संयत देह के भीतर कैसी धधक रही है ज्वाला
आँच नियन्त्रण से बाहर हो कर ना दे मुंह काला
मूरत देखी खजुराहो में आसक्ति की माया
कत्थक हो या भरतनाट्यम वही भाव तो छाया
अनुभूति हो अभिव्यक्त तो जीवन मीठी बानी
दमन किये दिल रहा भटकता प्यासा मांगे पानी
तपती आंच में रहा उबलता फफक उठा तब छाला
संयत देह के भीतर कैसी धधक रही है ज्वाला
प्रीत बिना बेचैन रहा दिल दौड़ा था दिन रात
ऋषि मुनि के संयम को यह पशु दे गया मात
मिलने को लैला से मजनू मारा मारा फिरता
सोये लेकर नशा वासना अंधकूप में गीरता
सपने में बन सांप डराये किस कुतिया को पाला
संयत देह के भीतर कैसी धधक रही है ज्वाला
कुरेद कर भीतर से कोई व्यर्थ अड़ाये टांग
होती नादानो सी हरकत़ खाली जैसे भांग
प्रेम का स्वांग रचा कर लेता कामदेव प्रतिशोध
जोश खो गया होंश ना रहा कहां ज्ञान का बोध
दबी भावना पर शोभित था शर्म हया का ताला
संयत देह के भीतर कैसी धधक रही है ज्वाला
- हरिहर झा
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
Bahut hi acchi kavita hai Harihar Ji
Dhadhakti hui Jwala ki aanch kavita se saaf aa rahi hai...aapki kosis vyarth nahi hai...shayad ye jwala bhi kisi ek hi nahi hai...
Anyway...keep writing
Have A Nice Day...
संयत देह के भीतर कैसी धधक रही है ज्वाला
आँच नियन्त्रण से बाहर हो कर ना दे मुंह काला
यह वास्तव मी चिंता का विषय है , यह जवाला जब जवाला मुखी का रूप ले लेती है तो विनाश ही होता है | आपकी कविता अच्छी है ........seema
हरिहर जी, बहुत सुंदर रचना .. कुछ पंक्तियाँ अच्छी लगी
तपती आंच में रहा उबलता फफक उठा तब छाला
संयत देह के भीतर कैसी धधक रही है ज्वाला
प्रीत बिना बेचैन रहा दिल दौड़ा था दिन रात
ऋषि मुनि के संयम को यह पशु दे गया मात
मिलने को लैला से मजनू मारा मारा फिरता
सोये लेकर नशा वासना अंधकूप में गीरता
सपने में बन सांप डराये किस कुतिया को पाला
संयत देह के भीतर कैसी धधक रही है ज्वाला
सुरिन्दर रत्ती
हरिहर झा जी का एल नया अद्भुत स्वरूप.. बहुत अच्छा लगा...
यह कोई नई बात नही कही अपने , ये सब जानते है | लेकिन जिन शब्दों मे और जिस तरह से कहा है
उसके लिए आपकी जितनी भी प्रशंसा करें, कम है | आपका अनुभव पूर्णतया झलक रहा है |
सच है काम को संतुलित और नियंत्रित ना करें तो यह सबसे विनाशकारी शत्रु है |
धन्यवाद |
अवनीश तिवारी
हरिहर जी,
इस अद्भुत अभिव्यक्ती पर बधाई स्वीकार करें ! बहुत सुंदर रचना है.
हरिहर जी,
सुन्दर अभिव्यक्ति ह, मन मे संशय को अच्छे शब्दों में बखाना है.. काम सच में बहुत बड़ा शत्रु है यदि नियंत्रण से बाहर है तो...
हरिहर जी,
बहुत ही अच्छी रचना है....
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संयत देह के भीतर कैसी धधक रही है ज्वाला
आँच नियन्त्रण से बाहर हो कर ना दे मुंह काला
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शुभकामनायें!!!!
अच्छी रचना.
कामदेव का काम है
ज्वाला को धधकाना
इसके चक्कर में भइया
लेकिन कभी न आना .
ऋषि मुनि तो ऋषि मुनि
भूतनाथ भी बच न पाये
कामदेव का बाण चले तो
वासना फ़िर पच न पाये .
अच्छी लगी आपकी यह रचना हरिहर जी |
harihar ji,
aapne apni kavita kamdev mein kaphi aise shabdon ka pryog kiya hai jise koi achha rachnakr hi likh sakta hai..mujhe kavita atyant pasand aayi...aasha hai aage bhi ise prakar ki rachnaye aap likhte rahenge....
प्रीत बिना बेचैन रहा दिल दौड़ा था दिन रात
ऋषि मुनि के संयम को यह पशु दे गया मात
मिलने को लैला से मजनू मारा मारा फिरता
सोये लेकर नशा वासना अंधकूप में गीरता
bahut khub...uttem
Sashakt rachanaa .
Bahut khoob..
Keep writing..
Badhai....
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