बडा सा सभागार
तम्बाकू के खिलाफ प्रचार
उत्साहित भीड अपार
मंच तैयार
कवियो की कतार
हे भगवान !!! पहला नम्बर हमार...
शताब्दी की धुक धुक ..
दिल से माइक तक
ऐसा ही होता है बरखुर्दार...
संचालक महोदय का सम्बोधन
और मेरा नाम...
सब पुकारे, वाहे गुरु इशां अल्लाह राम..
देह में चल पडा ऑटोमैटिक वाइब्रेटर
माइक पकडकर, बोला सम्भलकर
मगर ये क्या !!!!
आउट गोइंग बन्द
होठ तो चले पर, फूटा नहीं एक भी छंद
शुक्र है....
शुक्र है ... फ्रीक्वेंसी ना मिलने पर
माइक श्री शंख नाद में चिल्लाया
मेरे लिये तो साक्षात कृष्ण बन गया
और मेरी झिझक का अश्वत्थामा कब मर गया
किसी को समझ नहीं आया
मैकेनिक ने माइक सम्भाला...
मैकेनिक ने माइक सम्भाला...और मैने खुद को
फिर से बटोरा हौसला, साहस और सुध बुध को
तभी अचानक!!!
भीड़ में न जाने क्या तलाशती नजरों ने
डिस्क ब्रेक लगाया !!!!
जब एक जत्थे को अपनी कविता पर
ताली बजाते पाया
बीच बीच मे वाह वाह का स्वर उभर रहा था
मुझे तो शर्म आती है बताते हुए
एक्चुली एक दो लोग तो उडन चुम्मा भी कर रहा था
अब तो मेरा उत्साह शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा था
बडी जद्दोजहद के बाद खुद पर भरोसा जमा था
मैने जोर लगाकर बोला...
मैने जोर लगाकर बोला...
आप जैसे श्रोता हमारे लिये भगवान स्वरूप होते हैं
दूर दूर से सम्मेलनो में आते है,बडे ही जागरूक होते हैं
वीडिओ ग्राफर को इशारा कर,
अपने चहेते जत्थे पर फोकस डलवाया
और मंच पर लगी कवरेज स्क्रीन को ज़ूम करवाया
लोग हंस रहे थे... मै मुस्कुरा रहा था
‘राघव’ तू तो छा गया बस यही ख्याल आ रहा था
अचानक पूरी की पूरी दर्शक दीर्घा
जोर से खिल खिलाकर हँसी
बदले में मेरे मुहूँ से धन्यवाद निकला
और आखें जूम स्क्रीन में जा धंसी
देख कर वही अपना प्यारा जत्था..
देख कर वही अपना प्यारा जत्था...
रेडियेटर सा गर्म हो गया अपना मत्था
हाँ जी !!!
रेडियेटर सा गर्म हो गया अपना मत्था
तम्बाकू में चूना.......
तम्बाकू में चूना..................
हथेली पर पीट पीट कर मिलाया जा रहा था
मोटा मोटा गलफडो में ढूस
थोथा थोथा उडाया जा रहा था
और उसी से मिल रहा था जहरीला स्वाद
जिसकी, सुरती बनाने वाले को
वाह वाह करके दे रहे थे दाद
न कोई तालियाँ थीं ना कोई फ्लाइंग किस
मेरे दिल पर साँप सा लोट गया
एक ही पल में सब हो गया फिनिश
और अब मेरी बैटरी डाउन हो चुकी थी..
आखें की पूर्णिमा अमावस में खो चुकी थीं
संचालक महोदय ने दूसरा नाम पुकारा
यह था पहला एक्सपीरिएंस हमारा...
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
kya khoob kahi BHUPENDAR JI , maja aa gaya aapka pahla anubhav jaankar:):):)......seema sachdev
राघव जी,
अपनी तरह के हिन्द युग्म पर आप अकेले ही कवि है। कमाल का विवरण और उससे बेहतर शब्द चयन। यद्यपि कुछ खटकने वाले वाक्यांश जैसे "एक्चुली एक दो लोग तो उडन चुम्मा भी कर रहा था" भी हैं तो पढने के प्रवाह में खटकते हैं। शेष अच्छी रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
राघव जी, व्यंग्य तो सभी लिख सकते हैं। पर उसमें हास्य भरना बहुत कठिन है। कम से कम मुझे तो बहुत दिक्कत होती है। युग्म पर हास्य आप ही से आता है। ऐसे ही लिखते रहिये।
बहुत अच्छे राघव जी , आपकी कविता पढ़ते -पढ़ते आंखों के सामने उस दृश्य का सजीव चित्रण होता जा रहा था , हास्य से परिपूर्ण कविता लिखने के लिए बधाई , ऐसी ही हास्य पूर्ण कविताएँ लिखते रहिये , आज के तनाव भरे दौर में हास्य की ज़रूरत कुछ ज़्यादा ही है, शुभकामनाएँ
^^पूजा अनिल
यह आज की एक कड़वी सच्चाई है जो आपने हंसते हंसाते बता दी-अब कवि के दिल पर क्यागुजरी वह भी जान लिया--कथ्य के पीछे यही अर्थ है की आज श्रोता का स्वाद बदल रहा है.
इस बात पर पहले भी अपने विचार रख चुकी हूँ-और नहीं कहना-
बस आप तो लिखते रहिये -हम है न सुनने और पढ़ कर दाद देने के लिए--
मंच पर कही जाने वाली रचना है |
सुंदर
अवनीश
राघव जी आपकी रचना अपना ही एक रंग लिए हुए होती है ..बहुत अच्छा लगता है इनको पढ़ना
बधाई !!
राघव भाई जी,कमाल लिखते हैं आप,हरबार की तरह ही शानदार
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत अच्छा ,आपके साथ कविताओं के सारे एक्स्पेरिएंस अच्छे ही रहे हैं
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)