यूनिकवि प्रतियोगिता के फरवरी अंक की २८ कविताएँ अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। २९वें पायदान पर युवा कवयित्री अंजु गर्ग की कविता है 'उधारी ज़िंदगी'।
कविता- उधारी ज़िंदगी
क्या कभी वक्त से ज्यादा कोई कली खिली है?
या किसी को दूसरे की ज़िंदगी उधार मिली है.
आपका जवाब होगा नहीं,
पर सच में ऐसा हुआ है कहीं.
एक सज्जन मेरे पड़ोस में रहा करते थे
उनकी कम आयु के कारण आँसू बहा करते थे
कुछ ही दिनों के थे वह मेहमान
अधूरे रह गए थे उनके अरमान
एक दिन, उनकी तबियत हो गई ज्यादा ख़राब,
मानो सांसों ने दे दिया हो जवाब
तब एक अस्पताल में कराया भर्ती
असर दुआएं भी हैं करती
उनके साथ ही एक मरीज़ और आया
साथ वाले बिस्तर पर उन्होंने उसे पाया
देखने से न लगता था वो बीमार
बस था थोड़ा सा उसे बुखार
दोनों के शरीरों की हुई जांच
साथ गुजारे उन्होंने दिन पाँच
अगले दिन, उन दोनों की रिपोर्ट आई,
सज्जन पुरूष के चेहरे पर खुशी लौट आई,
क्योंकि जब डॉक्टर ने रिपोर्ट दिखाई
उनको कोई बीमारी नहीं बताई
इस खुशी से उनकी हालत में हुआ सुधार
मानों मिली हो कुछ दिनों की ज़िंदगी उधार
उनके लिए था एक करिश्मा
पर उस मरीज़ को पहुँचा सदमा
डॉक्टर ने कुछ ही ज़िंदगी शेष बताई
तब उसने छोड़ दी बहुत सी बुराई
वो पहले था एक शैतान,
पर बन गया अब सच्चा इंसान
अचानक एक दिन,
ना जाने क्या चाहता था खुदा
सज्जन पुरूष कर गए सबको अलविदा
तब डॉक्टरों ने इसका पता लगाया
और दोनों की रिपोर्ट को ग़लत बताया
हुआ यह था दरअसल
उनकी रिपोर्ट गई थी आपस में बदल
इस रिपोर्ट की अदला-बदली में,
कम से कम उन सज्जन ने
खुशी से बिताये अपने अंतिम पल,
और उस मरीज़ का जीवन भी गया बदल
अनमोल है ज़िंदगी,
अपनाकर इसको जीवन अपना बनाओ सफल
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
अंजू जी
बहुत अच्छा लिखा है.
अनमोल है ज़िंदगी,
अपनाकर इसको जीवन अपना बनाओ सफल
सस्नेह
anju ji कविता के माध्यम से आपने एक कहानी कह डाली ,अच्छी है
कहानी है जिसे आपने कविता के रूप मे प्रस्तुत किया है |
स्वागत है युग्म पर | मंच पर लोगों को सुनाया जा सकता है |
अवनीश तिवारी
ये कहानी पुरानी है। कईं बार जब कहा जाता है कि ज़िन्दगी को हँस कर जियो तो ये कहानी सुना दी जाती है।
आपके सुनाने का अंदाज़ थोड़ा अलग था। कविता में आपने तुकबंदी में मेहनत करी है, जो दिख रही है। ये मंच पर सुनाई जा सकती है। आपके विचार अच्छे हैं परन्तु थोड़ा कविता की दृष्टि से मेहनत कीजिये तो सफल होंगी।
अंजु जी,
स्वागत है हिन्द-युग्म पर, लिखते रहें.. थोड़ा और श्रम समर्पण माँग रही है आपकी लेखनी..
शुभकामनायें..
बहुत अच्छे अंजू जी,अच्छी प्रस्तुति है,आगे और अधिक दिल से प्रयास कीजिए ,बधाई
आलोक सिंघ "साहील"
बहुत अच्छे अंजू जी,अच्छी प्रस्तुति है,आगे और अधिक दिल से प्रयास कीजिए ,बधाई
आलोक सिंघ "साहील"
डा. रमा द्विवेदी said....
अस्पताल की लापरवाही का बहुत यथार्थ चित्रण किया है आपने.....भविष्य में और अच्छा लिखें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ बधाई...
अंजु जी ,
बहुत सुंदर कविता !
शुभकामना सहित,
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