रूठे रूठे से हबीब, मिले हैं कुछ,
हमने पूछा तो कहा - गिले हैं कुछ
ख्वाब बोये जो हमने, क्या बुरा किया,
चंद मुरझा गए तो क्या, खिले हैं कुछ
जो कच्चे हैं, कड़वे हैं तो हैरत क्या,
पके फलों में भी तो पिल-पिले हैं कुछ
कहाँ रहा अब ये प्रेम का ताजमहल,
ईट ईट में अहम् के, किले हैं कुछ
बस इतना समझ लीजिये तो बहुत है,
अपनी हदों से सब ही, हिले हैं कुछ
चुप रहिये,न बोलिए,कि छिल जायेंगे.
मुश्किलों से जख्म जो, सिले हैं कुछ
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत बढ़िया सजीव जी। इस गज़ल से युग्म का स्तर बढ़ गया है। और कहने की जरूरत नहीं है।
सजीव जी,
ये हुई न बात...आपकी ये ग़ज़ल कहाँ-कहाँ तक पहुँचेगी, आप ख़ुद भी नहीं समझ सकते...ऐसे ही लिखते रहिये....कम से कम ये शिकायत तो नहीं रहेगी कि युग्म का स्तर इन दिनों घटता जा रहा है....
निखिल
जो कच्चे हैं, कड़वे हैं तो हैरत क्या,
पके फलों में भी तो पिल-पिले हैं कुछ
बहुत ही सुन्दर गजल
ख्वाब बोये जो हमने, क्या बुरा किया,
चंद मुरझा गए तो क्या, खिले हैं कुछ
कहाँ रहा अब ये प्रेम का ताजमहल,
ईट ईट में अहम् के, किले हैं कुछ
आपकी ग़ज़ल लाजवाब है ,यह दो शेयर बहुत पसंद आए .....सीमा सचदेव
कहाँ रहा अब ये प्रेम का ताजमहल,
ईट ईट में अहम् के, किले हैं कुछ
बहुत बढ़िया सजीव जी
बढिया है..
सारथी जी अभी मश्क की जरुरत है .. अच्छा सोचा है..
शाहिद "अजनबी"
बहुत सही मज़ा आ गया संजीव जी .....
सजीव जी
गजल ने प्रभावित किया है-
कहाँ रहा अब ये प्रेम का ताजमहल,
ईट ईट में अहम् के, किले हैं कुछ
बधाई स्वीकारें
बेहतरीन गज़ल है सजीव जी। गौरव ने सही हीं कहा है कि आपकी गज़ल से युग्म का स्तर बढ गया है। ऎसे हीं लिखते रहिये।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
संतुलित भी है , मजे दार भी |
बहुत खूब |
अवनीश तिवारी
सजीव जी अच्छी ग़ज़ल लिखी है आपने , बधाई
पूजा अनिल
सभी से एक सवाल :-- "!!! हम बातें बहुत करते हैं और काम कम !!!" क्या डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति) द्वारा कहे गए इन शब्दों को काव्य पल्लवन का विषय बनाया जा सकता है ???
पूजा अनिल
सजीव जी गौरव की बात से सहमत हूं। वैसे पंकज जी भी खुश होंगें। वाकई सुन्दर रचना।
सजीव जी बहुत भी स्तरीय एवं प्रभाव छोडती गजल.. और सटीक भी बैठ रही है उस परिपेक्ष मे शयद यही सोचकर लिखी हो..
बहुत बहुत बधाई..
sarathi ji,aapne to kamal hi kar diya.lajwab,maja aa gaya.jitana kahun utna kam hai,bas behatarin
alok singh "sahil"
कहाँ रहा अब ये प्रेम का ताजमहल,
ईट ईट में अहम् के, किले हैं कुछ
-सुंदर रचना है.
बहुत ही बढ़िया बधाई
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