हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता के कुछ प्रतिभागी यह शिकायत करते हैं कि प्रतियोगिता की ग़ज़लों को उचित सम्मान नहीं मिलता। जबकि प्रत्येक माह की शीर्ष २० कविताओं में ४ से ५ ग़ज़लें सम्मिलित होती हैं। इस बार भी प्रतियोगिता की पाँचवीं कविता ग़ज़लगो सतपाल ख़याल की ग़ज़ल है। आशा है ऐसे प्रतिभागियों की शिकायतें दूर होंगी।
३४ वर्षीय पेशे से इंजीनियर सतपाल ख़्याल ग़ज़ल-लेखन को अपना जीवन मानते हैं। हिमाचल प्रदेश के बद्दी शहर में रहने वाले सतपाल की ग़ज़लें पत्र-पत्रिकाओं में प्रायः ही स्थान पाती रहती हैं। अपना ग़ज़ल-संग्रह प्रकाशित करने/करवाने भी पर विचार कर रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
दौड़ती, हांफ़ती, सोचती ज़िंदगी
हर तरफ़, हर ज़गह, हर गली ज़िंदगी।
हर तरफ़ शोर है, धूल है, धूप है
धूल और धूप में खांसती ज़िंदगी।
लब हिलें कुछ कहें कुछ सुने तो कोई
बहरे लोगों में गूंगी हुई ज़िंदगी।
दिल उसारे महल सर पे छत भी नहीं
दिल से अब पेट पर आ गई ज़िंदगी।
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३॰५, ६॰४, ६, ६॰४
औसत अंक- ५॰५७५
स्थान- तेरहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ६, ७, ५॰५७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰१४३७५
स्थान- पाँचवाँ
पुरस्कार- ज्योतिषाचार्य उपेन्द्र दत्त शर्मा की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'एक लेखनी के सात रंग' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :
लब हिलें कुछ कहें कुछ सुने तो कोई
बहरे लोगों में गूंगी हुई ज़िंदगी।
सतपाल जी क्या खूब लिखी आपने,मजा आ गया. बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
सतपाल जी,
बेहद शशक्त कथ्य है हर शेर आपकी कलम और सोच के पैनेपन की ओर इंगिर कर रही है, बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
एक संक्षिप्त और मीठी रचना |
बधाई | शीर्षक भी होना चाहिए |
-- अवनीश तिवारी
बहुत खूब ज़िंदगी के बरे में कहा,बधाई
दौड़ती, हांफ़ती, सोचती ज़िंदगी
हर तरफ़, हर ज़गह, हर गली ज़िंदगी।
हर तरफ़ शोर है, धूल है, धूप है
धूल और धूप में खांसती ज़िंदगी।
लब हिलें कुछ कहें कुछ सुने तो कोई
बहरे लोगों में गूंगी हुई ज़िंदगी।
दिल उसारे महल सर पे छत भी नहीं
दिल से अब पेट पर आ गई ज़िंदगी।
आपके भाव बहुत अच्छे है पर
मुझे खेद है कि तीसरे और चोथे शे'र मे काफिया बिगड गया है
हुई की जगह हुयी और गई की जगह गयी होना चाहिये था
सुमित भारद्वाज
लब हिलें कुछ कहें कुछ सुने तो कोई
बहरे लोगों में गूंगी हुई ज़िंदगी।
बहुत अच्छा लगा
सतपाल जी,
जिन्दगी का सही खाका खींचा है आपने... एक शेर और होता तो गजल पूरी हो जाती... पांच शेरों की गजल मानी जाती है...चलिये में ही लिख देता हूं
अपने लिये तो इस जमाने में जीते हैं सभी
काम किसी दूसरे के आये, है वही जिन्दगी
लिखते रहिये
सतपाल जी बहुत अच्छे ख़्याल हैं आपके, बहुत बहुत बधाई
^^पूजा अनिल
सतपाल जी बहुत अच्छी लगी यह ..
लब हिलें कुछ कहें कुछ सुने तो कोई
बहरे लोगों में गूंगी हुई ज़िंदगी।
बहुत अच्छा लगा .बहुत कम में बहुत ज्यादा कह गयी आपकी गजल
हर तरफ़ शोर है, धूल है, धूप है
धूल और धूप में खांसती ज़िंदगी।
वाह....बहुत अच्छी ग़ज़ल है. हर शेर उम्दा और जिंदगी के फलसफे को बयान करता हुआ है!
मुझे खेद है कि तीसरे और चोथे शे'र मे काफिया बिगड गया है
हुई की जगह हुयी और गई की जगह गयी होना चाहिये था
सुमित भारद्वाज
jii sumit jii!! you can say this but it is easy to write"गई" than"गयी "
anyway u r literati pls join us on aajkeeghazal.blogspot.com
regards
if it is possible i request all my readers to send their orkut profile on satpalg.bhatia@gmail.com
or their contact ids to me.
I heartly thankfull to hind yugam and all the persons behind it to get me published here.
pls join me on my blog
aajkeeghazal.blogspot.com
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satpalg.bhatia@gmail.com
thanks and regards
सतपाल जी बहुत अच्छे भाव..
गज़ल में कम से कम कितने शेर होने चाहिए.. ऐसा कुछ नियम है क्या?
bahut khoob mazza aa gaya , bahut acchi bahut gehriii bat keh di apne
oo
Kulwant jii
as far i know there should be min 3she'rs max..no limits
मुझे खेद है कि तीसरे और चोथे शे'र मे काफिया बिगड गया है
हुई की जगह हुयी और गई की जगह गयी होना चाहिये था- सुमित भारद्वाज
gazal achchi hai aur mujhe sirf ye hi kahna hai ki saare misre ham qaafiya hain aur kaise sumit bhardwaj ji ko qafiya bigda nazar aaya
सतपाल जी,
जानकर खुसी हुई कि आप भी हिमाचल से संबन्ध रखते हैं... मैं भी हिमाचल पालमपुर से हूं.. लिखते रहें... हिन्द युग्म के अलावा मेरा अपना एक ब्लोग है....
http://dilkadarpan.blogspot.com
कभी पधारें...
