूँ मैं
गिन नहीं पाता कभी इन की मगर तादाद था
घर जला सकता था सब के एक ही आवाज़ में
अपने मज़हब का वो इक माना हुआ फौलाद था
भूख से बेहाल हो कर जब मैं बुतखाने गया
पत्थरों के पांव में रक्खा हुआ परसाद था
तक़रीर- बातचीत, बोलना, भाषण देना
नाशाद- नाखुश, दुःखी
फ़रहाद- शीरीं-फ़रहाद की जोड़ी का प्रेमी, फ़र्हाद (जैसे लैला-मजनूँ का मजनूँ)
इरशाद- इर्शाद, आदेश, हिदायत
हुक्मरां- हुक्म चलाने वाला
मुफ़लीसी- गरीबी, निर्धनता
इमदाद- मदद करना, सहायता
रूदाद- रूइदाद, बातें, कथन
दह्कान- किसान
ईजाद- बढ़ोत्तरी, वृद्धि
द्वारा - प्रेमचंद सहजवाला
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रेम साहब बहुत बढ़िया ... सुंदर .. ये पंक्तियाँ
भूख से बेहाल हो कर जब मैं बुतखाने गया
पत्थरों के पांव में रक्खा हुआ परसाद था
सुरिन्दर रत्ती
भूख से बेहाल हो कर जब मैं बुतखाने गया
पत्थरों के पांव में रक्खा हुआ परसाद था
बहुत ही उम्दा!
प्रेमचंद जी,
अंतिम पंक्तियाँ बेहद पसंद आईंः
"भूख से बेहाल हो कर जब मैं बुतखाने गया
पत्थरों के पांव में रक्खा हुआ परसाद था"
एक गुजारिश है, उर्दू के कठिन शब्दों को, जो बोलचाल में कम इस्तेमाल होते हों, उनका अर्थ भी लिख दिया कीजिये। जैसा कि आपने दहकान के लिये किया।
माफी चाहता हूँ पर मुझे निम्न शब्दों के अर्थ समझ नहीं आये। शायद इसी वजह से शे'र का आशय भी स्पष्ट नहीं हो पाया।
फरहाद , इमदाद, रूदाद
धन्यवाद
प्यार करने की तो उसको छूट पहले ही से थी
कत्ल महबूबा का करने को भी वो आज़ाद था
खेलने में खूब है वो मस्त सुंदर बालिका
चुस्त कपडों पर छिड़ा क्यों उस के वाद विवाद था
प्रेमचन्द जी ! बहुत सुन्दर गज़ल है
प्रेमचंद जी ,
बहुत खूब कहा है -
भूख से बेहाल हो कर जब मैं बुतखाने गया
पत्थरों के पांव में रक्खा हुआ परसाद था
कुछ शब्दों के अर्थ जानना चाहती हूँ -तक़रीर,नाशाद , फरहाद ,इमदाद , रुदाद .
धन्यवाद
^^पूजा अनिल
तक़रीर = भाषण, इमदाद = इलाज, रूदाद = कहानी, फरहाद = लैला मजनू की तरह शीरीं फरहाद दो प्रेमी थे. फरहाद ने शीरीं को पाने के लिए कोहे-बेसितून से लेकर शीरीं के महल तक स्वयं एक नहर खोदी थी.
कोहे-बेसितून = एक पहाड़
तपन जी व पूजा अनिल जी,
शब्दार्थ जोड़ दिया गया है। आप सभी का कहना ठीक है, कठिन शब्दों के अर्थ हमें सदैव ही जोड़ देना चाहिए।
तपन जी,
आपने जिस तरह लैला-मजनूँ, हीर-राँझा, रोमियो-जुलिएट आदि की कहानी सुनी है, उसी तरह शीरीं-फ़रहाद की दास्ताँ है। आपने कुली नं॰ १ फिल्म (गोविंदा) का गाना सुना होगा-
क्या मजनूँ, क्या राँझा, क्या फ़रहाद
जाने तमन्ना आज के बाद
लोग करेंगे हमको याद।
शीरीं राजमहल में रहती थी, उसके महल से दूर एक पहाड़ी दी, शीरीं ने फ़रहाद से कहा कि तुम उस पहाड़ी से मेरे महल तक एक नहर बनाओ, कहा जाता है कि फ़रहाद कुदाल और फावड़ा लेकर नहर खोदने निकल पड़ा था और उसने नहर बना भी दी थी। कुल मिलाकर ये सारे जोड़े प्रेम की पराकाष्ठा के लिए मशहूर हैं।
कोहे-बेसितून = एक पहाड़ जो शीरीं के महल से बहुत दूर था.
