लबों पे ये हल्की सी लाली जो छायी ।
हमारी है लगता तुम्हे याद आयी ॥
खुदा ने नवाजा करम से है हमको,
हमारी इबादत है उसको तो भायी ।
हथेली पे सच रख मै चलता हूँ लेकर,
न भाती जहां को ये सच से सगाई ।
धरा है पटी पापियों के कदम से,
कहां है खुदा जिसने दुनिया बनाई ।
बशर हर यहां बोल मीठा ही चाहे,
भले चाशनी में हो लिपटी बुराई ।
हमें कह के अपना न तुम यूं सताओ
चले जाते तुम हमको आती रुलाई ।
गिरे शाख से फूल जब कोई टूटे,
जुड़े कैसे कुलवंत जग हो हसाई ।
कवि कुलवंत सिंह
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
आदरणीय कुलवंत जी ,
जिस संजीदगी और सादगी के साथ आपने अपनी ग़ज़ल मे शब्दों को पिरोया है वह काबिले तारीफ़ है ! आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा मे !
कवि दीपेंद्र
इस बार ग़ज़ल अच्छी बनायी है |
पसंद आयी |
अब आप गज़लाकार भी हो ऐसा मुझे लगाने लगा है |
-- अवनीश तिवारी
bahut khub bahdai,sundar gazal
वाह, कुलवंत जी
बहुत ही सुन्दर गजल बनी है..
बधाई...
धरा है पटी पापियों के कदम से,
कहां है खुदा जिसने दुनिया बनाई ।
बहुत खूब कुलवंत सिंह जी!
धरा है पटी पापियों के कदम से,
कहां है खुदा जिसने दुनिया बनाई ।
बहुत ही सुंदर गजल लिखी है आपने कवि जी ..हर शेर दिल को छू लेने वाला है !!
कवि जी!
अच्छी गज़ल है। कुछ शेर और भी बढिया हो सकते थे। कहा जाता है कि वही शेर दिल को छूता है, जिसकी दूसरी पंक्ति "punch line" जैसी हो। मुझे आपके मतले ,छठे और अंतिम शेर में इस punch line की कमी लगी । बाकी शेर अच्छे हैं।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद..
कुलवंत जी आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी |बधाई
कवि कुलवंत जी , अच्छी ग़ज़ल लिखी है , शुभकामनाएँ
^^ पूजा अनिल
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