अप्रैल २००८ की यूनिकवि प्रतियोगिता में पहली बार ऐसा हुआ कि पहले और दूसरे स्थान पर ग़ज़लों का कब्ज़ा रहा। हिन्द-युग्म के एक प्रतिभागी शाहिद अजनबी को शिकायत है कि यहाँ ग़ज़लों को दरकिनार किया जाता है जबकि हिन्द-युग्म अच्छी ग़ज़लों को सदैव ही स्थान देता है। इस बार भी शाहिद जी की शिकायत दूर होगी। दूसरे स्थान की ग़ज़ल के रचनाकार कई बार प्रतियोगिता के शीर्ष १० में जग़ह बना चुके उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के साहित्यिक वंशज प्रेमचंद सहजवाला हैं, जिन्होंने आने वाले तीन सोमवारों को भी अपनी ग़ज़ल प्रकाशित करने का वचन दिया है। इनका पूरा परिचय।
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
सहर तक तो हमकदम हो कर सभी चलते रहे
ख्वाब तेरी और मेरी आँखों में पलते रहे।
एक परचम ताफ़लक लहरा गया जब शान से
दीप खुशियों के करोड़ों रात भर जलते रहे।
जब मसीहा को मिली सूली बहाए अश्क तब
'सच नहीं यह बात' कह कर ख़ुद को ख़ुद छलते रहे।
मज़हबों में भी न जाने बात क्या है दोस्तो
पत्थरों की छांव में सब फूलते-फलते रहे ।
ये न सोचो राह कितनी दूर तक आए हैं हम
रोज़ सूरज सुबह आकर शाम को ढलते रहे।
शहर सा ये शोर कैसा आ गया है गांव में
खेत और खलिहान उनकी आंख में खलते रहे।
कैस अब लैला के आगे इस लिए है शर्मसार
चाँद तारे तोड़ने के फैसले टलते रहे ।
देवता मुझ को बचाने जब तलक आए कोई
कारवां लुटने लगा और हाथ सब मलते रहे ।
खून था या ये पसीना कुछ पता चलता नहीं
यार इंसानों के पैकर किस कदर गलते रहे।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ७॰१, ६, ६॰७
औसत अंक- ६॰४५
स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰५, ५॰५, ४, ६॰४५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰३६२५
स्थान- दूसरा
पुरस्कार- डॉ॰ रमा द्विवेदी की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'दे दो आकाश' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
हर शेर लाजवाब है,क्सि एक की टॅरिफ नही की जा सकती,बहुत बधाई.
शहर सा ये शोर कैसा आ गया है गांव में
खेत और खलिहान उनकी आंख में खलते रहे।
देवता मुझ को बचाने जब तलक आए कोई
कारवां लुटने लगा और हाथ सब मलते रहे ।
पूरी गजल ही बहुत सुन्दर है।
पर ये दो शे'र दिल को छू गये।
सुमित भारद्वाज
प्रेमचंद जी,
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है , बहुत बहुत बधाई
^^पूजा अनिल
बहुत खूब | सभी शेयर बहुत पसंद आए |बहुत बहुत बधाई ......सीमा सचदेव
Each and every line is beautiful. All the best and keep posting.
सहर तक तो हमकदम हो कर सभी चलते रहे
ख्वाब तेरी और मेरी आँखों में पलते रहे।
nice one. cheers, dinesh
प्रेम अंकल,
आप ग़ज़ल में तो कमाल कर रहे हैं। सभी शे'रों का वज़न आप बराबर रखने में सफल हो पाये तो सफल ग़ज़लगो बन जायेंगे।
>>शे'रों का वज़न आप बराबर रखने में सफल हो पाये तो सफल ग़ज़लगो बन जायेंगे।<<<
शैलेश जी, आप क्या कहना चाहते हैं कि ग़ज़ल बे-बहर है या बहर मे है ....
यहां तक मै जानता हूं कि बेहेरे-रमल मे बिल्कुल दरुसत ग़ज़ल है.हर शेर वज़न मे बराबर है.फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन.शायर को मुबारिकबाद...ग़ज़ल अच्छी है.
सतपाल जी,
वज़न से मेरा आशय शे'रों की चमत्कारिकता और भावों की गहराई से था।
प्रेमचंद अंकल आपने बहुत ही अच्छी गज़ल लिखी है ...हर पंक्ती कुछ ख़ास कहती है ...कुछ गहरा .........
ये न सोचो राह कितनी दूर तक आए हैं हम
रोज़ सूरज सुबह आकर शाम को ढलते रहे।
देवता मुझ को बचाने जब तलक आए कोई
कारवां लुटने लगा और हाथ सब मलते रहे ।
ये पंक्तियाँ बहुत प्यारी हैं ......
प्रेम
डा. रमा द्विवेदी....
अच्छी ग़ज़ल पुरस्कृत होने के लिए बधाई एवं शु्भकामनाएँ....यह शेर बहुत अच्छा लगा... आपकी लेखनी से और भी अपेक्षाएँ हैं....
मज़हबों में भी न जाने बात क्या है दोस्तो
पत्थरों की छांव में सब फूलते-फलते रहे ।
सर जी,
"मज़हबों में भी न जाने बात क्या है दोस्तो
पत्थरों की छांव में सब फूलते-फलते रहे ।"
बहुत बढिया , बधाई !
We value content like this one! Continue posting! Fascia & Soffit Contractor Victoria, BC
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)