नाशाद = नाखुश
इमदाद शब्द मदद के लिए मूलतः उपयोग किया जाता है.
शे'र तेरी गजल का मैं एक एक कर पढ़ने लगा
शब्द शब्द सवा सेर था हर शे'र काबिले दाद था
मुफलिसी = गरीबी
भूख से बेहाल हो कर जब मैं बुतखाने गया
पत्थरों के पांव में रक्खा हुआ परसाद था
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल ,बधाई
भूख से बेहाल हो कर जब मैं बुतखाने गया
पत्थरों के पांव में रक्खा हुआ परसाद था
वाह....बहुत बढ़िया रचना!सभी शेर उम्दा और सार्थक हैं!
बहुत ही सशक्त सुंदर ग़ज़ल,बहुत बधाई
किस किस शेर कि दाद दी जाए,यहाँ तो सब के सब मारक हैं.
आलोक सिंह "साहिल"
"प्यार करने की तो उसको छूट पहले ही से थी
कत्ल महबूबा का करने को भी वो आज़ाद था
कामयाबी मिल गयी आख़िर उसी दह्कान को
रोज़ मरने के तरीके कर रहा ईजाद था"
... महानुभाव, क्या कहने हैं ! बहुत बढिया.
इश्क के बारे में उस को कुछ पता तो था नहीं
शायरों से बोलता बस इक लफ़ज़ इरशाद था
घर जला सकता था सब के एक ही आवाज़ में
अपने मज़हब का वो इक माना हुआ फौलाद था
भूख से बेहाल हो कर जब मैं बुतखाने गया
पत्थरों के पांव में रक्खा हुआ परसाद था
बहुत अच्छे शेर हैं। बधाई स्वीकारें...
***राजीव रंजन प्रसाद
इश्क के बारे में उस को कुछ पता तो था नहीं
शायरों से बोलता बस इक लफ़ज़ इरशाद था
बहुत खूब...
कामयाबी मिल गयी आख़िर उसी दह्कान को
रोज़ मरने के तरीके कर रहा ईजाद था
बहुत सुन्दर गज़ल है
कुछ शेर वास्तव मैं बहुत अच्छे हैं बधाई स्वीकार करें...
मैं ये जानना चाहता हूँ की ग़ज़ल मैं ७ से ज्यदा शेर हो सकते हैं क्या ??
प्रिय दिव्य प्रकाश जी,
कुंवर बेचैन जी ने अपनी पुस्तक 'ग़ज़ल का व्याकरण' में लिखा है कि ग़ज़ल में या तो ५ या ७ या ९ या फिर १३ या १७ शेर होने चाहिए. पर यह काफ़ी पुराना अनुशासन है. फिराक गोरखपुरी की पुस्तक गुले नगमा पढ़ कर पता चलता है कि ग़ज़ल में जितने मरजी शेर लिखो पर वे सभी प्रभावशाली होने चाहिए. व्यर्थ की भरमार अच्छी नहीं होती.
सानिया मिर्जा वाला शेर सब से अच्छा है -
खेलने में खूब है वो मस्त सुंदर बालिका
चुस्त कपडों पर छिड़ा क्यों उस के वाद विवाद था
शालू
धन्यवाद सर ...
हिन्दी-ग़ज़ल में आप जिस गति से काम कर रहे हैं, उससे हिन्दी ग़ज़ल को समृद्ध साहित्य मिलने वाला है, यह मुझे दिख रहा है।
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