प्रतियोगिता से पाँचवें स्थान की कविता की रचनाकारा अनुराधा शर्मा बहुत पहले हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता में भाग लेती थीं और टॉप १० में भी प्रकाशित होती थीं। अनुराधा शर्मा के बारे में और जानें।
पुरस्कृत कविता- दिल एक चार दीवारों वाला कमरा
कहीं दीवारें ऐसी देखीं जिनकी उँचाई...
इंसान के अपने कद की हद से कुछ छोटी होतीं हैं
झाँक के देख सकते हैं दुनियाँ का चलना, फिरना..
हर दीवार पे दरवाजा, रोशनदान, खिड़की
होती हैं... आने जाने के लिये....
कहीं ऐसी भी देखीं.... जिनके दिल की दीवारों की हदें
बहुत ऊँची होती हैं....
आसमान से मिलतीं हुई हदें...
कोई खिड़की कोई झरोखा कोई दरवाजा नहीं...
आसमान भी सिर्फ फर्श जितना लम्बा और चौड़ा...
एक बार एक हसरत नाम का परिन्दा...
ऊँची दीवारों वाली हदों में
जाने कहाँ से आके फंस गया.. खुदा की गलती से
बाहर जाने की कोशिश में
दीवारों पर खँरोंचा, पंजों से.
उसको मालूम नहीं था, तकलीफ होती थी..
इन सख्त दीवारों को भी
निशान बन गये.. कभी ना मिटने वाले
कोशिश जारी रही परिंदे की बाहर निकलने की
आसमान दी ओर उड़ते उड़ते..
पार निकल गया हद से बाहर
फिर कभी ना आउँगा ये सोच के..
कई दूसरी चिनी हुई दीवारों के कमरों में
वक्त गुजारा.. जहाँ आके जाना
आसान था.. बहुत, इतना आसान...
के सोचने तक की जरूरत नहीं पड़ती थी...
मगर बेचैनी सी रही, कोई निशान नही बना पाता था.
वो छटपटाहट तिलमिलाना, चीखना.. चिल्लना जोर से, फिर थकना
बैठना .. सो जाना.. फिर से .. कोशिश करना...
वो खरोचना... खुदको टूटने तक लगे रहना...
सब याद आ रहा था बहुत....
जो दीवारें जिनकी हदों की कोई हदें नहीं थीं..
दूर से दिख जातीं थीं.. सबसे अलग.. बिना पुताई की.. ऊँची सी
उड़ान भरी परिंदे ने एक बार फिर...
अपनी मरजी से उन हदों में रहने के लिये....
अब नहीं आऊँगा वापस वहाँ से ये सोच के
परिंदे के जाने के बाद,
खुदा को अपनी गलती का एहसास हुआ
दीवार को भर दिया था.. गीली मिट्टी और कीचड़ से.. ऊपर तलक
अब कोई परिंदा ... कोई जजबात... उड़ता फिरता
गलती से भी दखिल नहीं हो सकता..
दीवार के अन्दर..........
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४॰५, ७॰१५, ५॰५५, ४॰७
औसत अंक- ५॰४७५
स्थान- पंद्रहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ४॰५, ४, ५॰४७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰९९३७५
स्थान- पाँचवाँ
पुरस्कार- डॉ॰ रमा द्विवेदी की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'दे दो आकाश' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
अनुराधा जी बहुत अच्छी लगी आपकी कविता |बहुत बहुत बधाई .....सीमा सचदेव
वाह जी वाह! क्या बात है?बहुत खूब
आलोक सिंह "साहिल"
बधाई |
लेकिन अच्छे विषय को और अच्छी तरह से पेश किया जाता तो और मजा आता |
अवनीश
अनुराधा जी,
अच्छा लिखा है, सुधार की गुंजाइश तो हमेशा रहती है तो बस कोशिश करते रहियेगा और लिखते रहियेगा..
शुभकामनायें..
अनुराधा जी ,
इस कविता में शब्द चयन अच्छा है , परन्तु ना जाने हम क्या खोज रहे हैं जो समझ नहीं आया....!!! शायद आप किसी की कहानी को कविता के रूप में कहना चाहती हैं ...!!! फ़िर भी इतना जरूर है कि भावों में बहुत दर्द छिपा हुआ है ,कोई वेदना, कोई टीस ,जो कविता को अच्छी बना रही है .
बधाई
^^पूजा अनिल
डा. रमा द्विवेदीsaid...
अनुराधा जी,
पांचवां स्थान पाने के लिए बधाई व शुभकामनाएं...
रचना को थोड़ा और तराशतीं तब रचना और भी बेहतरीन बन जाती...पर यह तो रचनाकार की मर्ज़ी के ऊपर निर्भर करता कि उसे क्या पसन्द है...आप लिखती रहें....
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