अपने ही घर में हो जाते हैं बेगाने
जब नई पीढी उग आती है कुकुरमुत्ते की तरह
अपने ही घर में पाते हैं खुद को बेगाना
जब कुकरमुत्ते करते जाते हैं अतिक्रमण
खुद को सिमट जाना पडता है एक कोने में
कुकरमुत्ते भूल जाते हैं अहंकार में
कल को उगेगी एक और पीढ़ी
ऒर
सिमटना,सहेजना पडेगा उन्हें भी
अपने वज़ूद को घर के किसी कोने में
अहसास सालेंगें,भावनायें कुलबुलायेंगीं
अपराध बोध से आहत
तब क्या सहज रह पाऒगे
कुकरमुत्ता बनने से पहले
परख लेना
एक नज़र भविष्य पर डाल लेना
कहीं इतिहास खुद को दोहरायें ना ये विचार
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छा माध्यम का चुनाव किया है |
संदेश अच्छा है | पर , कुछ जयादा सरल और सहज लगा |
-- अवनीश तिवारी
अपने वज़ूद को घर के किसी कोने में
अहसास सालेंगें,भावनायें कुलबुलायेंगीं
अपराध बोध से आहत
तब क्या सहज रह पाऒगे
कुकरमुत्ता बनने से पहले
परख लेना
एक नज़र भविष्य पर डाल लेना
कहीं इतिहास खुद को दोहरायें ना ये विचार
posted by anuradha srivastav at 2:19 PM
सही चित्र है आज के घरों का ,बहुत खूब
अनुराधा जी,
बहुत सही लिखा है आपने आज की स्थिती ऐसी ही है.. समयानुकूल रचना है..
बिम्ब भी नया लिया है..
बहुत बहुत बधाई..
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा ....कविता अच्छी है ....बहुत कुछ कह दिया आपने संकेतों मे.....लिखती रहिये ...
Navinbhai, i tried couple of time to send you message par aapne to stop kar rakhe hai aur bolte ho bhul gaye [:)]....aapko jab Indian Politics me fir se dekha tab bhi try kiya tha msg karne ka par nahi gaya......Hope this message goes yaar.........Aur ek baar to aapke Blog pe comment likha tha taki aap mera msg read kar sako.......aur batao kya chal raha hai aur kaha ho aap? China ya back to india.
[As this msg not gone, i m trying to send as comment on your blog, If you get it pl reply me navinbhai!! Have nice time brother]
-Harsh Patel
अनुराधाजी बात सही है
पर ऐसा तो नहीं हम भी बन गये थे
कुकुरमुत्ते पीछली पीढ़ि के प्रति
अपनी नजर में न सही
पीछली पीढ़ि की नजर में
अपने वज़ूद को घर के किसी कोने में
अहसास सालेंगें,भावनायें कुलबुलायेंगीं
अपराध बोध से आहत
तब क्या सहज रह पाऒगे
कुकरमुत्ता बनने से पहले
परख लेना
एक नज़र भविष्य पर डाल लेना
कहीं इतिहास खुद को दोहरायें ना ये विचार
सरल लफ्जों में बहुत ही गहरे भाव हैं इस रचना के अनुराधा जी ..विचार के योग्य है यह भाव ..अच्छी लगी आपकी रचना
शुभ कामनाओं के साथ
रंजू
अनुराधा जी!
कुकुरमुत्ते का बिंब आपकी सोच की गहराई को दर्शाता है। अंतिम पंक्तियों में आपने बहुत हीं यथार्थपरक प्रश्न उठाये हैं। और यह कहने में कोई दो मत नहीं है कि आप अपनी बात सामने रखने में सफल हुई हैं.........।
हाँ,एक-दो कमियाँ मुझे लगीं, जो या तो शिल्प की हैं या फिर सही शब्द-चयन की।
मसलन
"अपने ही घर में हो जाते हैं बेगाने"
एवं "अपने ही घर में पाते हैं खुद को बेगाना" जैसी पंक्तियाँ दो होकर भी एक हीं लगती हैं। लगता है जैसे आपके पास शब्दों की कमी थी......इससे बचा जाता तो अच्छा होता।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
ऐसे ही चलती जाती है जीवन गाडी
अनुराधा जी , संदेश के साथ चेतावनी भी छिपी है इस कविता में , बहुत ही सही प्रतिबिम्ब चुना है आपने अपने संदेश के लिए
^^पूजा अनिल
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