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Friday, April 18, 2008

दीप जगदीप पुस्तक मेले से लौटकर


प्रतियोगिता के छठें और सातवें पायदान के विजेताओं का परिचय हमें अभी तक नहीं प्राप्त हुआ तो हमने सोचा कि आठवें स्थान की कविता को प्रकाशित किया जाय। पाठकों को कविता से वंचित क्यों रखा जाय!

आठवें स्थान की कविता के रचनाकार दीप जगदीप दूसरी बार इस प्रतियोगिता में सम्मिलित हो रहे हैं। पहली बार तो इनकी कविता टॉप ३० में भी नहीं आ पाई थी लेकिन कवि महोदय इस बार शीर्ष १० में विराजे हैं।

उम्र- 26 साल
पता- 1194 आजाद नगर नजदीक धूरी लाइन लुधियाना-141003
शिक्षा- पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट
पेशा- पत्रकारिता, कला संस्कृति साहित्य टीवी रेडियो और सिनेमा की पत्रकारिता
इन दिनों दैनिक भास्कर से जुड़े हैं। इससे पहले पंजाब केसरी, अमर उजाला के अलावा पंजाबी के क्षेत्रीय अखबारों में 7 साल का पत्रकारिता का तर्जुबा।
आल इंडिया रेडिया के प्रमाणित एंकर हैं और साप्ताहिक युवा कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं।
रुचियां- पंजाबी में कविता ग़ज़ल और व्यंग लिखने से शुरूआत की, आजकल हिंदी उर्दू और अंग्रेजी में भी लिखते हैं। साथ ही करीब 7 साल रंगमंच से भी जुड़े रहे हैं और पिछले साल दूरदर्शन जालंधर के लिए एक कॉमेडी सीरियल भी कर चुके हैं।


पुरस्कृत कविता- एक पाठक (पुस्तक मेले से लौटकर)

कल कल करती नदी सा
मीठा सुर
कहानी की शिक्षादायक धुन
नॉवेल का जिंदगी सा
विशाल कैनवस
और गज़ल की रूमानी बातें
गुम होकर रह गई हैं
कैमिसट्री के रासायणिक प्रयोगों
फिजिक्स के गुरूत्वाकर्षण नियमों
और बॉयलॉजी के नाड़ी तंत्र
वाले जाल में
सिलेबस की किताबों का
बोझ इतना है कि
अब मुझसे
नानक सिंह
अमृता प्रीतम
और शिव कुमार बटालवी की
पोथियों का वज़न
नहीं उठाया जाता
सच कहूं तो मुझे
इनमें कोई दिलचस्पी भी नहीं
क्योंकि मैंने तो कभी
परी कहानियां भी नहीं सुनी
मेरी 'ग्रैनी' तो
वृद्ध आश्रम में रहती है
और मेरे 'डैड' ने भी कभी
कविता, कहानी, गीत, नॉवेल, गज़ल के
बारे में मुझे कुछ नहीं बताया
वो बिज़ी हैं
मैं तो अखबार में इश्तिहार देख कर
आया था
तलाशने साइंस की किताबें
हां! कुछ और किताबें भी
पसंद तो आई हैं मुझे
पर क्या करूं परीक्षाओं के दिन हैं
मेले वाले अंकल!!!
आप गर्मी की छुट्टियों में
फिर आना...



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३, ७॰१, ७, ६॰७
औसत अंक- ५॰९५
स्थान- आठवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४॰५, ६, ५, ५॰९५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰३६२५
स्थान- आठवाँ


पुरस्कार- ज्योतिषाचार्य उपेन्द्र दत्त शर्मा की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'एक लेखनी के सात रंग' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Chandan Kumar Jha का कहना है कि -

एक छात्र के अन्तरद्वन्द को बहुत अच्छी तरह से उकेरा है आपने.बहुत कुछ करना और लिखना चहता है वह
पर सिलेबस के बीच उलझ कर रह गया है वह.हम जैसे हजारों छात्रों की मानसिकता को बिलकुल सही तरह से उतारा है आपने.

सिलेबस की किताबों का
बोझ इतना है कि
अब मुझसे
नानक सिंह
अमृता प्रीतम
और शिव कुमार बटालवी की
पोथियों का वज़न
नहीं उठाया जाता

पुन:सुन्दर रचना के लिये धन्यवाद.

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

A modern poem !
बधाई
अवनीश तिवारी

mehek का कहना है कि -

बहुत खूब बधाई

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत सही। बहुत सही भाई।मजा आ गया। सब सटीक लिखा है, अच्छा लिखा है।

Harihar का कहना है कि -

और गज़ल की रूमानी बातें
गुम होकर रह गई हैं
कैमिसट्री के रासायणिक प्रयोगों
फिजिक्स के गुरूत्वाकर्षण नियमों
और बॉयलॉजी के नाड़ी तंत्र
वाले जाल में
सिलेबस की किताबों का
बोझ इतना है कि

वाह दीप जी आपने तो मेरे विद्यार्थी जीवन का
अंतर्द्वन्द प्रगट कर दिया धन्यवाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सही चित्रण है आज की छात्र-मनोस्थिती,

चाहते हुए भी विवश है
आखिर सिलेबस है...

Sajeev का कहना है कि -

बढ़िया है.... दीप ... लगे रहो...

Deep Jagdeep का कहना है कि -

चंदन, अवनीश, महक, तपन, हरिहर, भूपेंद्र और सजीव जी आप सब का आभारी हूं कि मेरी कविता को गहराई से पढ़ने का वक्त निकाला आपने। मैंने बस अपनी पीढ़ी का मर्म इस कविता में उकेरने की कोशिश की। ये घटना 2007 में जालंधर में लगे पुस्तक मेले में हुई थी, जिसे मैंने बयान किया है। सबसे ज्यादा आभारी हूं उन जजेस का जिन्होंने इस कविता को अपनी पारखी नजर से जांच कर यहां पर पहुंचाया। हिंद युग्म के सभी साथियों का आभारी हूं, जो उत्साहित करते रहते हैं। एक बार फिर सब का धन्यवाद।

विश्व दीपक का कहना है कि -

दीप जी,
इस युग में हम जैसे लोगों से परिवार और समाज इतनी अपेक्षाएँ रखता है कि कुछ अलग करने की चाहत मर-सी जाती है। लकीर के फकीर बनकर रह जाते हैं हम.....फिर अलजेब्रा, केमेस्ट्री ,फिजिक्स के अलावा कुछ देखने को हीं नहीं मिलता।

कहानी की शिक्षादायक धुन
नॉवेल का जिंदगी सा
विशाल कैनवस
और गज़ल की रूमानी बातें
गुम होकर रह गई हैं

आपकी ये पंक्तियाँ हम जैसों की स्थिति का वास्तविक वर्णन करती हैं।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

seema sachdeva का कहना है कि -

आज के विद्यार्थी की मानसिक स्थिति तथा उलझन को आपने बखूबी बयान किया है

Alpana Verma का कहना है कि -

अच्छी कविता है .
एक सच लिखा है सिलेबस की किताबों का बोझ--सही कहा--बच्चों को आज कल कहाँ कहानी कविता-या उपन्यास पढने का समय मिल पाता है-

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सही कहा दीप जगदीप जी, सिलेबस की किताबों के बोझ तले साहित्य दब सा गया है ,
बहुत बहुत बधाई

^^पूजा अनिल

Anonymous का कहना है कि -

क्या बात है दीप भाई! तुसी तो कमल कर दित्ता
आलोक सिंह "साहिल'

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