मैने किसी से लिखना सीखा नहीं बस मन के भावों को कागज पर उतार देता हूं
::मेरी चिट्ठी = feedback !!:::....
Aadaab Satpaal ji !!
लोगों ने इतना कह दिया ....फिर भी मेरी समझ से....
दौड़ती, हांफ़ती, सोचती ज़िंदगी
हर तरफ़, हर ज़गह, हर गली ज़िंदगी।
भाव बहुत प्यारे हैं पर....अगर पहला मिसरा का काफिया न देखूं तो..आखरी मिसरे में'हर गली' की जरुरत तो नहीं....मतलब अगर आप कह चुकें हैं...'हर तरफ़, हर ज़गह, जिन्दगी ' तो हर गली की जरुरत नहीं है...पर काफिया मिलाने के लिए इसका प्रयोग किया...
सो मुझे ये खटक रहा है....
हर तरफ़ शोर है, धूल है, धूप है
धूल और धूप में खांसती ज़िंदगी
पहले मिसरे में में धुल धूप लिख चुके थे तो दुसरे में इसकी पुनरावृत्ति न होती तो अच्छा था...ये काव्य की खूबसूरती कम करती है...
ये शेर मुझे अच्छा लगा... :)
पर धूल और धूप का जिक्र हुआ आखरी मिसरे में ,शोर छूट गया..धूल और धूप से खांसी ... शोर का effect नहीं पता लगा...
मेरा इशारा आप समझ गएँ होने क्या समस्या है...अगर पहले मिसरे में कोई बात उठी तो दूसरे में खत्म भी हो...
लब हिलें कुछ कहें कुछ सुने तो कोई
बहरे लोगों में गूंगी हुई ज़िंदगी।
बात अच्छी पर काफिया हिल गया है...
चौथे शेर में भी यही हुआ..काफिया ...
वैसे मेरे साथ भी अक्सर ये हो जाता है..हा हा हा :D :D लिखते रहिये...
"ऐसा मुझे लगता है.."
Love..Masto...
>>लोगों ने इतना कह दिया ....फिर भी मेरी समझ से....
दौड़ती, हांफ़ती, सोचती ज़िंदगी
हर तरफ़, हर ज़गह, हर गली ज़िंदगी।
भाव बहुत प्यारे हैं पर....अगर पहला मिसरा का<<..
adaab Gaurav jii !
apkaa kaha sar aankhoN par , I request Mr. Shailesh to appoint Sh gaurav jii as judge for ghazal selection and i request him too for my blog also we need such literati for our blogs but as i have experienced these literatis usually refuse to teach. lets see what Sh gaurav said..
वाह क्या खूब कही.
लब हिले कुछ कहें कुछ सुने तो कोई, बहरे लोगों में गूंगी हुई जिंदगी.
ग़ज़ल की अधिक समझ नही रखती मैं फ़िर भी सतपाल जी की ये पंक्तियाँ झकझोर कर रख देती हैं ,बहुत सुंदर.
आपने इतनी इज्ज़त दी उसका ख़ास शुक्रिया पर मैं काव्य और साहित्य का विद्यार्थी हूँ अभी तो समझना शुरू किया है...मैं सही गलत का निर्णय लेने में akcham हूँ...
जी एक निवेदन है मेरे नाम के साथ sh अथवा ji न लगाये असहज महसूस होता है...और मैं आप सब से उम्र में भी बहुत छोटा हूँ...
और सतपाल जी आप तो आप जानतें हैं मैं इंजीनियरिंग(3rd yr) कर रहा हूँ सो इतने बड़े मंच के liye नियमित रूप से वक़्त निकालना बड़ा मुश्किल है...हाँ कोशिश करूँगा वक़्त निकाल के कुछ रचनाओं पर अपनी समझ अनुसार feedback दे सकूं..
शुभकामनाओं सहित
Love..मस्तो...
कवि कुलवंत जी ने पूछा कि ग़ज़ल में कितने शेर होने चाहिये--ऐसा कोई नियम है क्या??
[वह भी इस बात को जानते होंगे तभी सवाल किया है,यह तय है ]
--जहाँ तक मेरी जानकारी है जो मैंने उर्दू शायरों से जाना है--किसी भी ग़ज़ल में कम से कम पाँच शेर होते हैं--यह पहला नियम है--मक्ता और मतला जरुर होते हैं उसके अलावा तीन शेर कम से कम होने चाहिये--सो कुल पाँच शेर लाजिम हैं किसी भी ग़ज़ल में उसे ग़ज़ल कहलाने के लिए--अधिक से अधिक की कोई सीमा नहीं !
जैसे किसी भी रचना को गीत कहने के लिए तीन अंतरे होने चाहियें--ऐसे ही दोहों ,त्रिवेणी आदि के लिए भी नियम हैं...
हो सकता है मैं भी ग़लत हूँ!!!!!!!!!
सुबीर जी कहाँ हैं आप ?????--आप के पाठ मैंने खंगाले थे इसी बात को पक्की करने के लिए-मगर उन में कहीं इस नियम का ज़िक्र नहीं है--
कृपया इस बात की जानकारी देने की कृपा करें.
धन्यवाद.
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