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Tuesday, April 29, 2008

मकडी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आती


हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता में डॉ॰ मीनू पिछले कई महीनों से भाग लेती रही हैं। कई बार शीर्ष १० में प्रकाशित भी हुई हैं। एक बार फिर इनकी कविता ९वें स्थान पर है। इनका परिचय यहाँ पढ़ें।

पुरस्कृत कविता- शीर्षक उपलब्ध नहीं

छिपकली को आजकल फर्श पर दौड़ते देखती हूँ
पहले जैसी खुरदरी दीवारें
सफ़ेद चुने से पुती हुई अब कहाँ
दरारें भी तो नहीं रहीं
नेरोलेक पेंट और एशियन पेंट की वज़ह से फिसल जाती होगी
या फिर वो कहानियां नहीं रहीं जिन्हें वो चिपक कर सुना करती थी
फ्लैट के असंख्य अदृश्य छोटे-छोटे कोने उसे पसंद नहीं

दीमक को ही लीजिये
हरे भरे पेड़ पर लगी मिलती है
सूखे अल्डरइन लगे दरवाज़े
और सूखे खोखले इंसानों को देखकर
वो भी बाहर की तरफ ही रहना पसंद करती है
अय्याश किस्म की है
जायदाद मुफ्त में मिली है
विरासत में
खायेगी ही

आवारा कुत्तों को मैंने आदमी को दुरदुराते देखा
और एक को तो पेड़ पर चढ़ते देखा
जानवर को आदमी से इतना डर
पहले तो नहीं था

चींटी को ही लीजिये
आजकल मीठा छोड़ नमकीन की तरफ जाती है
लोगों को शुगर फ्री की गोलियां खाते देख ऐसा करती होगी

ऊंट और सांप जो की प्रतिशोध लेने में माहिर हैं
टोकरी में बंद और ऊंट गाडी में जुते देखे जाते हैं
क्या प्रतिशोध लेंगे बेचारे

पर ये मकडी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आती
कितने ही जाले हटाओ वो फिर से बुन लेती है
घर में भी
और राजधानी में भी
बुनती जा रही है
एक बड़ा सा जाला



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ६॰७५, ६, ७॰६
औसत अंक- ६॰३३७५
स्थान- चौथा


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३॰५, ६॰३, ५, ६॰३३७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰२८४३७५
स्थान- नौवाँ


पुरस्कार- ज्योतिषाचार्य उपेन्द्र दत्त शर्मा की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'एक लेखनी के सात रंग' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

मीनू जी,आपको पहले भी पढ़ा है और आज फ़िर पढ़ रहा हूँ,पढ़ के अहसास हुआ कि इन दिनों में आपकी लेखनी ने अच्छा खासा सफर तय किया है.बधाई स्वीकार करें
आलोक सिंह "साहिल"

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

अच्छा व्यंग है।
--- पर ये मकड़ी अपनी हरकतों से बाज नहीं
आती
कितने ही जाले हटाओ वह फिर से बुन लेती है
घर में भी
और राजधानी में भी।------
---सबसे अच्छी पंक्तियॉ लगीं और छमा करें--मेरे विचार से कविता यहीं पूर्ण हो जाती है।

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत बढ़िया मीनू जी.. बधाई स्वीकारें..
"मकडी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आती
कितने ही जाले हटाओ वो फिर से बुन लेती है
घर में भी
और राजधानी में भी
" अच्छा लिखा है

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

अच्छा व्यंग है | लेकिन मुझे इतना प्रभावी भी नही लगा ?
९ वे स्थान के लिए बधाई |


-- अवनीश तिवारी

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

डाक्टर साब,

अच्छा इंजेक्शन दिया है व्यग्य की डोज का,
उम्मीद है असर करेगा,
आखों का जाला काटेगा तो तस्वीर थोडी साफ नज़र आयेगी
देखो ऑपरेशन कब होगा..

बहुत बहुत बधाई..

Dinesh Singh का कहना है कि -

I appreciate your attempt but I think you could write much better than this. Nice Poem and hope to read your writings in future.

Harihar का कहना है कि -

पर ये मकडी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आती
कितने ही जाले हटाओ वो फिर से बुन लेती है
घर में भी
और राजधानी में भी
बुनती जा रही है
एक बड़ा सा जाला

क्या बात है! बहुत खूब मीनूजी बधाई!
बहुत बढ़िया!

सीमा सचदेव का कहना है कि -

ये मकडी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आती
कितने ही जाले हटाओ वो फिर से बुन लेती है
घर में भी
और राजधानी में भी
बुनती जा रही है
एक बड़ा सा जाला


मकडी के माध्यम से बहुत अच्छा व्यंग्य किया है आपने |बहुत बहुत बधाई......सीमा सचदेव

Anonymous का कहना है कि -

मीनू जी ,
बहुत सही लिखा है ,

पर ये मकडी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आती
कितने ही जाले हटाओ वो फिर से बुन लेती है
घर में भी
और राजधानी में भी
बुनती जा रही है
एक बड़ा सा जाला

बहुत बहुत बधाई

^^पूजा अनिल

विश्व दीपक का कहना है कि -

बहुत हीं उम्दा रचना है।
बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Kuldeep Kumar Mishra का कहना है कि -

kuldeep

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